रामबहादुर राय
मुनादी तो पहले ही हो चुकी है। अब चुनाव संग्राम छिड़ गया है। पश्चिम उत्तर प्रदेश में पहले चरण का मतदान होना है। इस कारण राहुल गांधी-अखिलेश का आगरा में रोड-शो जिस दिन रहा उसी दिन अमित शाह ने अपने रोड-शो के लिए मेरठ को चुना। इसलिए नहीं चुना होगा कि वह दिल्ली से घंटे-सवा घंटे के रास्ते पर है। बल्कि मेरठ को चुनने के अपने प्रतीकात्मक कारण हो सकते हैं। मेरठ का एक राजनीतिक इतिहास है।
वह पहले स्वतंत्रता संग्राम का गढ़ रहा है। जब देश अंग्रेजों से मुक्त होने जा रहा था तब कांग्रेस ने गुलाम भारत में अपना आखिरी अधिवेशन भी मेरठ में ही किया था। कांग्रेस की बागडोर जवाहरलाल नेहरू से आचार्य जे.बी. कृपलानी के हाथों में आई थी। थोड़े ही दिनों बाद देश आजाद हुआ। इस तरह मेरठ दो बातों का प्रतीक शहर है। पहला यह कि वह मुक्ति संग्राम का केन्द्र था। दूसरा कि वहीं से मुक्ति के सूरज को उदित होते हुए कांग्रेस ने देखा था। इस प्रतीक का 2017 के विधानसभा चुनाव से क्या कोई लेना-देना है। इसका जवाब उस नजरिए पर निर्भर करता है जिससे कोई चुनाव को देखेगा। उत्तर प्रदेश से ही राहुल गांधी ने 2006 में अपनी राजनीति प्रारंभ की। तब से उन्होंने नारा दिया और उसे वे दोहराते रहे कि राज्य में अराजकता छा गई है। कानून व्यवस्था जिन्हें संभालना चाहिए वे अपराधियों से मिल गए हैं। राहुल गांधी अकेले नेता नहीं हैं। इसे हर कोई महसूस करता है, बोले या नहीं। यह अलग प्रश्न है। सपा के साथ हो जाने के कारण अब कांग्रेस के नेता राहुल गांधी का वार नरेन्द्र मोदी पर है। बोल बदल गए हैं। मुद्दे वे नहीं रह गए हैं जो पहले वे उठाते थे। क्या इससे जनजीवन की वास्तविकता मिट जाएगी। लोग भुला देंगे कि उन्हें अपनी जान हर समय जोखिम में दिखती है।
अगर नहीं भुलाएंगे तो यह चुनाव सपा से मुक्ति के संग्राम में बदल जाएगा। यही संदेश अमित शाह देने मेरठ पहुंचे। वे वहां रोड-शो के लिए गए थे। लेकिन उन्हें एक कटु सत्य का सामना करना पड़ा। जैसे ही पहुंचे कि उन्हें इसकी खबर लगी। उन्हें उस वास्तविकता का सामना करना पड़ा जिसे वे भी भूल से गए थे। अभिषेक वर्मा की सरेआम हत्या कर दी गई थी। उसका दोष इतना ही था कि वह लुटेरों का विरोध कर रहा था। लुटेरों ने उसे गोलियों से भून दिया। वह नौजवान मात्र 21 साल का था। जिंदगी की दहलीज पर कदम ही रख रहा था कि उसे हत्यारों ने उठा लिया। राज्य व्यवस्था लाचार बनी हुई थी। हत्या पहले दिन की शाम को की गई थी। अगले दिन अमित शाह का मेरठ में रोड-शो था। उन्होंने उसे स्थगित किया। उस परिवार में पहुंचे। शोक जताया। उसके बाद उत्तर प्रदेश में बढ़ते अपराध पर बोले। अमित शाह ने जो आंकड़े दिए हैं वे अखिलेश यादव सरकार की कार्यकुशलता पर गंभीर प्रश्न चिर् िंलगाते हैं। उन्होंने आरोप लगाया है कि पिछले पांच साल में राज्य में 161 पफीसद अपराध बढ़े हैं। सब तरह के अपराध बढ़े हैं। बलात्कार, लूटपाट, हत्या आदि। रोज कम से कम 7650 ऐसी घटनाएं होती हैं। यह आंकड़ा दर्ज अपराधों का है। न जाने कितने अपराध बिना दर्ज किए अंधेरे में गुम कर दिए जाते हैं। भाजपा ने जगह-जगह होडिंग लगाई है। उसमें इन अपराधों का ब्योरा है। और उन्हें गिनाते-बताते हुए साधारण मतदाता से उस होडिंग में कहलवाया है कि श्नहीं चाहिए ऐसी सरकार।श् सापफ है कि अखिलेश यादव की सरकार इन अपराधों को रोकने के बजाए बढ़ाने में ही लगी है। इसके कारणों को कौन नहीं जानता! सभी जानते हैं।
पुलिस भर्ती में जो पक्षपात हुआ है उसके कारण एक बिरादरी के लोग उसमें छा गए हैं और वे अपराधियों को रोकने के बजाए बढ़ाने में अधिक रूचि लेते हैं। क्योंकि उनके लिए वे घटनाएं अपराध हैं ही नहीं। मेरठ की घटना अब चुनाव मुद्दा बनेगी। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की रैली से वह पूरे प्रदेश में खासकर पहले चरण के क्षेत्र में गूंजेगी। जहां लोग सुरक्षित न रह सकें वह सरकार किस काम की? यह विषय चुनाव में चर्चा का केंद्र बनेगा। मेरठ की घटना तो चिनगारी का काम करेगी। अजीब बात है कि मेरठ से थोड़ी ही दूर पर आगरा में राहुल गांधी-अखिलेश यादव के रोड-शो में इस कत्लेआम का जिक्र तक नहीं हुआ। मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने बयान तक नहीं दिया कि अपराधियों को खोजा जाएगा और कानून के हवाले किया जाएगा। आगरा को उन्होंने साझा रोड-शो के लिए इसलिए चुना क्योंकि वह बसपा के प्रभाव का क्षेत्र है। वे संदेश देना चाहते थे कि लड़ाई बसपा से है। भाजपा इस चुनाव को परिवर्तन का संग्राम बता रही है।