दिल्ली से लेकर दून तक वक्फ पर संग्राम

Battle over Waqf from Delhi to Doon

देहरादून। Battle over Waqf from Delhi to Doon लोकसभा में बुधवार को वक्फ संशोधन बिल पेश कर दिया गया है, जिस पर देर शाम तक चर्चा जारी हैं, वही सत्ता पक्ष जहां इस बिल के लाभ गिना रही हैं, वही विपक्ष इस का भारी विरोध कर रहा है। देश भर में आज वक्फ संशोधन बिल ही सुर्खियों में है। उत्तराखण्ड में भी इसको लकर तरह-तरह की बाते सामने आ रही हैं।

आईये जाने है, कि किसने क्या कहा। संसद में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कहा कि यह बिल वक्फ की संपत्ति के रख-रखाव के लिए है न कि वक्फ की जमीन पर कब्जा करने के लिए है। उन्होंने कहा कि इससे बेरोजगार मुसलमानों को फायदा होगा। वक्फ की आय बढ़ेगी।

वक्फ संशोधन विधेयक आज लोकसभा में पेश कर दिया गया है, इसे लेकर उत्तराखंड के पूर्व सीएम व कांग्रेस नेता हरीश रावत ने कहा कि पहले भी जब वक्फ संशोधन विधेयक में संशोधन किए गए थे, तब सवाल उठाए गए थे। हरीश रावत ने कहा कि तब हमने चर्चा के माध्यम से उनका समाधान किया था, सरकार समाधान नहीं कर रही हैं। कहा कि ऐसा लगता है कि यह भी भाजपा के ध्रुवीकरण के एजेंडे का हिस्सा है।

उत्तराखंड मदरसा शिक्षा बोर्ड के चेयरमैन मुफ्ती शमून कासमी ने संसद में पेश किये गये वक्फ संशोधन विधेयक पर कहा कि आज संसद में पेश किया गया वक्फ संशोधन विधेयक-2024 एक ऐतिहासिक क्षण है। आज सड़कों पर इस विधेयक के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे लोग वही लोग हैं जिन्होंने 60 साल तक कांग्रेस के मध्यस्थ के रूप में काम किया और मुसलमानों को वोट बैंक बनाकर रखा। वक्फ संपत्ति गरीबों के लिए होने के बावजूद कभी भी उनका लाभ नहीं उठाया गया।

वक्फ संशोधन विधेयक पर उत्तराखंड वक्फ बोर्ड के चेयरमैन शादाब शम्स ने कहा कि जो लोग विरोध कर रहे हैं, वे मुसलमान नहीं हैं। वे कांग्रेस, समाजवादी पार्टी, आप और जनता दल के राजनीतिक मुसलमान हैं। उनके पीछे जमीयत उलेमा-ए-हिंद और मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड जैसे एनजीओ और समितियां हैं, जो पिछले दरवाजे से राज्यसभा जाना चाहते हैं। ये सभी वक्फ लाभार्थी हैं। विपक्ष के पास 70 साल थे और उन्होंने जो कर सकते थे किया।

जमीअत उलेमा हिंद उत्तराखंड के सचिव खुर्शीद अहमद ने कहा कि लोक सभा में वक्फ संशोधन बिल 2024 में बहस के दौरान सदस्यों की और से बहुत सी भ्रामक बातें कही जा रही हैं। कहा कि कोई भी संपति ऐसे ही वक्फ नहीं होती बल्कि उसका सरकारी अधिकारियों की और से सर्वे किया जाता फिर उसका सरकारी स्तर पर गजट नोटिफिकेशन जारी होने के बाद वक्फ संपति की तरह रजिस्टर किया जाता है।

सिर्फ वक्फ कह देने से वक्फ नहीं होता हैं यह भ्रम अक्सर फैलाया जा रहा हैं। वक्फ बोर्ड का गठन सरकार के नामित सदस्यों के द्वारा किया जाता है और वक्फ सीईओ या अधिकारी भी सरकार चयनित करती है, मुसलमानों का इसमें कोई दखल नहीं होता हैं। वक्फ की जो आज हालत है उसकी जिम्मेदार सरकार है मुस्लिम समुदाय नहीं हैं। पांच साल प्रैक्टिसिंग मुसलमान होने की बात समझ में नहीं आईं।

लिमिटेशन एक्ट 1968 का वक्फ पर लागू करना और यह कहना कि वक्फ ट्रिब्यूनल का फैसला अंतिम हैं और कोर्ट में चैलेंज नहीं किया जा सकता भ्रामक प्रचार हैं। सरकार ने वक्फ की धारणा और परिभाषा ‘जो चीज एक बार वक्फ है वह हमेशा वक्फ रहेगी’ बदल दिया है।  

मुस्लिम सेवा संगठन ने वक्फ संशोधन विधेयक पर अपना विरोध दर्ज कराया है। मुस्लिम सेवा संगठन के अध्यक्ष नईम कुरैशी ने कहां हमारा मानना है इस बिल को सदन के पटल पर रखते हुए मंत्री किरेन रिजजू ने कहां की वक्फ धर्म आधारित नहीं है, मुस्लिम सेवा संगठन ये स्पष्ट कर देना चाहता है कि वक्फ होता ही धार्मिक आधार पर है, इसलिए वक्फ को धर्म से अलग नहीं किया जा सकता। संगठन के उपाध्यक्ष आकिब कुरैशी ने कहां वक्फ ट्रिब्यूनल से डिस्ट्रिक्ट जज को हटाकर शासन में सचिव स्तर के अधिकारी को लाया गया है जिससे वक्फ में सरकारी हस्तक्षेप बढ़ जाएगा।

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