12 अक्टूबर को अहोई अष्टमी, क्या इसके महत्व और पूजन के बारे में जानते हैं?

Ahoi Mata Ashtami
अहोई अष्टमी का व्रत कार्तिक कृष्ण पक्ष की अष्टमी को किया जाता है। इसे आठें भी कहते हैं। इसकी पूजा का विधि-विधान भी खास होता है। व्रत रखने वाली महिलाएं शाम को तारों और भगवान गणेश की पूजा-अर्चना करती हैं। इसके बाद लड्डू, फल और पंचामृत का भोग लगाकर व्रत खोलती हैं। यह त्यौहार करवा चौथ के ठीक 4 दिन बाद और दिवाली से 7 दिन पहले मनाई जाती है। इसमें अहोई देवी के चित्र के साथ सेई और सेई के बच्चों के चित्र भी बनाकर पूजे जाते हैं।
जरा इसे भी पढ़ें : चाणक्य के अनुसार ऐसी स्त्री से न करे शादी, नहीं तो परिवार को होगा सर्वनाश

यह व्रत बड़े व्रतों में से एक है। इसमें परिवार कल्याण की भावना छिपी होती है। इस व्रत को करने से पारिवारिक सुख प्राप्त‍ि और संतान को लंबी आयु का वरदान मिलता है। इसे संतान वाली स्त्री ही करती है। इस पूजा के पीछे एक प्राचीन कथा है। दरअसल, दिवाली पर घर को लीपने के लिए एक साहुकार की सात बहुएं मिट्टी लाने जंगल में गईं। तो उनकी ननद भी उनके साथ चली आईं। साहुकार की बेटी जिस जगह मिट्टी खोद रही थी। उसी जगह स्याहु अपने बच्चों के साथ रहती थी। मिट्टी खोदते वक्त लड़की की खुरपी से स्याहू का एक बच्चा मर गया। बाद में साहुकार की लड़की के जब भी बच्चे होते थे। वो सात दिन के अंदर मर जाते थे। एक-एक कर सात बच्चों की मौत के बाद लड़की ने जब पंडित को बुलाया और इसका कारण पूछा।

लड़की को पता चला कि अनजाने में जो उससे पाप हुआ, उसका ये नतीजा है। पंडित ने लड़की से अहोई माता की पूजा करने को कहा, इसके बाद कार्तिक कृष्ण की अष्टमी तिथि के दिन उसने माता का व्रत रखा और पूजा की। बाद में माता अहोई ने सभी मृत संतानों को जीवित कर दिया। संध्या के समय सूर्यास्त होने के बाद जब तारे निकलने लगते हैं तो पूजा प्रारंभ होती है। पूजन से पहले जमीन को स्वच्छ करके, पूजा का चौक पूरकर, एक लोटे में जलकर उसे कलश की भांति चौकी के एक कोने पर रखें और भक्ति भाव से पूजा करें।

इसमें एक खास बात यह भी है कि पूजा के लिए माताएं चांदी की एक अहोई भी बनाती हैं, जिसे बोलचाल की भाषा में स्याऊ भी कहते हैं। उसमें चांदी के दो मोती डालकर विशेष पूजन किया जाता है। जिस प्रकार गले में पहनने के हार में पैंडिल लगा होता है उसी प्रकार चांदी की अहोई डलवानी चाहिए और डोरे में चांदी के दाने पिरोने चाहिए. फिर अहोई की रोली, चावल, दूध व भात से पूजा करें।
जल से भरे लोटे पर सातिया बना लें, एक कटोरी में हलवा तथा रुपये का बायना निकालकर रख दें और सात दाने गेहूं के लेकर कथा सुनने के बाद अहोई की माला गले में पहन लें। जो बायना निकाल कर रखा है उसे सास की चरण छूकर उन्हें दे दें। इसके बाद चंद्रमा को जल चढ़ाकर भोजन कर व्रत खोलें। इतना ही नहीं इस व्रत पर धारण की गई माला को दिवाली के बाद शुभ अहोई को गले से उतारकर उसका गुड़ से भोग लगा और जल से छीटें देकर मस्तक झुका कर रख दें।
जरा इसे भी पढ़ें : भगवान शिव ने क्यों किया था सूदामा का वध