Civil society या नागरिक समाज
Civil society समाज का वह रूप जो राज्य की संस्था के साथ परिवार की संस्था से भी अलग माना जाता है नागरिक समाज राज्य के मुकाबले नागरिकों के अधिकारों और उनकी सत्ता को व्यक्त करने वाली प्रक्रिया और संगठनों से मिलकर बनता है| इसका मकसद होता है कि राज्य को संयमित करना और उसे नागरिक नियंत्रण में लाना।
नागरिक समाज की अवधारणा को प्रचलित करने में समकालीन अमेरिकी समाज विज्ञान का खास योगदान रहा है। वैसे समाज विज्ञान में 18वीं सदी से ही इस अभिव्यक्ति का प्रयोग हो रहा था। भारत में ऐसे हेगेल और ग्राम्शी द्वारा प्रयुक्त अलग-अलग अर्थों में समझा जाता है। जर्मन दार्शनिक हेगेल ने इसे बुर्जुआ समाज यानी पूंजीवाद समाज माना है, जहां व्यक्ति अपने निजी स्वार्थ का खुला खेल खेलता है और तर्क बुद्धि पर आधारित राज्य उसे संयमित करने की भूमिका निभाता है।
जरा इसे भी पढ़ें : राष्ट्र व राज्य का बढ़ता हुआ क्षय और कदम वापसी
मार्क्सवाद और उसके अनुयायियों ने राज्य को हिंसा और उत्पीड़न का अवतार मानते हुए भी नागरिक समाज के इसी मतलब को मान्यता दी और नागरिक समाज की रचना को शेयर कर नहीं माना| खासकर शीत युद्ध के जमाने में नागरिक समाज की अवधारणा सत्ता और प्राधिकार की ऐसी संरचनाओं की पर्याय बन गई है, जो राज्य के प्रभाव क्षेत्र के बाहर मानी जा सकती है।
कम्युनिस्ट पार्टी ने खुद को नागरिक समाज का पैरोकार करार दिया
इस बेचारी का ग्रह के कई तरह के असर हुए। सोवियत संघ के नेतृत्व में कम्युनिस्ट खेमे ने इसे सर्वहारा के राज्य के खिलाफ पूंजीवादी साजिश के रूप में देखा। सोवियत राज्य के खिलाफ चल रहे अंदरूनी भूमिगत आंदोलनों ने कम्युनिस्ट पार्टी की हुकूमत के खिलाफ खुद को नागरिक समाज का पैरोकार करार दिया।
जरा इसे भी पढ़ें : एक ऐसा साहित्यकार जो हमेशा विवादों से घिरा रहा
उधर अंतरराष्ट्रीय वित्तीय पूंजी के प्रमुख प्रतिष्ठानों विश्व बैंक और राष्ट्रीय मुद्रा कोष ने इस धारणा को अर्थव्यवस्था में राज्य के हस्तशिल्प विकास में राज्य की भूमिका को दरकिनार करने के रूप में इस्तेमाल करना शुरू किया। इन संस्थानों के प्रोत्साहन से गैर सरकारी संस्थाओं की परिघटना प्रकाश में आई। आज गैर सरकारी राजनीतिक प्रक्रिया मानव अधिकार संगठन और अन्य स्वयंसेवी संगठन, नागरिक समाज के प्रभावी दायरे का निर्माण करते हैं।
मार्क्सवादियों की आपत्ति के बाद भी अंतोनियो ग्राम्शी जैसे मार्क्सवादी विचारकों की रचनाओं ने इस विचार को लोकप्रिय करने में हाथ बताया। उन्होंने नागरिक समाज के दायरे को उत्पीड़न कारी राज्य पर काबू पाने के माध्यम की तरह देखा।