उत्तराखंड का Cailab village जहाँ आज 60 में से दो ब्राह्मण परिवार बचे
रुद्रप्रयाग। मूलभूल सुविधाओं के अभाव में ग्रामीण इलाकों से पलायन जारी है। सरकारी उदासीनता के चलते गांव खाली होते जा रहे हैं। समय पर अगर इन गांवों तक सुविधाएं पहुंचाई जाती तो आज स्थिति कुछ अलग होती। जिस उद्देश्य के साथ राज्य निर्माण की लड़ाई लड़ी गई, वह सपना आज भी अधूरा है। सड़क, बिजली, पानी और स्वास्थ्य जैसी आधारभूत सुविधाओं से सैकड़ों गांव आज भी पूरी तरह से वंचित हैं। रुद्रप्रयाग जनपद की सीमा से लगे चमोली जिले की विकासखण्ड पोखरी का कैलब गांव ( Cailab village ) नीति-नियंताओं और सरकारों की उदासीनता का शिकार बना हुआ है।
यह गांव मूलभूत सुविधाओं की मार झेल रहा है। 60 ब्राह्मण परिवारों के इस गांव में आज मात्र दो परिवार ही गये हैं, जो अपनी बदहाली का रोना हो रहे हैं। ग्रामीण अपनी रोजमर्रा की आवश्यक सामग्री लाने के लिए दस से बीस किमी पैदल दूरी पैदल तय करने के लिए मजबूर हैं। कैलब गांव आजादी के 70 वर्ष बाद भी सड़क मार्ग से नहीं जुड़ पाया है। क्षेत्र में स्वास्थ्य सुविधाएं और शिक्षा तो ग्रामीणों के लिए सपना जैसा ही लगता है।
स्थिति ये है कि पिछले एक दशक से मात्र दो परिवारों के छः सदस्य गांव में रह रहे हैं, लेकिन सड़क न होने से गर्भवती महिलाओं और स्कूली छात्रों को भारी परेशानियों का सामना करना पड़ता है। हैरान और परेशान करने वाली बात यह कि जनसंख्या कम होने की वजह से कोई नेता व मंत्री भी आज तक वोट मांगने इस गांव की पगडंडियों में नहीं चढ़ा। ऐसे में सरकारी अधिकारियों का यहां आना तो बहुत दूर की बात है। यहां रह रहे ग्रामीणों का कहना है कि आबादी न होने से पूरा गांव खण्डहर और जंगल में तब्दील हो गया है और शाम ढलते ही ग्रामीण घरों में कैद हो जाते हैं।
Cailab village में दिन में भी डर लगता है
क्या दिन क्या रात हर समय भय रहता है कि न जाने कब जंगली जानवर आकर हमला कर दे। Cailab village की ममता गैरोला का कहना है कि जंगल और खण्डर में तब्दील हुए इस गांव में दिन में भी डर लगता है। अगर अपने मवेशियों को गौशाला से बाहर निकालना है तो एक व्यक्ति चैकीदारी के लिए रखना पड़ता है। कई बार दिन दोपहर में ही गौशाला से गुलदार गाय-भैंसो को मार देता है। अपने दर्द को बयां करती हुई वह कहती हैं कि हमारे लिए न तो सरकारें है और ना ही कोई नेता मंत्री।
प्रधान तक हमारी बातें सुनने को तैयार नहीं है। कैलब गांव के 25 प्रतिशत लोग फौज और दर्जनों लोग विभिन्न सरकारी विभागों में अपनी सेवायें दे रहे हैं| मगर जैसे-जैसे लोग सुविधा संपंन होते गए वैसे लोगों ने गांव की तरफ पलटकर देखना भी मुनासिब नहीं समझा। जबकि इस क्षेत्र के वरिष्ठ कांग्रेसी नेता राजेन्द्र भण्डारी कई बार शासन में मंत्री रह चुके हैं। वहीं वर्तमान विधायक महेन्द्र भट्ट भी इस गांव से ज्यादा दूर के नहीं है। डबल इंजन की भाजपा सरकार सबका साथ सबका विकास जैसे नारे तो उछालती है, मगर वास्तव में जमीनी हकीकत सरकार के दावों की पोल खोल रही है।
वोट बैंक कम होने से नेताओं का ध्यान इस गांवों की तरफ भले ही न गया हो, लेकिन युवाओं ने अब अपने गांव को पुनर्स्थापित करने की जो पहल शुरू की है, वह आशा जगाने वाली है। अब देखना होगा कि यह पहल कितना रंग लाती है और सरकारों पर इसका कितना असर हो पाता है। सड़क के अभाव में छात्रों को भी स्कूल तक पहुंचने में भारी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। हाईस्कूल एवं इण्टरमीडिएट की पढ़ाई के लिए थालाबैंड तक हर रोज दस किमी पैदल दूरी तय करनी पड़ती है, जबकि उच्च शिक्षा के लिए पोखरी बीस किमी दूर जाना पड़ता है।
विकट पारिस्थितियों में रह रहे Cailab village के लोग
हालांकि कैलब से पांच किमी नीचे हरिशंकर तक सड़क तो पहुंच चुकी है, मगर सड़क पर डामरीकरण न होने से यह मार्ग इतना खतरनाक बना हुआ है कि हर समय दुर्घटना का डर रहता है। इस वर्ष जनवरी में मोटरमार्ग पर एक सड़क हादसे में आधा दर्जन लोगों की जाने गई थी। इस वजह से यहां वाहनों का आना जाना कम ही होता है। इस गांव की शिखा, किरन, निधि आदि छात्राओं का कहना है कि जंगल का रास्ता होने के कारण कई बार हमारा सामना गुलदार, भालुओं के साथ अन्य जंगली जानवरों से भी होता है, लेकिन हम करें भी तो क्या स्कूल तो जाना ही है।
मूलभूत सुविधाओं की कमी से विकट पारिस्थितियों में रह रहे कैलब गांव की तरफ भले ही सरकारें और हमारा जनप्रतिनिधि संवेदशील न हुए हो, लेकिन गाव से बाहर पलायन कर चुके कुछ उत्साही युवाओं ने अपने गांव को पुनर्स्थापित करने की कार्य योजना नौ माह पहले से बनानी आरम्भ कर दी थी। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नारे में एक लाइन और जोड़ते हुए युवाओं ने इसे ‘‘सबका साथ, सबका विकास और करें अपने गांव से शुरूआत’’ के नारे को आगे बढ़ाते हुए इन दिनों गांव में श्रीमद् भागवत कथा एवं महाशिवपुराण कथा यज्ञ का आयोजन किया, जिसमें गांव से पलायन कर चुके सभी प्रवासी लोगों को गांव बुलाया गया।
11 दिवसीय इस धार्मिक अनुष्ठान में कैलब के करीब 50 प्रवासी परिवार गांव आकर शामिल हुए हैं और इस धार्मिक अनुष्ठान के साथ-साथ गांव को पुनस्र्थापित करने की योजना बना रहे हैं। मूल रूप से इस गांव के रहने वाले पत्रकार रमेश पहाड़ी कहना है कि युवाओं की यह पहल एक साकारात्मक परिणाम देगी और आसपास के ग्रामीणों में भी एक आशा जगायेगी। उन्होंने कहा कि सबसे पहली प्राथमिकता गांव को सड़क मार्ग से जोड़ना है और उसके बाद व्यवसायिक कृषि की ओर लोगों को प्रेरित किया जायेगा और कैलब गांव को इको टूरिज्म गांव बनाया जायेगा। इस गांव से पलायन कर चुके चन्द्र प्रकाश ने कहा कि जिस सोच के साथ यह पहल शुरू की गई है उसे मुकाम तक अश्वश्य पहुंचाया जायेगा।