देहरादून में 350 बीघा सरकारी जमीन को कब्जा कर बेचने का ‘खेल‘

Game of selling 350 bighas of government land
यह है वह जमीन।

Game of selling 350 bighas of government land

रायपुर, लाडपुर, चकपुर व नत्थनपुर की 350 बीघा जमीन का मामला
नेता, माफिया और अफसरों का गठजोड़, सीबीआई जांच की मांग

देहरादून। Game of selling 350 bighas of government land सोशल एक्टिविस्ट व एडवोकेट विकेश सिंह नेगी ने देहरादून कचहरी परिसर स्थित अपने कार्यालय में प्रेसवार्ता को संबाधित किया। इस दौरान उन्होंने देहरादून के रायपुर रिंग रोड़ क्षेत्र में 350 बीघा के करीब सरकारी जमीन को कब्जा कर बेचने के ‘खेल‘ से पर्दा उठाया।

विकेश सिंह नेगी ने सुप्रीम कोर्ट के जजमेंट, सीलिंग एक्ट, एडीएम देहरादून के जजमेंट, सहित जमीन के असली मालिक कुंवर चंद्र बहादुर के एडवोकेट के द्वारा कोर्ट में दिया गये दस्तावेज भी पत्रकारों के सम्मुख प्रस्तुत किए।

देहरादून शहर में सरकारी जमीनों को खुर्द-बुर्द करने का खेल जारी है। नया मामला रायपुर, लाडपुर, चकरायपुर और नत्थनपुर की लगभग 350 बीघा जमीन को बेचने का है। सीलिंग की इस जमीन को भूमाफिया, नेता और तहसील अधिकारियों की मिलीभगत से बेच दिया गया है।

सोशल एक्टिविस्ट एडवोकेट विकेश सिंह नेगी के अनुसार यह जमीन अरबों रुपये की है। उनका कहना है कि इस मामले की उच्च स्तरीय जांच होनी चाहिए। उन्होंने इस मुद्दे पर हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर की है।

साथ ही बैंको द्वारा किस आधार पर एनओसी और लोन दिया जा रहा है। इसकी जांच के लिए सीबीआई निदेशक को भी पत्र लिखा है। जिसमें उन्होंने इस पूरे मामले की जांच कराने का आग्रह किया है।

रातों-रात चाय बागान बना दिया

रिंग रोड की जमीन रायपुर, लाडपुर, चकराय पुर और नत्थनपुर गांव की है। 1974 में यह जमीन सीलिंग एक्ट के तहत आ गयी थी। जानकारी के अनुसार जमीन को बचाने के लिए कुंवर चंद्रभान ने यहां रातों-रात चाय बागान बना दिया।

मामला एसडीएम कोर्ट में गया। 31 जुलाई 1996 को अपर कलेक्टर जिंतेंद्र ने इस जमीन को सीलिंग से छूट देने का फैसला सुनाया। इसके बाद मामला सुप्रीम कोर्ट में गया तो सुप्रीम कोर्ट ने 24 अक्टूबर 1996 को फैसला दिया कि 10 अक्टूबर 1975 के बाद इस जमीन की जो भी सेल डीड होगी वो शून्य हो जाएगी। यानी जमीन सरकार की होगी।

आपको संज्ञान में लाना चाहता हूं कि वर्तमान में यह एक एक्ट बन गया है। सोशल एक्टिविस्ट व एडवोकेट का तर्क है कि इस आधार पर चकरायपुर की जमीन खसरा संख्या 202, 204, 205 आदि सरकारी जमीन हैं।

इसके बावजूद संतोषी अग्रवाल की मां इंद्रावती अग्रवाल ने 17 जून 1988 में 35 बीघा जमीन की सेल डीड बना दी। सुप्रीम कोर्ट के आदेशानुसार यह जमीन सेलडीड बनने के साथ ही सरकार को स्वाभाविक रूप से चली गयी।

उनका कहना है कि मजेदार बात यह है कि इस सेल डीड का दाखिला खारिज 19 मार्च 2020 को हुआ और 9 अक्टूबर 2020 को इस जमीन को इंद्रावती के वारिसान संतोष अग्रवाल के नाम कर दिया गया। उनका आरोप है कि तहसील की मिलीभगत से इस गैरकानूनी कार्य को अंजाम दिया गया।

पुराना खसरा नंबर 74 है जो कि सरकारी जमीन है

अहम बात यह है कि संतोष अग्रवाल सरकारी जमीन को अपनी बता कर फर्जी मुकदमें दर्ज कर रहा है। उधर, इस जमीन पर जगह-जगह संतोष अग्रवाल के नाम पर बोर्ड लगाए गये हैं कि यह जमीन संतोष अग्रवाल की है।

सोशल एक्टिविस्ट व एडवोकेट विकेश नेगी के अनुसार लाडपुर में कुमारी पदमावती ने भाजपा को 16 बीघा जमीन जो कि 43 क और 43 ख में दर्ज है। इस जमीन को 20 दिसम्बर 2011 को बिशन सिंह चुफाल के नाम किया गया।

इसका पुराना खसरा नंबर 74 है जो कि सरकारी जमीन है। इसी तरह से मीनाक्षी अग्रवाल पत्नी दीपक अग्रवाल ने भी चाय बागान की जमीन को बेच दिया। लाडपुर में ही पदमावती ने आरती के नाम चाय बागान की जमीन की रजिस्ट्री की और आरती ने यह जमीन कई लोगों को बेच दी।

यह जमीन भी लगभग 30-40 बीघा है। उन्होंने पुराने और नये खसरा नंबर की सीरीज जारी कर बताया कि यह जमीन सरकार की है और इसे तेजी से खुर्द-बुर्द किया जा रहा है।

सोशल एक्टिविस्ट व एडवोकेट विकेश नेगी के मुताबिक नेता इस घोटाले में नेता, अफसर, ठेकेदार और हिस्ट्री शीटर की मिलीभगत है। सबसे अहम बात यह है कि इस जमीन पर बैंक लोन भी दे रहे हैं।

उनकी मांग है कि बैंकों के खिलाफ सीबीआई जांच हो और साथ ही दोषी लोगों के खिलाफ सीलिंग एक्ट के सेक्शन 35 के तहत मुकदमे दर्ज किये जाएं। इसके साथ ही एमडीडीए से भी जवाब तलब किया जाये कि आखिर व नक्शे किस आधार पर पास कर रहा है।

इस मामले में एमडीडीए अधिकारियों की भी मिलीभगत नजर आ रही है। क्योंकि बड़ा सवाल यह है कि कैसे चाय बागान को मास्टर प्लान से गायब कर दिया गया?

मेरे राज्य सरकार से मांग है कि इस जमीन की रजिस्ट्री पर तुरंत रोक लगाई जाए और जमीन की खरीद-फरोख्त करने वालों पर केस दर्ज हों। उन्होंने कहा कि इस मामले की उच्चस्तरीय जांच होनी चाहिए।

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