शिक्षा क्षेत्र में यह स्थिति है नाकामी की मिसाल

Education sector
शिक्षा क्षेत्र में यह स्थिति है नाकामी की मिसाल Education sector

ये अक्सर बोला जाता है कि हमारे देश का सरकारी तन्त्र बहुत ढीला है,  हाँ यह बात कई जगह उचित प्रतीत होती हैं। इससे चिंताजनक और कुछ नहीं कि जब विश्वविद्यालयों को अंतरराष्ट्रीय स्तर प्रदान करने की बाते की जा रही थी, तब यह सामने आया कि लगभग 80 फीसद केंद्रीय विश्वविद्यालयों में (Education sector ) शिक्षा के आधे पद रिक्त हैं।

दुर्भाग्यपूर्ण यह है कि यह कोई ऐसा तथ्य नहीं है जो आजकल में सामने आया हो, एक लंबे अरसे से इस तरह की खबरें आ रही हैं कि केंद्रीय विश्वविद्यालयों और साथ ही उच्च शिक्षा के अन्य राष्ट्रीय ख्याति वाले संस्थानों में शिक्षकों के रिक्त पदों की संख्या बढ़ रही है, लेकिन मानव संसाधन मंत्रालय में नेतृत्व परिवर्तन के बाद भी हालात में सुधार नहीं हो आया है, नतीजा ढाक के तीन पात वाला ही नहीं, बल्कि उससे भी बुरा है, क्योंकि ऐसे संस्थानों की भी संख्या बढ़ रही है, जहां कुलपति अथवा निदेशकों की प्रतीक्षा हो रही है।

जरा इसे भी पढ़ें : ग्लोबल डेमोक्रेसी की अवधारणा पर विचार

इससे निराशाजनक और कुछ नहीं कि मानव संसाधन विकास मंत्री प्रकाश जावेडकर अपना आश्वासन पूरा करने में पूरी तरह से नाकाम है। उन्होंने पिछले वर्ष मार्च में लोकसभा में एक प्रश्न के उत्तर में यह स्वीकार किया था कि केंद्रीय विश्वविद्यालय में शिक्षकों के करीब 20% पद रिक्त हैं। उस समय उन्होंने इन रिक्त पदों को भरने में आने वाले कुछ समस्याओं का भी जिक्र किया था। ऐसा समझा जा रहा था, कि इन समस्याओं के निस्तारण में व्यस्त होंगे।

समस्याओं को दूर करने के बजाय उन से घिर गए

केंद्रीय विश्वविद्यालयों में शिक्षकों के पद खाली होने का ताजा सत्य उनकी नाकामी पर लगाने के साथ ही यह भी रेखांकित कर रहे हैं कि वह समस्याओं को दूर करने के बजाय उन से घिर गए हैं। एक  वर्ष बाद भी इस हालत में खास बदलाव नही आया। समस्या बस यही नहीं बल्कि केंद्रीय विश्वविद्यालय के शिक्षकों की कमी भी हैं।

जरा इसे भी पढ़ें : बाल मजदूरी : देश का नासूर जख्म

शिक्षकों की संख्या बल के अभाव से आईआईटी और आईआईएम जैसे प्रतिष्ठान संस्थानों में भी छात्रों को काफी परेशानियों का सामना करना पढ़ रहा है। आखिर ऐसी स्थिति में भारतीय शिक्षा संस्थानों को विश्वस्तरीय दर्जा दिलाने का क्या मतलब है, वो आश्वासन जाने किस तरह खोखले साबित हो रहे हैं, इसका प्रमाण यह है जो भारतीय शिक्षा संस्थान में विश्व के शीर्ष शिक्षा संस्थानों में अपनी रैंकिंग बढ़ाते देख रहे थे, वह अपने स्थान से  फिसलते दिख रहे हैं।

जरा इसे भी पढ़ें : देश में दिन पर दिन बढ़ती रोगियों की संख्या