उजड़े हुए सभी गाँव (Village) खण्डर में तब्दील हो जायेंगे
हमारे देश के गांव आज आखिर क्यों घोस्ट विलेज का रूप धारण कर रहे हैं| क्यों हमारे गांव अब खाली हो रहे हैं इन गांव को घोस्ट विलेज की संज्ञा क्यों दी गई है| इन्हें भूतिया गांव इसलिए कहा जा रहा है क्योंकि आज यहाँ कोई परिंदा भी नहीं रहता तो इंसान तो दूर की बात है ।
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आज खाली होते गाँव इस बात की ओर संकेत कर रहे हैं कि गांवों से पलायन का सिलसिला ऐसे ही चलता रहा तो वह दिन दूर नहीं जब उजड़े हुए सभी गाँव खण्डर में तब्दील हो जायेंगे। नब्बे के दशक में भारत में आधी से ज्यादा आबादी गांवों में निवास करती थी और एक आज का दिन है जहाँ गांव उजड़कर मानवहीन हो रहे हैं। उत्तराखंड के वे गाँव सूने पड़े हैं जहाँ कभी त्योहारों पर धूम होती थी।
शहरी चकाचौंध और सुविधायें देखकर युवा वहीं बस जाते हैं
शिक्षा, स्वास्थ्य, संचार जैसी सुविधाएं कई गांवों में उपलब्ध नहीं है जिस कारण ग्रामवासियों को कई मीलों पैदल चलकर ही शहर जाना पड़ता है। युवा रोजगार की तलाश में शहरों की ओर रुख़ करते हैं और शहरी चकाचौंध और सुविधायें देखकर वहीं बस जाते हैं। उनके बूढ़े माँ-बाप अकेले कब तक जीवित रहेंगे| अस्पतालों के अभाव में भी लोगों को वक़्त पर इलाज नहीं मिल पाता। परिवहन सुविधा न होने पर कोई जिंदगी-मौत से जूझ रहा व्यक्ति शहर न पहुंचने से पहले ही दम तोड़ देता है।
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सूचना क्रांति (Information revolution) से भी हमारे गांव वंचित
पेयजल-बिजली का संकट भी उनकी हालत खस्ता कर देता है। सूचना क्रांति से भी हमारे गांव वंचित हैं। हम इस स्तिथि को ऐसे देखे कि जैसे गांव से पलायन हो रहा है अगर उसी प्रकार अगर भारत से दूसरे देश में पलायन हो तो क्या होगा, यह बहुत दयनीय स्थिति होगी। देश की सरकार विचार करे कि यदि सभी गाँव खाली हो गए तो खेती कौन करेगा, ऐसे में अनाज का अकाल पड़ जायेगा और कृषि आधारित उद्योग धंधे ठप्प हो जायेंगे जिससे कृषिप्रधान कहलाने वाले भारत की अर्थव्यवस्था चरमरा जायेगी। हालांकि राज्य में पलायन आयोग का गठन किया गया लेकिन इसमें तेज़ी लाने की जरूरत है।