अटल आयुष्मान योजना: अस्पतालों में जमकर हो रहा फर्जीवाड़ा

Fraudulent in hospitals

Fraudulent in hospitals

देहरादून। Fraudulent in hospitals राज्य हो या फिर केन्द्र सरकार की किसी भी योजना के आम आदमी तक पहुंचने से पहले ही सरकारी पलीता उसपर लग जाता है।  अटल आयुष्मान योजना पर पलीता लगाने में भी डाक्टरों ने कोई कोर कसर नही छोड़ी।

मरीजों के इलाज के नाम पर प्रदेश भर के अस्पताल में जमकर फर्जीवाड़ा ( Fraudulent in hospitals ) हो रहा है। जिसे रोक पाना अब सरकार के सामने नई चुनौती बनकर आ रहा है।

25 दिसंबर 2018 को उत्तराखंड सरकार ने सबसे बड़ी स्वास्थ्य बीमा योजना यानी अटल आयुष्मान योजना की शुरुआत की। योजना का मकसद 23 लाख परिवारों को फायदा पहुंचाना था, जिसके जरिए एक साल में एक परिवार को 5 लाख का इलाज मुफ्त मिलने की सुविधा थी।

अटल आयुष्मान योजना को 6 महीने से ज्यादा का वक्त बीत चुका है, पर आम लोगों के इलाज से ज्यादा ये हेल्थ स्कीम विवादों में घिरी रही। मरीजों के इलाज के नाम पर अस्पतालों और डाक्टरों ने जमकर फर्जीवाड़ा किया|

मरीजों को ज्यादा दिन भर्ती दिखाया गया

क्लेम के लिए मरीजों को ज्यादा दिन भर्ती दिखाया गया, अस्पतालों की क्षमता से ज्यादा मरीजों का इलाज किया गया। हद तो तब हो गई जब क्लेम के कागजों में ऐसे डाक्टरों से इलाज दिखाया गया है, जिनका उस मर्ज से कोई लेना देना ही नहीं है।

अटल आयुष्मान योजना में 4 जुलाई को काशीपुर के एम पी मेमोरियल अस्पताल को कारण बताओ नोटिस जारी किया गया। अस्पताल प्रशासन से पूछा गया है कि क्यों ना अस्पताल को अटल आयुष्मान स्कीम से हटा दिया जाए|

इससे पहले भी योजना में फ्रॉड को लेकर 12 अस्पतालों को कारण बताओ नोटिस जारी किया गया था, हालांकि बाद में इनमें से सिर्फ 2 अस्पतालों के खिलाफ कार्रवाई हुई। काशीपुर के जिस एमपी मेमोरियल हॉस्पिटल को नोटिस भेजा गया।

वहां अटल आयुष्मान योजना के नाम पर खूब फर्जीवाड़ा हुआ। जैसे 85 मामलों में मरीज जितने दिन भर्ती रहे उससे ज्यादा दिन के लिए उन्हें भर्ती दिखाया गया, ताकि क्लेम की बड़ी रकम अस्पताल के खाते में आ सके|

आईसीयू में क्षमता से ज्यादा मरीजों का इलाज किया गया

42 दिन ऐसे रहे जब अस्पताल के आईसीयू में क्षमता से ज्यादा मरीजों का इलाज किया गया। इससे बड़ी हैरानी की बात ये कि करीब 8 महीनों में कुल 1773 डाइलिसिस किए गए. और सभी मामलों में डॉक्टर संतोष श्रीवास्तव को दिखाया गया, जो ना तो नैफ्रोलॉजिस्ट हैं, ना ही एमडी हैं और ना ही डाइलिसिस के डॉक्टर हैं|

साफ है। सबसे बड़ा खतरा मरीज की जान को है, और कमाई भी मरीज के नाम पर ही हो रही है। पर अबतक राज्य स्वास्थ्य अभिकरण की तरफ से कोई कड़ी कार्रवाई देखने को नहीं मिली है।

मरीजों के इलाज के नाम पर हरिद्वार, देहरादून और ऊधमसिंहनगर जिले के कई अस्पताल अटल आयुष्मान योजना से मोटी कमाई कर रहे हैं। लेकिन इन तमाम चीजों के बावजूद शासन-प्रशासन की ओर से अभी तक कोई कार्रवाई न होना संदेहों को जन्म देता है।

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