बचपन बचाओ आंदोलन व उत्तराखंड सरकार ने तैयार की बाल विवाह रोकने की कार्ययोजना

action plan to stop child marriage
कार्यक्रम को संबोधित करते अपर मुख्य सचिव राधा रतूड़ी।

action plan to stop child marriage

देहरादून। action plan to stop child marriage नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित कैलाश सत्यार्थी द्वारा स्थापित संगठन बचपन बचाओ आंदोलन (बीबीए) ने ‘बाल विवाह मुक्त भारत अभियान’ के तहत स्वयंसेवी संस्थाओं को लामबंद कर इस मुहिम से जोड़ने के लिए उत्तराखंड सरकार के गृह विभाग के साथ मिल कर देहरादून के आई आर डी टी ऑडिटोरियम सर्वे चैक में एक सम्मेलन का आयोजन किया।

इस सम्मेलन में उत्तराखंड सरकार के विभिन्न महकमों के साथ 2030 तक देश से बाल विवाह के पूरी तरह खात्मे के लक्ष्य को हासिल करने के लिए गहन विचार विमर्श किया गया। नोबेल शांति पुरस्कार विजेता कैलाश सत्यार्थी द्वारा पिछले साल ‘बाल विवाह मुक्त भारत अभियान’ के एलान के बाद बीबीए देश के सभी राज्यों में इस तरह के सम्मेलनों का आयोजन कर रहा है, जिसके तहत उत्तराखंड में भी यह आयोजन हुआ। सम्मेलन में सभी हितधारकों ने विचारों का आदान-प्रदान किया और उत्तराखंड को बाल विवाह मुक्त बनाने के उपायों की रूपरेखा तैयार की।  

इस मौके पर कार्यक्रम के मुख्य अतिथि अपर मुख्य सचिव राधा रतूड़ी, विशिष्ट अतिथि उत्तराखंड गृह विभाग की अपर सचिव निवेदिता कुकरेती के अलावा प्रदेश के पुलिस महानिदेशक अशोक कुमार, महिला एवं बाल कल्याण विभाग के अपर सचिव प्रशांत आर्य, श्रम विभाग के अतिरिक्त श्रम आयुक्त अनिल पेटवाल और महिला एवं बाल कल्याण विभाग की उप निदेशक सुजाता सिंह भी मौजूद थीं।

‘बचपन बचाओ आंदोलन’ के कार्यकारी निदेशक धनंजय टिंगल ने सम्मेलन के उद्देश्य को स्पष्ट करते हुए कहा, “पिछले साल नोबेल शांति पुरस्कार विजेता कैलाश सत्यार्थी द्वारा किए गए आह्वान के बाद पूरे देश में इसकी अप्रत्याशित और आश्चर्यचकित कर देने वाली प्रतिक्रिया देखने को मिली है।

देश भर के 7028 गांवों से 76,000 महिलाएं और बच्चे मशाल लेकर एक साथ सड़कों पर उतरे और बाल विवाह के खिलाफ आवाज उठाई। देश के 20 राज्यों में आयोजित होने वाले ये सम्मेलन 2030 तक बाल विवाह मुक्त भारत के सपने को पूरा करने की दिशा में एक और कदम हैं।

बाल विवाह के खिलाफ लड़ाई और इसके पूरी तरह से खात्मे के लिए हमें एक बहुस्तरीय और बहुआयामी रणनीति की आवश्यकता है। इन परामर्श सम्मेलनों के जरिए हम सभी हितधारकों को साथ लाना चाहते हैं कि ताकि इस अपराध के खिलाफ हम सभी साझा लड़ाई लड़ सकें।

इस सामाजिक बुराई के खिलाफ लड़ाई में हम कोई कसर बाकी नहीं रखेंगे और इसमें शामिल लोगों ने जिस तरह की प्रतिबद्धता दिखाई है, उससे हमारे संकल्प और हौसले को और बल मिला है।”

बाल विवाह की बुराई के खिलाफ लड़ाई में सभी हितधारकों के सामूहिक प्रयासों की अहमियत और इस बात पर जोर देते हुए कि शिक्षा अकेले ही बाल विवाह के पूरी तरह खात्मे के लिए सबसे कारगर औजार हो सकती है,  अपर मुख्य सचिव श्रीमती राधा रतूड़ी ने कहा, “बाल विवाह के खिलाफ प्रभावी तरीके से लड़ाई के लिए हमें एक साझा कार्ययोजना बनाने की जरूरत है।

साथ ही हमें समाज के सबसे असुरक्षित बच्चों के साथ काम करने की भी जरूरत है ताकि सुनिश्चित किया जा सके कि उनके साथ किसी प्रकार का अन्याय नहीं होने पाए।”

उत्तराखंड के पुलिस महानिदेशक ने बाल विवाहों को रोकने में सामने आने वाली विभिन्न चुनौतियों पर चर्चा करते हुए स्वीकार किया कि इसके खिलाफ लड़ाई में बिना वक्त जाया किए नए विचारों और उपायों पर अमल की जरूरत है।

उन्होंने कहा, “विडंबना ये है कि एक तरफ जहां हम इस सामाजिक बुराई के खिलाफ जंग लड़ रहे हैं तो वहीं दूसरी तरफ नैतिक और कानूनी रूप से गलत होने के बावजूद समाज के कुछ हिस्सों में बाल विवाह की सामाजिक स्वीकृति है। यह एक बड़ी चुनौती है लेकिन समाज के हर व्यक्ति को इस बुराई के बारे में जागरूक करने के लिए हमें एक साथ मिलकार काम करने और कानूनों पर प्रभावी और व्यापक अमल सुनिश्चित करने की जरूरत है।”

महिला सशक्तीकरण एवं बाल कल्याण विभाग के अपर सचिव प्रशांत आर्य ने बाल विवाह के खिलाफ लड़ाई में एक साझा और सुसंगत दृष्टिकोण की आवश्यकता पर जोर देते हुए कहा, “बाल विवाह ने हमारे समाज में गहरे तक जड़ें जमा रखी है। हमें जन सामान्य को इस बारे में जागरूक करने और उन्हें यह समझाने की जरूरत है कि यह सामाजिक बुराई किस तरह बच्चों के जीवन पर नकारात्मक असर डालती है।

बाल विवाह सिर्फ एक बच्चे के बचपन को ही नहीं बल्कि उसके पूरे जीवन को बर्बाद कर देता है। विदित है कि राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वे-5 (2019-2021) के अनुसार देश में 20 से 24 साल की 23.3 प्रतिशत लड़कियों और उत्तराखंड में 9.8 प्रतिशत लड़कियों का विवाह उनके 18 वर्ष का होने से पूर्व ही हो गया था।

2011 की जनगणना रिपोर्ट के अनुसार देश में हर साल 51,57,863 लड़कियों का जबकि उत्तराखंड में 54,858 लड़कियों का विवाह 18 वर्ष की होने से पहले ही हो गया। सम्मेलन में इस बात पर चिंता जाहिर की गई और जनता, सरकार और सुरक्षा एजेंसियों से बाल विवाहों के खिलाफ ठोस व गंभीर कदम उठाते हुए साझा प्रयासों की अपील की गई।

जरा इसे भी पढ़े


बचपन बचाओ आंदोलन की अर्जी पर सुप्रीम कोर्ट ने जारी किया नोटिस
बच्चों से भिक्षावृत्ति करवाने पर सख्ती से रोक लगाएं : डीएम
नाबालिग से शादी करने वाला गिरफ्तार