खुले आम दोषियों के आपराधिक कार्यों पर पर्दा डाला गया : मदनी

Criminal activities were concealed

Criminal activities were concealed

नई दिल्ली| Criminal activities were concealed बाबरी मस्जिद की शहादत में संलिप्त सारे दोषियों को सीबीआई की विशेष अदालत ने 28 वर्ष की लंबी प्रतीक्षा के बाद आज आश्चर्यजनक तौर पर बाइज़्जत बरी कर दिया।

इस पर अपनी प्रतिक्रिया को प्रकट करते हुए जमीअत उलमा-ए-हिंद के महासचिव मौलाना महमूद मदनी ने कहा है कि यह फैसला अत्यधिक दुखद और न्याय के सिद्धांतों के विपरीत है। जिस तरह से प्रमाणों (सुबूतों) को उपेक्षित किया गया ।

खुले आम दोषियों के शर्मनाक और आपराधिक कार्यों पर पर्दा डाला गया है। इसका उदाहरण मुश्किल से ही मिलता है। यह एक ऐसा फैसला है जिसमें न इंसाफ किया गया है और न इसमें कहीं इंसाफ दिखता है।

इसने न्यायालय की आज़ादी पर वर्तमान में लगाए गए प्रश्नवाचक चिन्ह को और गहरा कर दिया है। जो कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर देश की बदनामी और जग हंसाई का कारण बनता है।

मौलाना मदनी ने आगे कहा कि यह निर्णय चिंताजनक भी है क्योंकि जहां एक तरफ इससे फासिस्टवादी और कट्टरपंथी तत्व जो कि दूसरी मस्जिदों को निशाना बनाने के लिए पर तोल रहे हैं। उन्हें बढ़ावा मिलेगा और देश में शांति सद्भाव को जबर्दस्त ख़तरा पैदा होगा।

अल्पसंख्यकों और कमजोर वर्गों के बीच निराशा फैलेगी

वहीं दूसरी तरफ देश में अल्पसंख्यकों और कमजोर वर्गों के बीच निराशा फैलेगी। न्यायालय पर से विश्वास में कमी आने के कारण बहुत सारे विवाद शांतिपूर्ण तरीके से हल किए जाने के बजाय ज़ोर ज़बरदस्ती और हिंसा के माध्यम से निर्धारित करने का चलन स्थापित होगा।

मौलाना महमूद मदनी ने देश के आम हितों एवं इंसाफ के सिद्धांतों के दृष्टिगत यह मांग रखी है कि सीबीआई को इस फैसले के खिलाफ़ उच्च न्यायालय में अपील करनी चाहिए और यह यकीनी बनाना चाहिए कि इस फैसले से पैदा होने वाले नुकसान से देश को कैसे बचाया जा सके।

मौलाना मदनी ने कहा कि 6 दिसंबर को बाबरी मस्जिद को ध्वस्त करना एक आपराधिक कार्य था। और इसके करने वालों को सज़ा मिलनी चाहिए।

6 दिसंबर 1992 को लाखों की संख्या में जमा हुए सांप्रदायिक और फासिस्ट शक्तियों व राजनीतिक दलों के नेताओं और उनके समर्थकों ने दंगा भड़काने वाले भाषण दिए, नारे लगाए फिर मिलकर 500 वर्षीय पुरानी बाबरी मस्जिद को ध्वस्त कर दिया।

अत्यधिक संसाधनों के बगैर अचानक ध्वस्त नहीं किया जा सकता था

देश व अंतरराष्ट्रीय मीडिया ने इसके वीडियो और फोटो बनाए, जो आज भी रिकॉर्ड में मौजूद हैं। इसलिए यह कहा जाना कि बाबरी मस्जिद का गिराया जाना षड्यंत्र नहीं था सरासर गलत है। क्योंकि इतनी मजबूत इमारत को अत्यधिक संसाधनों के बगैर अचानक ध्वस्त नहीं किया जा सकता था ।

इस संबंध में जस्टिस लिब्राहन कमीशन की रिपोर्ट भी बहुत ही स्पष्ट है। इसके अलावा देश की सबसे बड़ी अदालत सुप्रीम कोर्ट ने इस्माइल फारूकी केस 1994 फैसले में स्पष्ट तौर से कहा था कि जिन लोगों ने मस्जिद को ध्वस्त किया है।

ऐसा करने वालों ने अपराधिक और शर्मनाक कार्य किया है। हिंदू समाज को अपने अन्य सम धर्मी लोगों के ऐसे कार्य पर शर्मिंदा होना चाहिए। उन्होंने न सिर्फ एक धार्मिक स्थल को नुकसान पहुंचाया है। बल्कि देश के कानून, धर्मनिरपेक्षता और लोकतंत्र के आदर्शों सिद्धांतो को भी ध्वस्त किया है।

हाल में वर्तमान में बाबरी मस्जिद संपत्ति मुकदमें में भी सुप्रीम कोर्ट ने विशेष रुप से कहा कि बाबरी मस्जिद का निर्माण किसी धार्मिक ढांचे को तोड़ कर नहीं बनाया गया। बल्कि 6 दिसंबर को एक धार्मिक ढांचा ध्वस्त किया गया जो कुछ भी इस दिन कार्य किया गया, वह एक आपराधिक कार्य था और देश के कानून का उल्लंघन था।

जरा इसे भी पढ़े

दुनिया को अलविदा कह गये मशहूर शायर राहत इंदौरी
‘मोदी जिंदाबाद’ नहीं बोला तो बुजुर्ग गफ्फार को पीटा
वाह रे यूपी पुलिस, जिंदा बेटी के मर्डर में पिता व भाई को भेजा जेल