कोयला खाने (Coal Mine) हो सकती हैं सोना का स्रोत
NDA सरकार ने भूतकाल पर प्रकाश डालते हुए एक विशेष मुद्दे पर पहल की थी। 1973 में इंदिरा गांधी ने जिस कोयला उद्योग ( Coal Mine ) का सरकारीकरण करके वाहवाही लूटी थी और अपने को एक सोशलिस्ट नेता के रूप में साबित किया था, उसे अब आंशिक रूप से फिर से निजी क्षेत्र को देने की कवायद शुरू हो गई है।
मोदी सरकार आर्थिक सुधारों की दिशा में एक और बड़ा कदम उठा रही हैं। कैबिनेट के फैसले के बाद अब कोयला उद्योग के निजीकरण का नया रास्ता खुल रहा है। ऐसा नहीं है कि कोयला उद्योग के निजीकरण की पहल इससे पहले भी की गयी थी। मनमोहन सिंह सरकार के कार्यकाल में कोयला की खदानों की जिस तरह से बंदरबांट हुई।
खामियाजा अर्थव्यवस्था को भी भुगतना पड़ा था
उसके बाद 2014 के सितंबर में सुप्रीम कोर्ट ने 204 कोयला खदानों का आवंटन रद्द कर दिया था और मंत्रियों को अपना पद भी जाना पड़ा। इसका खामियाजा अर्थव्यवस्था को भी भुगतना पड़ा था। सन 2015 के मार्च में मोदी सरकार ने एक नया बिल पारित करके इस क्षेत्र में उदारीकरण की राह आसान कर दी थी। अब छोटे और मध्यम आकार के कोयले की खदानों को पारदर्शी तरीके से नीलामी संभव हो सकेगी।
भारत की सरकार कंपनी कोल इंडिया की समस्या यह है कि वह इतने बड़े पैमाने पर कोयले का उत्पादन नहीं कर पा रही है जितने की मांग है। इतना ही नहीं कोयले के दाम पर आधारित उस पर आधारित उद्योग के लिए घाटे का सौदा है। देश में ऊर्जा की मांग लगातार बढ़ती जा रही है। इसके साथ ही कोयला की भी मांग बढ़ती जा रही है।
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ना केवल थर्मल पावर प्लांट बल्कि स्टील, सीमेंट उद्योग में भी इसका इस्तेमाल होता है और इंडिया इतने बड़े पैमाने पर सजते कोयले का उत्पादन नहीं कर पा रही है। देश में कोयले के दाम ज्यादा है और आपूर्ति कम है नतीजन अरबों रुपए की लागत से बने थर्मल पावर प्लांट पूरी क्षमता से उत्पादन नहीं कर पा रहे हैं। कोयले के अभाव में कई क्षेत्र की हालत खस्ता हो रही है और बैंकों से उधार ली गई रकम डूबने के कगार पर है।