विवादों के चरम पर पहुंचे थे आेशो रजनीश
जो लोग ओशो रजनीश के जीवन के बारे में कुछ खास नहीं जानते उनके लिए ओशो का नाम दुनियाभर के प्रसिद्ध बाबाओं और गुरुओं में से एक ही है। इससे ज्यादा की बात करें तो उनके लिए ओशो की पहचान एक ऐसी विवादित शख्सियत की है, जिन्होंने हमेशा स्वच्छंद जीवन और फ्री सेक्स जैसी बातों का समर्थन किया। इसके अलावा हम ओशो के बारे में यह भी कहते सुनते हैं कि वे धर्म, राष्ट्रवाद, परिवार, विवाह आदि के सख्त विरोधी थे। लेकिन क्या ओशो के विषय में किए गए ये कथन सही हैं? क्या वाकई ओशो का जीवन दर्शन इन्हीं धारणाओं के आसपास घूमता है?
ओशो की आलोचना विभिन्न प्रकार से की जाती है, उन पर कई आरोप भी लगे। कहा जाता है कि ओशो फ्री सेक्स का समर्थन करते थे और उनके आश्रम में हर संन्यासी एक महीने में करीब 90 लोगों के साथ सेक्स करता था। इसके अलावा यह भी माना जाता है कि ओशो ने धर्म को एक व्यापार बनाया और खुद सबसे बड़े व्यापारी बन बैठे। उन्होंने अपने जीवन में कई पुस्तकें लिखी, जिनमें से ‘संभोग से लेकर समाधि तक’ नामक पुस्तक ने उन्हें विवादों के चरम पर पहुंचाया।
अपने भक्तों के बीच ‘भगवान ओशो’ कहलाने वाले ओशो को लेकर उनकी शिष्या और प्रेमिका मां आनंद शीला ने चौंकाने वाले खुलासे किए थे। ओशो के आश्रम से 55 मिलियन डॉलर का घपला करने के बाद शीला 39 महीनों तक जेल में रहीं। जेल से निकलने के करीब 20 साल बाद शीला ने कुछ साल पहले रिलीज हुई अपनी किताब ‘डोंट किल हिम! ए मेम्वर बाई मा आनंद शीला’ में अपने गुरू से जुड़े कई अनछुहे पहलुओं को सामने रखा है।
आश्रम का हर संन्यासी एक माह में 90 लोगों के साथ करता था सेक्स
शीला ने अपनी किताब में लिखा है कि ओशो के आश्रम में अध्यात्म के नाम पर सेक्स की मंडी सजती थी। आश्रम के शिविरों में सबसे ज्यादा चर्चा भी सैक्स पर ही होती थी। भगवान ओशो अपने भक्तों को बताते थे कि सेक्स की इच्छा को दबाना कई कष्टों का कारण है, इसलिए सेक्स की इच्छा को दबाना नहीं चाहिए। वे सेक्स को बिना किसी निर्णय के स्वीकार करने के लिए कहते थे। भगवान के उपदेशों पर चलते हुए उनके सभी शिष्य बिना किसी हिचकिचाहट और नैतिक दबाव के चलते आश्रम में खुलेआम सेक्स करते थे। आश्रम का हर संन्यासी एक महीने में करीब 90 लोगों के साथ सेक्स करता था।
पानी की तरह बरसता था आश्रम में पैसा
फोटो- मां आनंद शीला आैर आेशो रजनीश की पुरानी तस्वीर।
किताब के मुताबिक भगवान ओशो बिजनेस करना भी बखूबी जानते थे। उन्होंने ऐसा सिस्टम बनाया हुआ था कि आश्रम के हर हिस्से से आय होती थी। उनके प्रवचन सुनने के लिए आश्रम में प्रवेश शुल्क लगता था। आश्रम में चिकित्सकों का एक ग्रुप भी कार्यरत था, जो मरीजों को देखते थे। चिकित्सा सेवा के साथ-साथ आश्रम के अंदर बुफे में खान-पान की भी व्यवस्था थी। आश्रम में आने वाले लोग अपनी इच्छानुसार खाना लेकर भुगतान करते थे। इसके अलावा आश्रम में कई दूसरी शुल्क आधारित सेवाएं भी चलती थीं। इन सभी स्रोतों के जरिए आश्रम में पानी की तरह पैसा बरसता था। भगवान ओशो के आश्रम में हर दिन दान पाने के नए तरीके सोचे जाते थे।
बीमारी के बावजूद बेफिक्र होकर सेक्स करते थे संन्यासी
फोटो- मां आनंद शीला की ताजा तस्वीर आैर उनकी बुक ‘डोंट किल हिम! ए मेम्वर बाई मां आनंद शीला’ का कवर पेज।
आश्रम में संन्यासियों को शिफ्ट में काम करना पड़ता था। आश्रम के संन्यासी भगवान ओशो से इतने प्रभावित थे कि अपनी परवाह किए बिना काम करते थे। यहां तक कि उन्हें रात को सोने के लिए अच्छी जगह भी नहीं मिलती थी। लेकिन धीरे-धीरे कुछ संन्यासियों को बीमारियों ने जकड़ लिया। आश्रम के संन्यासी बुखार, सर्दी और इंफेक्शन से पीड़ित रहते थे। आश्रम में चारों तरफ गंदगी का माहौल था। इसके बावजूद भगवान लगातार अपने भक्तों को सेक्स की इच्छा दबाने के विरुद्ध उपदेश देते थे, इसलिए आश्रम के संन्यासी बेफिक्र होकर सेक्स करते थे। शीला ने किताब में लिखा है कि मुझे यह देखकर बड़ा आश्चर्य हुआ कि पूरे दिन काम में लगे रहने के बावजूद संन्यासी सेक्स के लिए समय और ऊर्जा निकालते थे। एक दिन मैंने एक संन्यासी से इस बारे में पूछा तो उसने मुझे बताया कि वो हर दिन तीन अलग-अलग महिलाओं के साथ सेक्स करता है। गंदगी में रहने के कारण संन्यासियों की हालत ज्यादा खराब होने लगी और धीरे-धीरे आश्रम के अस्पताल के सभी बेड भर गए।
96 रोल्स रॉयस कारों से बोर होकर आेशो ने की 30 आैर कारों की मांग
फोटो- आेशो के अमरीका में स्थित आेरेगन के रजनीशपुरम आश्रम का दृश्य।
भगवान आश्रम में सबकुछ ओशो के मन-मुताबिक और काफी अच्छा होने के बावजूद वे खुश नहीं थे। भगवान अब बोर हो रहे थे। एक दिन उन्होंने मुझसे कहा कि उन्हें एक महीने में 30 नई रोल्स रॉयस गाड़ियां चाहिएं, जबकि उस समय उनके पास 96 नई रोल्स रॉयस कारें थीं। जाहिर था कि वो सिर्फ अपनी बोरियत मिटाने के लिए नई गाड़ियां चाहते थे। 30 नई रोल्स रॉयस कारों का मतलब था करीब 3 से 4 मिलियन डॉलर। इतनी बड़ी रकम सिर्फ आश्रम के बजट में कटौती करके ही जुटाई जा सकती थी, लेकिन भगवान ओशो ने मुझे इस रकम को पाने के लिए 50-60 लोगों के नाम की लिस्ट दी, जो काफी धनी थे।
नाना के घर जाने के बाद आेशो हुए नियंत्रण मुक्त आैर उन्मुक्त
फोटो- आेशो के अनुयायियों में शामिल थे कर्इ विदेशी।
11 दिसंबर, 1931 को मध्य प्रदेश के गांव कुछवाड़ा में ओशो रजनीश का जन्म हुआ था। ग्यारह भाइयों में सबसे बड़े ओशो का पारिवारिक नाम रजनीश चंद्र मोहन था। 11 वर्ष की उम्र में रजनीश को अपने नाना के घर भेज दिया गया, जहां बिना किसी नियंत्रण और रूढ़िवादी शिक्षा के पूरी उन्मुकतता के साथ उन्होंने अपना जीवन व्यतीत किया। बचपन से ही रजनीश विरोधी प्रवृत्ति के व्यक्ति थे, जिन्होंने कभी परंपराओं को नहीं अपनाया। किशोरावस्था तक आते-आते रजनीश नास्तिक बन चुके थे। उन्हें ईश्वर में जरा भी विश्वास नहीं था। वे भारतीय स्वतंत्रता संग्राम और राष्ट्रीय स्वयंसेवक दल में भी शामिल हुए थे।
छात्रों के लिए खतरनाक थे आेशे के आचरण
फोटो- आेशो के अमरीका स्थित आेरेगन के रजनीशपुरम आश्रम का दृश्य।
जबलपुर विश्वविद्यालय से सन 1953 में स्नातक और फिर 1957 में सागर विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर करने के बीच रजनीश अपने पहले सर्वधर्म सम्मेलन का हिस्सा बने। यहीं उन्होंने सबसे पहले सार्वजनिक भाषण दिया, जहां से उनके सार्वजनिक भाषणों का सिलसिला शुरू हुआ जो साल 1951 से 1968 तक चला। वर्ष 1957 में संस्कृत के लेक्चरर के तौर पर रजनीश ने रायपुर विश्वविद्यालय जॉइन किया। लेकिन उनके गैर परंपरागत धारणाओं और जीवन यापन करने के तरीके को छात्रों के नैतिक आचरण के लिए घातक समझते हुए विश्वविद्यालय के कुलपति ने उनका ट्रांसफर कर दिया। अगले ही वर्ष वे दर्शनशास्त्र के लेक्चरर के रूप में जबलपुर यूनिवर्सिटी में शामिल हुए। इस दौरान भारत के कोने-कोने में जाकर उन्होंने गांधीवाद और समाजवाद पर भाषण दिया, अब तक वह आचार्य रजनीश के नाम से अपनी पहचान स्थापित कर चुके थे।
आेशो को अनुयायियों ने बना दिया था भगवान
फोटो- आेशो के अमरीका में स्थित आेरेगन के रजनीशपुरम आश्रम का दृश्य।
वर्ष 1970 में रजनीश जबलपुर से मुंबई आ गए और यहां आकर उन्होंने सबसे पहली बार ‘डाइनमिक मेडिटेशन’ की शुरुआत की। उनके अनुयायी अकसर उनके घर मेडिटेशन और प्रवचन सुनने आते थे। अब तक वे सार्वजनिक सभाएं करना बंद कर चुके थे। वर्ष 1971 में उन्हें उनके अनुयायियों ने ‘भगवान श्री रजनीश’ की उपाधि प्रदान की थी।
मुंबई की जलवायु आचार्य रजनीश को रास नहीं आई और वे पुणे शिफ्ट हो गए। उनके अनुयायियों ने यहां उनके लिए आश्रम बनाया जहां आचार्य रजनीश 1974 से 1981 तक दीक्षा देते रहे। कुछ ही समय बाद आचार्य रजनीश के पास विदेशी अनुयायियों की भी भीड़ जमा होने लगी, जिसकी वजह से आश्रम का प्रसार भी तेज गति से होने लगा। वर्तमान समय में पुणे स्थित इस आश्रम को वैश्विक तौर पर ‘ओशो इंटरनेशनल मेडिटेशन सेंटर’ के नाम से जाना जाता है।
आेशों ने अमरीका में बसाया एक शहर
फोटो- आेशो के अमरीका में स्थित आेरेगन के रजनीशपुरम आश्रम का दृश्य।
लगभग 15 वर्ष तक लगातार सार्वजनिक भाषण देने बाद आचार्य रजनीश ने वर्ष 1981 में सार्वजनिक मौन धारण कर लिया। इसके बाद उनके द्वारा रिकॉर्डेड सत्संग और किताबों से ही उनके प्रवचनों का प्रसार होता था। वर्ष 1984 में उन्होंने सीमित रहकर फिर से सार्वजनिक सभाएं करना शुरू किया। जून, 1981 में आचार्य रजनीश अपने इलाज के लिए अमरीका गए, जहां ओरेगन सिटी में उन्होंने ‘रजनीशपुरम’ की स्थापना की। पहले यह एक आश्रम था लेकिन देखते ही देखते यह एक पूरी कॉलोनी बन गई जहां रहने वाले ओशो के अनुयायियों को ‘रजनीशीज’ कहा जाने लगा। धीरे-धीरे ओशो रजनीश के फॉलोवर्स और रजनीशपुरम में रहने वाले लोगों की संख्या बढ़ने लगी, जो ओरेगन सरकार के लिए भी खतरा बनता जा रहा था।
अमरीकी सरकार के लिए आेशो बन गए थे खतरा
फोटो- आेशो को गिरफ्तार कर ले जेल ले जाते अमरीकी अधिकारी।
समर्थकों की कट्टरता की वजह से अमरीकी सरकार और ओशो रजनीश के बीच कुछ भी सामान्य नहीं था। आने वाले खतरे को भांपते हुए ओशो रजनीश ने सार्वजनिक सभाएं करना बंद कर दिया था, वे अब सिर्फ अपने आश्रम में ही प्रवचन देते और ध्यान करते थे। अपनी अत्याधिक महंगी जीवनशैली ने भी उन्हें हर समय विवादों के साये में रखा। भारत में तो ओशो रजनीश अपने सिद्धांतों की वजह से विवादों में रहते ही थे लेकिन ओरेगन में रहते हुए वे अमरीकी सरकार के लिए भी खतरा बन चुके थे। अमेरिका की सरकार ने उन पर जालसाजी करने, अमेरिका की नागरिकता हासिल करने के उद्देश्य से अपने अनुयायियों को यहां विवाह करने के लिए प्रेरित करने, जैसे करीब 35 आरोप लगाकर उन्हें गिरफ्तार कर लिया। उन्हें 4 लाख अमरीकी डॉलर की पेनाल्टी भुगतनी पड़ी साथ ही साथ उन्हें देश छोड़ने और 5 साल तक वापस ना आने की भी सजा हुई।
अनुयायी अमेरिकी सरकार को मानते हैं आेशो की मौत के लिए जिम्मेदार
19 जनवरी, वर्ष 1990 में ओशो रजनीश ने हार्ट अटैक की वजह से अपनी अंतिम सांस ली। जब उनकी देह का परीक्षण हुआ तो यह बात सामने आई कि अमरीकी जेल में रहते हुए उन्हें थैलिसियम का इंजेक्शन दिया गया और उन्हें रेडियोधर्मी तरंगों से लैस चटाई पर सुलाया गया। जिसकी वजह से धीरे-धीरे ही सही वे मृत्यु के नजदीक जाते रहे। खैर इस बात का अभी तक कोई ठोस प्रमाण उपलब्ध नहीं हुआ है लेकिन ओशो रजनीश के अनुयायी तत्कालीन अमरीकी सरकार को ही उनकी मृत्यु का कारण मानते हैं।