बाल मजदूरी : देश का नासूर जख्म Bal majduri in india
हिना आज़मी
Bal majduri in india“बचपन” शब्द सुनते ही हमारे जहन में शरारत, मस्ती , उमंग जैसी बातें आती हैं। बचपन जिंदगी की एक ऐसी अवस्था है जब हम खेलना-कूदना, भागना- दौड़ना, जिद करके अपनी मनचाही चीज प्राप्त कर लेते हैं , और तो और अपनी सारी ख्वाहिशों को भी पा लेते हैं, अपने माता-पिता के दुलारे, आंख के तारे होते हैं । मां का आंचल हमें जन्नत से भी प्यारा लगता है। जहां एक और हमने बचपन में लाड-प्यार पाया है, शिक्षा पाई है।
जरा इसे भी पढ़ें : कृषि प्रधान देश में कृषक भी हो प्रधान
वहीं दूसरी और हमारे समाज में एक ऐसा बचपन भी गुजारा जाता है जहां वह बच्चे इन सब चीजों से वंचित रहते हैं। सर्दियों में जब हम लोग गर्म कंबल में आराम फरमाते हैं तब वह बच्चे ठिठुरती हुई सर्दी में काम पर जाते हैं । क्या हमने कभी उनके दिल की बात जाननी चाही। जब एक पिता अपने लाडले बेटे को गाड़ी पर स्कूल छोड़ने जाता है , तब चाय की दुकान पर बर्तन धोता बच्चा उसे देखकर क्या नहीं सोचता होगा कि काश मुझे भी यह बचपन जीने को मिल पाता? मैं कभी स्कूल जा पाता ?
नन्हे कंधों पर जिम्मेदारी का भार डाल दिया जाता
देश के कई राज्य जैसे बिहार ,उत्तर प्रदेश आदि के बच्चे छोटी उम्र में ही काम पर लग जाते हैं । उनके हाथ में बस्ता देने के बजाय उनके नन्हे कंधों पर जिम्मेदारी का भार डाल दिया जाता है। उन्हें इतनी समझ नहीं होती कि मेरे लिए क्या सही है और क्या गलत है? और हम कहते हैं कि हमारा देश विकास करता जा रहा है लेकिन मैं कहती हूं कि नहीं यह कथन उचित नहीं होगा जब हम अपने समाज के इस वर्ग को देखते हैं ।
जरा इसे भी पढ़ें : ग्लैमरस से भरे सपनों के पीछे भागते युवा Youth behind Dreams
हम आज भी छोटे-छोटे बच्चों को काम पर लगे देखते हैं , छोटे-छोटे किशोरों को देखती हूं जो चाय की दुकानों पर काम करते हैं , भीख मांगते हैं देश का विकास तभी हो सकता है जब देश के हर वर्ग का उत्थान होगा।