तेरी इब्तीदा कोई और है
तेरी इंतीहा कोई और है
तेरी बात हमसे हुई तो क्या
तेरी सोच मै कोई और है
हमे शौक था बड़ी देर से
कि तेरे सारीक-ए-सफर रहें
तेरे साथ चल कि खबर हुई तेरा रास्ता कोई और है
तुझे फिक्र है कि बदल दिया मुझे गर्दिश-ए-शब-ओ-रोजने
कभी खुद से भी तो सवाल कर
तू वही है या कोई और है।
जानकर तुझे ये समझ में आता है
कि दगा कोई अपना ही देता है,
चाहते है जिसे जिंदगी से ज्यादा
वो ही अकसर बेवफाई कर जाता है।।