आज़ाद” वही कहलाता है, जो “विचारों” से आजाद हो

"Free" is said to be the one who is free from "ideas"

“Free” is said to be the one who is free from “ideas”

“सियासत” इस कदर “अवाम” पे “एहसान” करती है,
“आंखे” छीन लेती है फिर “चश्में” दान करती है ।

शादाब अली।

देहरादून| “Free” is said to be the one who is free from “ideas” “आज़ाद” वही कहलाता है, जो “विचारो” से आज़ाद हो लेकिन आज के “नेता” अपने “आकाओं” के “विचारों” के अधीन है, अपने “पार्टी” के विचारों के “अधीन” है अपने मतलब लालच स्वार्थ के अधीन है। क्योंकि हम किसी “पार्टी” के “गुलाम” को “चुनते” है, धर्म जाति के “आधार” पर चुनते है आस्था और हम अपने मतलब लालच स्वार्थ के आधार पर चुनते है उम्मीद करते है उससे “अच्छाई” और “भलाई” की।

हम किसी “भले” या “अच्छे” इंसान को नही चुनते” हमे हर एक में बुराई और खराबी नज़र आती है क्योंकि किसी ना किसी मानसिकता के गुलाम हम भी बन बैठे है, मुझे खुद अपने भीतर की अच्छाई बुराई की समझ नही है तो दूसरे की समझ कैसे होगी। नतीज़ा आज के नेता मतलबी लालची इंसानियत के दुश्मन नालायक बेशर्म बने बैठे है। देशप्रेम राष्ट्रीय प्रेम समाजिक प्रेम से कोसों दूर किसी ना किसी के ग़ुलाम बने बैठे है। दूसरों के विचारों के अधीन तो ग़ुलाम रहते है।

ज़िन्दगी की हर सुबह कुछ शर्ते लेकर आती है,
ज़िन्दगी की हर शाम कुछ तजुर्बे देकर जाती है।

समीक्षा

जब हम किसी पार्टी को वोट देते है किसी को धर्म जाति के आधार पर वोट देते है, आस्था या किसी को अपने लालच स्वार्थ के आधार पर वोट देते है। तो हम भी किसी ना किसी के गुलाम तो रहे है हम जिसे वोट दिए है मेरा आधार क्या था तो दोषी हम भी तो है। अब आप ज़रा गौर फरमाएं अपने विवेक बुद्धि से सोचे वो किसके लिए काम करेगा। देश, समाज, विकास के लिए या अपने आकाओं पार्टी स्वार्थ के लिए। अब मेरे भीतर आप जैसे ज्ञानियों बुद्धिजीवियों को समझाने या कुछ बताने के लिए न अक़्ल है न बुद्धि है।

हमे रोने की, तकलीफ सहने की, भुखमरी की, एक दूसरे को दोषी देने की, गुलाम बनने की, दुःख व पीड़ा सहने की आदत सी हो चली है। हम वोट देते है एक साथ खड़े होकर मिल मिल कर एक दूसरे के परछाई में रहकर। लेकिन जब पार्षद प्रधान ब्लॉक प्रमुख/अध्यक्ष विधायक सांसद … बिकता है गलत करता है मानवता इंसानियत के खिलाफ कार्य करता है तो।

हम एक जुट नही रहते आपस मे मिलकर खड़े नही होते नतीजा जिसे हमने आपने अपने सेवा के लिए चुना था नौकर चुना था गुलाम चुना था सेवक चुना था वो राजा महाराजा बादशाह बनकर हुकूमत करने वाला बन जाता है और हम उनके सेवक बन जाते है।

हम दुबारा जन्म नही लेंगे आओ एक दूसरे को समझे मानवता इंसानियत की बात करें, एक दूसरे की आदर व सम्मान करें अहंकार गरूर घमंड का त्याग करें आओ मिलकर साथ चले। अपने अंदर से अहंकार को निकाल कर स्वयं को हल्का करें, क्योंकि ऊंचा वही उठता है जो हल्का होता है।

आओ हम किसी व्यक्ति को वोट करे अपना सेवक चुने उसे एहसास दिलाये की आप हमारे सेवक हो जब चाहे गे आप की सेवा समाप्त कर सकते है। किसी आक़ा के गुलाम को न चुने, किसी भी पार्टी के गुलाम को न चुने। किसी पार्टी के हो चाहे किसी धर्म जाति के हो अपना सेवक चुने और उसे याद दिलाते रहे हम अपना सेवक चुनरहे है मालिक या किसी पार्टी के गुलाम नही।

एक दूसरे को अपना भाई बहन मां बेटा बेटी और अपना परिवार समझे जो अपने लिए बेहतर अच्छाई की उम्मीद रखते है वही दूसरे के लिए भी रखें सोचे ……..फिर देखे यही स्वर्ग है यहीं जन्न्त है, मरने के बाद स्वर्ग में जाता है या नरक में किसने देखा है।

ज़माना नही बदलता है हम बदलते है हमारा सोच और विचार बदलता है। हम किसे चुनते है पार्टी के नेताओं को या अपने सेवक को …..। चुनाव आते ही नये नये उम्मीदवार पैसा के बल पर किसी चर्चित पार्टी से टिकिट लेकर आजाते है वो न हमारे बीच कभी काम किया है नाही रहा है या क़िस्मत आजमाने किसी भी पार्टी से खड़ा हो जाता है।

जनता व पार्टी दोनों ही इनको स्वीकार कर लेते है ! क्षेत्रीय जनता और पार्टी अच्छे उम्मीदवार की चुनाव ही नही कर पा रही है। इसलिए सरकार बदलती है विचार नही इसलिए सरकार के साथ साथ अच्छे सोच व विचारधारा का भी चुनाव करें। चुनाव ही आपके बच्चे की, देशकी, समाज की, देश मे खुशहाली की, विकास की, मानवता-इंशानियत की भविष्य का निर्माण करती है। एक एक शब्दों को दोहराया है ताकि आप समझे और अपने को समझाये।

“भूलचूक माफ़ी”
आप का अपना
शादाब अली
अनपढ़ लेख़क, बेaवकूफ समाजसेवी
मतलबी राजनेता, बे-ईमान पत्रकार।
9897139325, 9997777658
पत्रकार प्रेस परिषद जनरलिस्ट काउंसलिंग ऑफ इंडिया प्रदेश सचिव शादाब अली।

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