Charlie Chaplin एक ऐसा अभिनेता जिसने बिना बोले सब को हंसाया
हिना आजमी
चार्ली चैप्लिन ( Charlie Chaplin) नाम तो सुना ही होगा। जी हाँ, दोस्तों ये वही चार्ली है जिनके लिबाज और अंदाज में हमारे राज कपूर साहब आये और फेमस हो गये। आवारा, अनाड़ी जैसी अजब गजब फिल्मे देने वाले राज कपूर चार्ली को ही अपना आदर्श मानते थे। उनकी छाया चार्ली की ही थी। चार्ली एक विदेशी एक्टर थे जिन्होंने जिन्दगी में संघर्ष किया, जिन्दगी को अपने ढंग से दर्शको को दिखाया।
पश्चिम में तो बार-बार चार्ली का पुनर्जीवन होता ही है। विकासशील दुनिया में जैसे-जैसे टेलीविजन और रेडियो का प्रसारण हो रहा है। एक बहुत बड़ा दर्शक वर्ग कॉमेडी का बन गया है, और आज की मांग के अनुसार ही कॉमेडियन चार्ली के नक्शे कदम पर चल रहे है लेकिन सच तो यह है कि चार्ली की तरह कोई नही हो सकता। चैप्लिन की फिल्मो ने दर्शको को बिना बोले ही हंसाया, जितना आज की बोलती फिल्में भी नही हंसा सकती हैं। उनकी फिल्मों के बारे में इतना कोई जानता नहीं था। अभी चैप्लिन पर करीब 50 वर्षों तक काफी कुछ कहा जाएगा, जैसे उनकी फिल्में भावनाओं पर टिकी हुई है बुद्धि पर नहीं।
Charlie Chaplin ने फिल्म कला को लोकतांत्रिक बनाया
“Metropoli”, “ the Rowan Steel last year in Marian,” bod the sacrifice, जैसी फिल्में दर्शक से एक उच्चतर एहसास की मांग करती हैं। चार्ली की फिल्मों का चमत्कार यह है कि उनकी फिल्मों को पागलखाने के मरीजों, विकल मस्तिष्क लोगों से लेकर आइंस्टाइन जैसे महान प्रतिभा वाले व्यक्ति तक कहीं अक्षर पर और कहीं सूक्ष्मतम रसास्वादन के साथ देख सकते हैं। चैपलीन ने ना सिर्फ फिल्म कला को लोकतांत्रिक बनाया ,बल्कि दर्शकों की वर्ग तथा वर्ण व्यवस्था को तोड़ा। यह अकारण नहीं है जो भी व्यक्ति समूह तंत्र गैरबराबरी नहीं मिटाना चाहता, वह अन्य संस्थाओं के अलावा चैप्लिन की फिल्मों पर भी हमला करता है।
चैप्लिन भी भीड़ का वह बच्चा है जो इशारे से बतला देता है कि राजा भी उतना ही नंगा है जितना मैं हूं और भीड़ हंस देता है। कोई भी शासकीय तंत्र जनता का अपने ऊपर हंसना पसंद नहीं करता। वह समझते थे कि मैं एक परित्यक्ता दूसरे दर्जे की स्टेज अभिनेत्री का बेटा हूं, मुझे बाद में भी भयावह गरीबी और मां के पागलपन से संघर्ष करना पड़ेगा। औद्योगिक क्रांति, पूंजीवाद तथा सामंतशाही से मगरूर एक समाज द्वारा दूर-दूर आया जाना इन सबसे चैप्लिन को भी जीवन मूल्य मिले जो करोड़पति हो जाने के बावजूद अंतर उनमें रहे।
Charlie Chaplin को एक बाहरी घुमंतू चरित्र बना दिया।
अपनी नानी की तरफ से चैप्लिन खानाबदोशों से जुड़े हुए थे और यह एक सुदूर रुमानी संभावना बनी हुई है कि शायद उस खानाबदोश औरतों में भारतीयता रही हो क्योंकि यूरोप के जिप्सी भारत से ही गए थे और अपने पिता की तरफ से वह यहूदीवंशी थे। इन जटिल परिस्थितियों ने चार्ली को हमेशा एक बाहरी घुमंतू चरित्र बना दिया। ये कभी मध्यवर्गीय बुजुर्वा या उच्चवर्गीय जीवन मूल्यों ना अपना सके, यदि उन्होंने अपनी फिल्म में अपने प्रिय छवि ट्रंप खानाबदोश आवारागर्द की प्रस्तुति की है, तो उसके कारण उनके अवचेतन तक पहुंचते हैं।
चार्ली के नितांता भारतीय सौंदर्यशास्त्र की इतनी व्यापक स्वीकृति देखकर राजकपूर ने भारतीय फिल्मों का एक सबसे साहसिक प्रयोग किया। आवारा सिर्फ ट्रंप का शब्द अनुवाद ही नहीं था, बल्कि चार्ली का भारतीयकरण भी था अच्छा ही था, कि राजकपूर ने चैप्लिन की नकल करने के आरोपों की परवाह नहीं की, बल्कि राजकपूर की आवारा और श्री 420 के पहले फिल्मी नायकों पर हंसने की और स्वयं नायक होकर अपने पर हंसाने की परंपरा नहीं थी।
जब Raj Kapoor ने Charlie Chaplin का अवतार लिया
1953 से 57 के बीच जब चैपलिन अपने जीवन की अंतिम फिल्म बना रहे थे तब राजकपूर चार्ली का अवतार ले रहे थे। फिर तो दिलीप कुमार, बाबुल, शबनम, कोहिनूर, लीडर गोपी, देवानंद, की नौ दो ग्यारह, फंटूश, तीन देवियां, अमिताभ बच्चन की अमर अकबर एंथनी तथा श्रीदेवी तक किसी ना किसी रूप से चैप्लिन का कर्ज स्वीकार कर चुके हैं।
बुढ़ापे में जब अर्जुन अपने दिवंगत मित्र कृष्ण की पत्नियों को डाकुओं से ना बचा सके और हवा में तीर चलाते रहे तो यह दृश्य कर्ण और हास्य और आक्रोष दोनों था, किंतु महाभारत में सिर्फ उसकी त्रासद व्याख्या स्वीकार की गई है। आज फिल्मों में किसी नायक को झंडों से पीटता भी दिखाया जा सकता है लेकिन हर बार में हमें चार्ली की ही ऐसी फलीहते याद आती है।