लखनऊ । कांग्रेस पार्टी उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव को लेकर भले ही लगातार यात्रएं निकाल रही है। राहुल गांधी समेत पार्टी के अन्य नेता भले ही पूरे सूबे को मथ रहे हों लेकिन पार्टी का प्रमुख लक्ष्य 2017 नहीं बल्कि उसके दो साल बाद 2019 में होने वाला लोक सभा का चुनाव है। हालांकि, कांग्रेस ने उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के मद्देनजर अपने भरोसेमंद और तजुर्बेकार लोगों की टीम लगाई है। अपने परम्परागत वोट बैंक (ब्राह्मण और मुस्लिम) को साधने के लिए पार्टी ने गुलाम नबी आजाद को प्रदेश का प्रभारी बनाया है और शीला दीक्षित को मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित किया है।
साथ ही पार्टी में गुटबंदी खत्म करने के उद्देश्य से राज बब्बर को प्रदेश का अध्यक्ष पद की कमान सौंपी है। कांग्रेस नरेंद्र मोदी और नीतीश कुमार के चुनावी रणनीतिकार रहे प्रशान्त किशोर की भी सेवा ले रही है। लेकिन, पिछले 27 साल से प्रदेश की सत्ता से वनवास झेल रही कांग्रेस को 2017 के विधानसभा चुनाव में बड़ी सफलता मिलेगी, इसको लेकर पार्टी के बड़े नेताओं में भी संदेह है। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि इतनी फेरबदल और कवायद के बाद प्रदेश में कांग्रेस के प्रति जनता में हलचल जरुर हुई है, लेकिन पार्टी सरकार बनाने की स्थिति में आने से अभी भी बहुत दूर है। पार्टी भी मानकर चल रही है कि प्रदेश में उसके पास जिताऊ प्रत्याशियों का टोटा है।
शुक्रवार को एक पूर्व मंत्री समेत अन्य दलों के कई नेता कांग्रेस में शामिल हुए। इसी दिन देर शाम प्रदेश अध्यक्ष राज बब्बर के पास राज्य के प्रमुख विपक्षी दल के एक पूर्व विधायक भी पहुंचे। उनके साथ कुछ कांग्रेसी भी थे। इस नेता ने भी कांग्रेस में शामिल होने की इच्छा दर्शायी तो राज बब्बर उनसे कुछ इसी अंदाज में बात करते सुने गये। उन्होंने कहा कि पार्टी में आपका स्वागत है लेकिन मैं आपको टिकट का आश्वासन नहीं दे सकता। राज बब्बर ने यह भी कहा कि यद्यपि हमें मालुम है कि हमारे पास प्रत्याशियों की कमी है, फिर भी मैं तत्काल आपको टिकट देने का आश्वासन नहीं दे सकता।कांग्रेस अध्यक्ष से पार्टी के कई नेता यह भी कहते सुने गये कि विधानसभा चुनाव में यदि पार्टी किसी अन्य दल से गठबंधन करेगी तो उसमें कांग्रेस का ही नुकसान होगा। इन नेताओं ने 1996 में बसपा के साथ हुए गठबंधन का भी हवाला दिया कि उस समझौते से कांग्रेस ही घाटे में रही।
इन लोगों ने यह भी कहा कि हम भले ही विपक्ष में बैठें वह मंजूर है लेकिन यदि किसी दल से गठबंधन किया गया तो हमारा मुख्य लक्ष्य 2019 का लोक सभा चुनाव भी इस कदम से गड़बड़ा सकता है। हालांकि यह पूछने पर कि क्या पार्टी का मुख्य फोकस लोक सभा चुनाव है, श्री बब्बर ने कहा, ‘‘ नहीं ऐसा कुछ नहीं है, कांग्रेस हर चुनाव को गंभीरता से लड़ती है।’’ उन्होंने दावा भी किया कि विधानसभा चुनाव के बाद सरकार कांग्रेस की ही बनेगी। राजनीतिक विश्लेषक कांग्रेस की इस रणनीति को पार्टी उपाध्यक्ष राहुल गांधी के कार्यक्रमों में भी तलाशते हैं। उनका मानना है कि राहुल गांधी उत्तर प्रदेश में अपने हर चुनावी अभियान के दौरान प्रदेश सरकार की अपेक्षा केंद्र की मोदी सरकार पर अधिक हमलावर होते हैं। ऐसे में यह स्वाभाविक सोच बनने लगी है कि शायद पार्टी का मुख्य फोकस लोक सभा चुनाव ही है।