Gairsain को स्थायी राजधानी बनाने के मामले में कई दिग्गज नेता हैं साईलैंट
देहरादून। अठारह वर्ष की आयु के युवा हो चुके उत्तराखण्ड राज्य को 18 वर्ष के बाद भी स्थायी राजधानी नहीं मिल पायी है। इसके लिए देखा व समझा जाए तो कांग्रेस तथा भाजपा दोनों राजनैतिक दल मुख्य रूप से जिम्मेदार हैं। डेढ़ दशक से अधिक का समय गुजरने के बाद भी इस मामले का समाधान न निकल पाना स्वयं में एक दुखद विषय ही कहा जा सकता है।
खास बात तो यह भी है कि उत्तराखण्ड राज्य निर्माण के आंदोलन में अग्रणी भूमिका निभाने वाले दल उक्रांद के नेता भी कांग्रेस और भाजपा की सरकारों में सत्ता का भरपूर भोग कर चुके हैं और सरकारों की गोद में बैठकर इस दल के नेता यह भूल बैठे कि राज्य निर्माण के बाद उनका स्थायी राजधानी निर्माण का भी संकल्प व सपना है। आज जब यह दल धरातल पर है और भाजपा की सत्ता से कोसो दूर है तो उसे अचानक उत्तराखण्ड की स्थायी राजधानी के निर्माण की याद आ गयी है।
उत्तराखण्ड राज्य पर आज काफी अधिक आर्थिक बोझ
अठारह वर्ष की परिपक्व आयु के हो चुके उत्तराखण्ड राज्य पर आज काफी अधिक आर्थिक बोझ है। मात्र 5 संसदीय सीटों वाले इस छोटे से राज्य पर जो बोझ बना हुआ है, उसके लिए भाजपा, कांग्रेस व उक्रांद तीनों ही पार्टियां समानांतर दोषी ठहराई जा रही हैं। हैरानी की बात यह है कि आज जब उक्रांद सूबे की सत्ता में नहीं है तब उसने स्थायी राजधानी वाले सबक अथवा मुददे को हवा देनी शुरू कर दी है।
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ऐसे में उक्रांद को एक मौका परस्त दल बताकर उसके नेताओं को कटघरे में खड़ा किया जा रहा है। गैरसैंण (Gairsain) का मुददा ऐसे समय में उठाया जा रहा है जब लोकसभा के आम चुनाव के लिये एक वर्ष का समय है और केन्द्र व राज्य में भाजपा की सरकारें हैं। साथ ही उत्तराखण्ड में निकाय चुनाव का शंखनाद बजने वाला है।
दरअसल, उक्रांद के पास राज्य की विधानसभा में एक भी सदस्य नहीं है ऐसे में वह राज्य सरकार की घेराबंदी आगामी चुनाव को देखते हुए करने की फिराक में है। इस दिशा में इस दल ने अपनी रणनीति पर काम करना प्रारंभ कर दिया है। दिगर बात यह है कि उक्रांद ने भले ही गैरसैंण मुददे पर अपनी राजनैतिक रोटियां सेंकनी एक बार फिर से तेज कर दी हों, लेकिन सत्तारूढ़ भाजपा व विपक्षी पार्टी कांग्रेस का Gairsain को राज्य का स्थायी राजधानी बनाने की दिशा में रूख आज भी स्पष्ट नहीं है।