जैसै जैसै चुनाव नजदीक‌ आ रहा‌ है मनमुटाव बढ़ रहा‌

Estrangement is on the rise

Estrangement is on the rise

अनवार सफ़वी

तक़रीरों में रखा भी क्या, ख़ुद से ख़ुद की बात लिखूँ?
तक़रारों से बेहतर है,मैं शब्दो में जज़्बात लिखूँ?
ज़र्रा-ज़र्रा खूँरेज़ी से, थर्राता जब सारा शहर?
क़ातिल की शमसीर तले, हो रहमत की बरसात,लिखूँ?

देश की व्यवस्था में परिवर्तन के लिये सियासी दलों में आस्था रखने वालों के लिये यह समय संभल कर रहने का आ गया है। जगह जगह‌ मौत‌ का खेल शुरु है। जैसै जैसै चुनाव नजदीक‌ आ रहा‌ है मन-मुटाव बढ़ रहा‌ ( Estrangement is on the rise ) है। सच‌ को तहरीर करना आसान नहीं है! लेकिन कलम‌ के सच्चे सिपाही के लिये कोई व्यवधान भी नहीं है।

समाज आज भी इस विकृत वातावरण में भी पत्रकार समाज से ही सच बात को समाज में दमदारी से रखने की अपेक्षा करता है। सियासी आवरण में हो चुका अपराधीकरण सभ्य समाज के लिये घातक साबित हो रहा है। आज भी इनकी चपेट में आकर लोकतन्त्र रो रहा है? जिस संसद बिधान सभा में बुद्धजीवी, पत्रकार ,अधिवक्ता ,साहित्यकार, समाज सेवी , बैठकर जनहित के लिये बहस किया करते, कानून बनाया करते थे, अब उसी संसद मे अपराधी- गुन्डा -मवाली,- दुराचारी- ब्यबिचारी- ब्यापारी,- दुकानदार, तड़ीपार-, बैठकर चला रहे हैं सरकार! फिर आप समाज में सबके भला का सपना कैसे देख रहे हैं।

इस संसद में किसान हित की बात करने वाला, समाज हित की बात रखने वाला, कोई नहीं दिखता| वहां तो आतकवादीयो से निजात’ सांसद विधायक के सुबिधा बढ़ाये जाने की बात पर बहस। जे़ड प्लस सुरक्षा। ‘सियासी भौकाल के लिये आगे पीछे चलने के लिये गनर की मांग पर बिना भेद भाव सभी दलो के द्वारामेजों की थपथपाहट सुनाई देती है।

कौन किसान, बुनकर, गरीब, मजलूम ,असहाय की बात करता है? पहले संसद राज्य सभा सिवान परिषद की शोभा महाधिवक्ता,जनहित में बहस‌ करने वाले वक्ता राज्य सभा में गरिमामय उपस्थिति दर्ज कराते थे! अब फि़ल्मी दुनिया के सितारे !जातिवादी पोसको के सहारे सियासत की खेती करने वालो के दुलारे! पूंजी पतियो के नजारे देखे जा रहे हैं। आम आदमी से इनको क्या लेना देना?

जब जब लोकतन्त्र मे पंचवर्षीय कुम्भ का मेला लगता‌ है सारे सियासी मदारी अपना शामियाना लगाकर सियासी तकरीर शुरु कर देते हैं। इनके मतलबी तकरीर में आम आदमी अपनी तकदीर को तलासने का मुगालता पाल लेता है?और पांच साल अपने किये पर रोता है। समय के साथ बिश्वास‌ की बैसाखी भी टूट जाती है।

सियासी भेड़ियों का झुन्ड तभी बाहर निकलता है जब उनकी सियासी भूख बढ़ जाती है।आजकल हर तरफ दहशत भरी हलचल है! सियासी भेडिये रंग बिरंगी पोसाको में बाहर निकल चुके हैं।ललचाई नज़रों से हर गांव शहर कस्बा के तरफ देख रहे हैं! जगह जगह लोगो पर हमला भी शुरु हो गया है।

दल से बाहर निकलने वालों पर खतरा बढ़ गया है।यू पी में घमाशान है! हर तरफ तबाही का निशान है! कहीं ब्यापारी परेशान,! कहीं रो रहा किसान है! जीवन की गाढी कमाई दरवाजे पर सड रही है अन्य पड़ा खेत खलिहान है। गोदामों पर ताला पड़ा है नहीं बिक रहा धान है।

इस‌ देश की परम्परा वादी व्यवस्था मे सबकी रक्षा सीमा पर करता देश का जवान है! सबका पेट भरता किसान है! फिर भी कोई अधिकार नहीं देता भारतीय सम्विधान है।आजकल हर तरफ तैयारी जोरों पर है! लोकतन्त्र का मेला लगने वाला है!,सारे दलों के रिंग मास्टर आपने सियासी सर्कस को लेकर मैदान में उतर चुके हैं? बजने लगा है गाना नाच मेरे बुल बुल की पैसा मिलेगा। कहां कदरदान तुझे ऐसा मिलेगा?

अपनी अपनी डफ़ली अपनी अपनी राग के सहारे सियासी नौका को पार लगाने के लिये खेल शुरु है। सियासी सर्कष‌ के जमूरों का करतब देखिये? बिना पैसा टिकट बिक रहा है! फ्री का राशन मुफ्त का भोजन उठा लिजीये लुफ्त ? फिर कुछ भी नहीं रह जायेगा मुफ्त? सब वसूली होगी लगेगी चक्र बृधि वाली सूद?समय सकते में हैआने वाले कल के मंजर को सोचकर!आजादी के बाद से आज तक का नजारा आप ने देखा है! सोचिये समझिये फिर फैसला किजीये।

हमने जम जम दिया आब ए गंगा दिया!
तुमने भारत को दंगा ही दंगा दिया!
तुमने एक रंग के ख्वाब देखें मगर?
हमने हिंदोस्ता को स्वाभिमानी तिरंगा दिया।!!
जयहिंद

अनवार सफ़वी यूपी टाइम्स ज़िला सव्वाददाता

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