Celebrated the first flag hoisting ceremony
देहरादून। Celebrated the first flag hoisting ceremony संस्कृति विभाग, रास बिहारी बोस सुभारती विश्वविद्यालय, देहरादून द्वारा बुधवार 30 दिसम्बर 2020 को नेता सुभाष चन्द्र बोस जी द्वारा आजाद भारत का ध्वजारोहण दिवस को हर्ष उल्लास के साथ मनाया गया।
बुधवार दोपहर रास बिहारी बोस सुभारती विश्वविद्यालय के प्रागण में कार्यकम के मुख्य अतिथि मेजर जनरल डा0 जी० के0 थपलियाल (सेना मेडल) एवं डॉ0 राम गुप्ता, कुलपति रास बिहारी बोस सुभारती विश्वविद्यालय के कर कमलो द्वारा ध्वजारोहण किया गया।
कार्यकम की अध्यक्षता कर रहे डा0 अतुल कृष्ण, प्रबन्ध न्यासी, रास बिहारी बोस सुभारती विश्वविद्यालय ने अपने सम्बोधन में यह व्यक्त किया कि आज के युवा 30 दिसम्बर यानि कि आज के दिवस के सम्बन्ध में कुछ नही जानते। ये उन्हें कभी बताया ही नही गया और न ही कभी उन्होंने किसी पाठय पुस्तक में पढ़ा, न घर में चर्चा हुई और न ही किसी नेता ने अपने उदबोधन में कहा।
ये हमारे माता-पिता-शिक्षकों-नेताओं का भी दोखा नही है क्योंकि कमोबेश वे भी इसी परिस्थति से निकले। हमें तो सदैव ही यह बताया गया कि भारत को स्वतन्त्रता अंहिसात्मक आन्दोलन के फलस्वरूप प्राप्त हुईं, परन्तु सच्चाई इससे विपरित है।
भारत को स्वतन्त्रता दिलाने में अंहिसात्मक आन्दोलन के योगदन को मैं नही नकारता परन्तु मुख्य योगदान हमारे असंख्य वीरों द्वारा दी गई कूर्बानियों का था। क्रान्तिकारियों के सबसे बड़े अभियाय का नाम था जो आजाद हिन्द फौज और उसके संस्थापक थे|
सम्पूर्ण अभियान की बागडोर नेताजी सुभाषचन्द्र बोस ने संभाली
ज्ञानी प्रीतम सिंह, रास बिहारी बोस एव जनरल मोहन सिहं के बाद सम्पूर्ण अभियान की बागडोर नेताजी सुभाषचन्द्र बोस ने संभाली। नेताजी ने 21 अक्टूबर 1943 में सिंगापूर में भारत की आजादी की घोषणा की जिसे अनेकों देशों ने मान्यता दे दी थी। 24 अक्टूबर सुभारती द्वारा अखण्ड भारत के स्वतनत्रता दिवस के रूप में मनाया जाता है।
21 अक्टूबर को बस एक कमी रह गईं थी और वह थी कि उस समय भारती अपनी जमीन का कोई भाग आजाद हिन्द फौज के पूर्ण अधिपत्य में नही था। नेताजी ने 21 अक्टूबर को ही यह घोषणा कर दी थी कि आजाद हिन्द फौज वर्ष 1943 समाप्त होने से पूर्व भारत की भूमि पर प्रवेश कर जाएगी।
ऐसा ही हुआ। आज ही के दिन आज से 77 वर्ष पूर्व 30 दिसम्बर 1943 को अण्डमान निकोबार की राजधानी पोर्ट ब्लेयर के जीमखाना मैदान जिसे आज नेताजी स्टेडियम के नाम से जाना जाता है, में नेताजी सुभाषचन्द्र बोस ने भारत की धरती पर आजाद भारत का ध्वज फहराया।
जापान ने अंग्रेजों को परास्त करके अण्डमान निकोबार पर 23 मार्च 1942 को अपना कब्जा कर लिया था। अण्डमान निकोबार द्विप समूह पर अधिपत्य प्राप्त कर लेने के उपरान्त रास बिहारी बोस के द्वारा ही स्थापित इण्डियन इण्डिपेनेडेंस ली ने अपनी इकाई यहाँ स्थापित की और अपना आधार बनाया। ये द्विप ही जापान के साथ संधि के अन्तर्गत आजाद हिन्द फौज को मिले।
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि डा0 जी० के० थपलियाल (सेना मेडल) ने सुभारती विश्वविघालय को इस उपलक्ष्य पर आमांत्रित करने के लिए धन्यवाद दिया। उन्होने कहा कि इस दिन पोर्ट ब्लेयर में आजाद भारत का ध्वज फहराकर नेता जी ने अण्डमान द्विप का नाम शहीद द्विप एवं निकोबार का नाम स्वराज्य द्विप रखा था।
हम शपथ लें अपने देश को इतना मजबुत बनाएँगे
उन्होंने भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को साधुवाद दिया कि उन्होने इस अवसर के 75 वर्ष पूरा होने पर वर्ष 2018 में उसी स्थान पर ध्यवजारोहण किया, जिस स्थान पर वर्ष 1943 में नेताजी ने किया था। आइए हम आज के दिन अपने उन वीरों को याद करें, जिनकी कूर्बानियों से आज हम आजादी की सांस ले पा रहें है। आज के दिन हम उन देशवासियों को भी श्रद्वासुमन अर्पित करते है जों पहल अंग्रेजों की और फिर जापानिया की बर्बरता का शिकार हुए।
हम शपथ लें अपने देश को इतना मजबुत बनाएँगे कि भविष्य में कभी कोई हमारी ओर आँख उठाकर भी देख न सके। कार्यकम के अतिथि पुरषोत्तम भट्ट .एंव संजय श्रीवास्तव सदस्य अपना परिवार (उतराखण्ड में समाजिक कार्य से जुड़ा संगठन) ने भी नेता जी के द्वारा भारत देश की स्वतंत्रता के लिए किए गये अथक प्रयासो के प्रति अपने सुविचार रखे।
अपना परिवार एवं पंजाबी सभा (उत्तराखण्ड में समाजिक कार्य से जुड़ा संगठन) के द्वारा डाॅ0 अतुल कृष्ण, प्रबधंक न्यासी, रास बिहारी बोस सुभारती विश्वविद्यालय उनके द्वारा किए गये चिकित्सा एवं शिक्षा क्षेत्रों में किए जा रहे उत्कृष्ट कार्यों के अतिरिक्त देश के प्रति जनजागरूकता अभियान के लिए अभिनंदन प्रकट किया।
कार्यकम के अन्त में संबोधित करते हुए डॉ0 श्री राम गुप्ता, कुलपति रास बिहारी बोस सुभारती विश्वविद्यालय ने नेता जी द्वारा भारत देश की स्वतंत्रता के लिए किये गए अथक प्रयासों को याद करते हुए कार्यकम में उपस्थित सभी अतिथियों का अभिवादन किया।
उन्होने बताया कि आज का दिन 30 दिसम्बर भारत के इतिहास में अत्यन्त महत्वपूर्ण है, क्योकि 30 दिंसबर 1943 को नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने आनंद मोहन सहाय, कप्तान रावत और कर्नल डीएस राजु (नेताजी के निजि चिकित्सक) के साथ पोर्ट ब्लयेर के जिमखाना ग्राउंड (वर्तमान नेताजी स्टेडियम) मे पहली बार राष्ट्रीय ध्वज फहराया था। यह पहला भारतीय क्षेत्र है जो ब्रिटिश शासन से मुक्त हुआ था।
नेता जी ने आजाद हिन्द फौज का गठन किया था
नेता जी सुभाष चन्द्र बोस स्वतन्त्रता संग्राम के अग्रणी तथा सबसे बड़े नेता थे। द्वितीय विश्वयुद्ध के समय, अंग्रेजों के विरूद्ध लड़ने के लिये, उन्होंने जापान के सहयोग से आजाद हिन्द फौज का गठन किया। उनके द्वारा दिया गया ‘जय हिन्द’ का नारा भारत का राष्ट्रीय नारा बना।
“तुम मुझे खून दो मैं तुम्हे आजादी दूंगा” का नारा ही था जो उस समय अत्यधिक प्रचलित हुआ। 21 अक्टूबर 1943 को सुभाष बोस जी ने आजाद हिन्द फौज के सर्वोच्च सेनापति के रूप में स्वतन्त्र भारत की अस्थायी सरकार बनायी जिसे जर्मनी, जापान, फिलीपींस, कोरिया, चीन, इटली, मान्चुकों और आयरलैंड इत्यादि ने मान्यता प्रदान करीं। जापान ने अंडमान व निकोबार द्विपो को इस अस्थायी सरकार को दे दिए|
सुभाष जी उन द्विपों में गये और उनका नया नामकरण किया। नेताजी की मृत्यु को लेकर आज भी विवाद है। जहाँ जापान में प्रतिवर्ष 18 अगस्त को उनका शहीद दिवस मनाया जाता है वही भारत में रहने वाले उनके परिवार के लोगों का आज भी यह मानना है कि सुभाष जी की मौत 1945 मे नहीं हुई थी व उसके बाद भी रूस में नजरबन्द थे।
उन्होने यह भी कहा की हम सभी को नेता जी सुभाष चन्द्र बोस एवं अन्य वीर स्वतंत्रता सेनानियों से प्रेरणा लेनी चाहिए कि किस प्रकार से उन्होंने देश की स्वतंत्रता के लिए स्वंय को देश के लिए समर्पित कर दिया। कार्यकम का संचालन श्रीमति स्वपनिल गर्ग, प्रवक्ता, फार्मेसी विभाग ने किया।
कर्मचारीयों की ओर से डॉ0 राहुल भयाना, प्रचार्य डेन्टल विभाग एंव छात्र छात्राओं की ओर से मनीषा ने अपने विचार रखे । इस अवसर पर, रास बिहारी बोस सुभारती विश्वविद्यालय के कुलसचिव डा0 मनोज सिन्हा, प्रसाशनिक अधिकारी डा0 रविन्द्र प्रताप सिंह, समस्त प्रधानाचार्य, शैक्षिक एंव गैर शैक्षिक कर्मचारी उपस्थित रहे।
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