दिए का पर्व दिपावली चढ़ा चाइनीज झालरों की भेंट

Diwali, the festival of lamps, was presented with Chinese chandeliers.
सड़क के किनारे लगी दीयों की दुकाने।

देहरादून। Diwali, the festival of lamps, was presented with Chinese chandeliers. दिए से रात को रौशनी करने के पर्व दिपावली में चाइनीज झालरों के आगे दिए की रौशनी मंद पडती जा रही है।

जिससे ऐसा प्रतीत हो रहा है कि भारतीय संस्कति के इस पर्व पर भी विदेशियों का अधिकार होता जा रहा है। भारतीय संस्कृति में दीपावली को दीपों का पर्व कहा जाता है। परंपरा अनुरूप लोग अपने घरों को दीयों की रोशनी से जगमग करते हैं। लेकिन, पिछले कुछ वर्षों में दीयों की जगह पूरी तरह चाइनीज झालरों ने ले ली है।

कुछ वर्ष पूर्व तक जहां दीयों की काफी खरीद होती थी, पिछले डेढ़-दो दशक से लोग दीयों को महज शगुन के तौर पर खरीदते हैं। आमजन का मानना है कि दीये जलाने को डेढ़-दो सौ रुपए का सरसों का तेल लेने के बजाए 30-40 रुपए की एक चाइनीज झालर खरीद ली जाए। रोशनी भी होगी व घर भी सुंदर लगेगा।

दावे भले ही संस्कृति बचाने के हों। लेकिन, ‘महंगाई के इस दौर में भारतीय संस्कृति पर लगे ‘चाइनीजश्श् ग्रहण ने उस गरीब की दीपावली खराब कर दी, जो इस उम्मीद में दीये लगाए कि दस-पांच दीए बेच उसके घर में भी एक दीया रोशन हो जाएगा।

दीयों की दुकान सजाए गोपाल कहते हैं कि वह पिछले कई वर्षों से दीये बेच रहा है। लेकिन, साल-दर-साल दीयों की मांग कम होती जा रही है। पूर्व में जहां दीपावली के मौके पर वह दो-तीन हजार दीये बेच देता था, वर्तमान में सौ दिए बेचने भी भारी पड़ रहे हैं।

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