Finish Now Tyranny of terror – poem
एक द्वदं मन में उठ रहा है बदला लेने का ( Finish Now Tyranny of terror ) ,
क्योंकि मुझे दुख है किसी अपने को खोने का।
चाहती हूं उन हत्यारों को घर में घुस कर मारू,
पूरी के हत्यारों को मैं मौत के घाट उतारू।
लेकिन कर नहीं सकती कुछ में मेरा शासन ही कमजोर है,
करता यह उनकी पैरवी जिनके मन में बैठा चोर है।
हर बात, बात-चीत पर ही डाली जाती,
क्यों इन्हें इनकी औकात दिखाई नहीं जाती?
देश का बच्चा-बच्चा वतन पर मिटने को तैयार है,
अरे अब तो जागो शासन तुम्हें किस बात का इंतजार है?
क्यो प्रतीक्षा कर रहे हो इस बात की,
एक दिन आतंकी घर में घुसकर घर की इज्जत ले जाए।
अरे अब तो आंखे खोलो कहीं देर ना हो जाए,
नहीं डरते मरने से हम बस तुम्हारे आदेश का इंतजार है।
कहीं ऐसा ना हो यह जनता अपना फैसला खुद करें,
पूरी जैसे हालात कहीं पाकिस्तान में लाने का यह प्रबंध करें।
इसलिए सुनो तुम सुनो इनके दिल की पुकार,
खत्म करो अब आतंक का अत्याचार।।