भारतीय सिनेमा जगत के पिता दादा साहब फाल्के Dadasaheb Phalke
हिना आजमी
Dadasaheb Phalke आज बॉलीवुड के सितारे विश्व के लोगों का मनोरंजन भी कर रहे हैं और देश को भी बड़ी -बड़ी हिट फिल्में दे रहे हैं। फिल्म इंडस्ट्री आज करोड़ों का बजट लेकर फिल्म बना रही है और उससे कई गुना ज्यादा कमा भी रही है, लेकिन यह जो फिल्म रूप हम देख रहे हैं इसकी शुरुआत कब और कैसे हुई? यूनेस्को की रिपोर्ट के अनुसार यह ज्ञात हुआ है कि विश्व भर में सबसे ज्यादा फिल्म अपने देश भारत में ही बनती है।
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प्रतिवर्ष यहां अलग-अलग अभिनेताओं की फिल्में बनती है। फिल्मों से जहां अभिनेता, डायरेक्टर, प्रोड्यूसर को फायदा मिलता है। वहीं सरकार को भी इसका कुछ फायदा मिलता है । फिल्मों की शुरुआत के कई चरण थे। पहले स्टिल चित्रों द्वारा कहानी बताई जाती थी , फिर चित्रों में गति आई लेकिन वे मूक फिल्म में थी। मूक फिल्मों से ही भारतीय सिनेमा की शुरुआत हुई। भारतीय सिनेमा के जनक दादा फाल्के साहब थे जिनके नाम पर आज बेस्ट और दिग्गज अभिनेताओं को अवार्ड दिया जाता है।
Dada saheb phalke का पूरा नाम धुंडीराज गोविंद फाल्के था
दादा साहब फाल्के का पूरा नाम धुंडीराज गोविंद फाल्के था। इन्होने भारत की पहली मूक फिल्म 1912 में राजा हरिश्चंद्र बनाई, इसकी कामयाबी ने उनको आर्थिक संकटों से मुक्ति दी। उस वक्त महिलाओं द्वारा अभिनय नहीं करवाया जाता था, इसलिए फाल्के ने सालुके नाम के एक रसोइए को ₹15 देकर तारामती की भूमिका निभाने के लिए तैयार किया।
फिल्म काफी हिट हुई ,दर्शकों को काफी पसंद आई और तभी से भारत फिल्मों का सफर शुरू हो गया। फाल्के साहब ने कई फिल्में बनाई जैसे- मोहिनी भस्मासुर, सावित्री सत्यवान, लंका दहन, श्री कृष्ण जन्माष्टमी । उन्होंने एक फिल्म कंपनी की स्थापना की जिसका नाम “हिंदुस्तान फिल्म”। इसमें पांच व्यावसायिक व्यक्तियों का सहयोग उन्होंने लिया। यह फिल्म कंपनी आज भी है।