Business of Intoxicated Medicines
देहरादून। Business of Intoxicated Medicines कैमेस्टों पर कोई शिकंजा न कसे जाने के कारण बेरोकटोक चांदी काटी जा रही है। जबकि कैमेस्टों द्वारा नशीली दवाईयां आदि बेचने के कारण युवा पीढ़ी बर्बाद हो रही है। उत्तराखण्ड में लचर स्वास्थ्य विभाग की कार्यप्रणाली के चलते सारा सिस्टम गड़बड़ाया हुआ है।
सरकारी अस्पतालों में मरीजों को डाक्टर खुलेआम इलाज के लिए घर पर आकर इलाज करने का न्यौता दे रहे है। दून अस्पताल हो या फिर अन्य कोई सरकारी अस्पताल। सभी के डाक्टर अपने घरो में मरीजो को देखने का काम करते है। शाम चार बचे से आठ बजे तक हर रोज खुद दून अस्पताल के सामने वाली डाक्टरो की काॅलोनी में मरीजों की खासी भीड़ देखी जा सकती है।
इसी क्रम में देहरादून के भीतर कैमिस्ट भी चांदी काट रहे है। एक ओर जहां डाक्टरो की सैंटिंग के चलते कैमिस्ट मरीजों की खुलेआम लूट रहे है तो वहीं शहर में प्रतिबंधित दवाईयां बेचने का करोबार भी खूब फल फूल रहा है। बताया जा रहा है कि अधिकतर कैमेस्टों के पास तो फारमशिस्ट तक का डिपलोमा नही है।
कैमिस्ट की दुकान खोलकर खुलेआम करोबार किया जा रहा
बस चंद रूपयों में फारमशिस्ट का डिपलोमा हासिल कर धड़ल्ले से कैमिस्ट की दुकान खोलकर खुलेआम करोबार किया जा रहा है। सूत्रों के अनुसार वर्तमान में ड्रग्स के साथ शहरभर में ट्राईका अलप्राजोलम जैसी प्रतिबंधित दवाईयों के पत्ते भी बिकर रहे है।
आसानी से मिलने के कारण उसका सेवन कर युवा बर्बाद हो रहे है। जिसकी सुध लेने को खुद स्वास्थ्य विभाग तैयार नही दिख रहा है। नशीली दवाईयों और इंजैक्सनों की खेप बड़ी मात्रा में कहा से आ रही है। इसपर कोई कुछ कहने सुनने को तैयार नही है।
इस मामले में स्वास्थ्य विभाग की कार्यवाही मात्र खानापूर्ति तक सीमित हैं। कभी कभार दो चार कैमेस्टों की दुकान पर छापेमारी कर दवाई की बड़ी कंपनियों की चैकिंग की जा रही है। जबकि दवाईयो की आड में कई नशा तस्कर शहर में सक्रिय है जोकि युवा पीढ़ी को बर्बाद करने का काम कर रहे है।