Disaster Management Authority
देहरादून। आपदाओं की दृष्टि से संवेदनशील उत्तराखण्ड में सरकार लोगों की हिफाजद के कोई कारगर उपाए नहीं कर पाई है। खुद प्रदेश का आपदा प्रबंधन विभाग ( Disaster Management Authority ) खुद अपनी बदहाली पर आंसू बहा रहा है।
विभाग में कर्मचारियों सहित अन्य सुविधाओं की भारी कमी खल रही है। जिस पर सरकारी तंत्र कोई गौर करने को तैयार नही है। उत्तराखंड इस बात का दंभ भरता है कि वो देश का पहला राज्य है जिसने अलग से आपदा प्रबंधन विभाग बनाया, लेकिन आज भी जिलों का काम कॉन्ट्रैक्ट पर रखे गए कर्मचारियों से चल रहा है।
प्रदेश का आपदा विभाग इस समय कॉन्ट्रैक्ट के कर्मचारियों से काम चला रहा है। हालात ऐसे हैं कि जिलों में ज्यादातर जिला आपदा प्रबंधन अधिकारी संविदा पर काम कर रहे हैं। हालांकि उनके पास किसी तरह के अधिकार नहीं हैं।
आपदा प्रबंधन एक्ट 2005 में जिला आपदा प्रबंधन कमेटियों का प्रावधान है। इनके सर्वेसर्वा डीएम होते हैं। 2013 में केदारनाथ आपदा में रुद्रप्रयाग जिला जहां सबसे ज्यादा लोग मारे गए थे।
डिजास्टर मैनेजमेंट को चाक चौबंद मान लेना बड़ी गलती होगी
कई दिन बिना जिलाधिकारी के रहा और वजह थी जिलाधिकारी बीमार होना। ऐसे में महज जिलाधिकारी को जिम्मेदारी सौंप कर डिजास्टर मैनेजमेंट को चाक चौबंद मान लेना बड़ी गलती होगी।
जबकि जिला आपदा प्रबंधन अधिकारी की नौकरी जिलाधिकारी के रहमोकरम पर चलती है। परमानेंट कर्मचारी ना होने से कैपसिटी बिल्डिंग पर असर पड़ता है| आपदा सचिव का कहना है, श्जिले में आपदा के काम को अंजाम देने के लिए जिलाधिकारी ही सक्षम अधिकारी हैं |
एक्ट में भी उन्हीं के द्वारा ही सारा काम संचालित किया जाता है। कठिन भौगौलिक परिस्थति वाले प्रदेश में आपदा प्रबंधन कभी भी किसी सरकार की वरियता नहीं रहा।
संभवतः यही वजह है कि 18 साल बीत जाने के बाद भी इसके लिए कोई सरकार ठोस सिस्टम नहीं तैयार कर पाई है, जो आपदा से निपटने के लिए प्रदेश की पूंजी साबित हो सके।
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