विचार और अभिव्यक्ति के लिए भाषा की जरूरत होती है
हिना
ब्रिटिशों ने सारी दुनिया पर राज किया| देशों को अपना गुलाम बनाया , उसके उपनिवेशों में अंग्रेजी को ही आधिकारिक रूप में रखा गया और जबरन उपनिवेश देशों में थोपा गया| इंसान को अपने विचार और अभिव्यक्ति के लिए भाषा की जरूरत होती है| किसी भाषा के सामान्य ना होने पर इंसान को अपनी बात कहने में बहुत परेशानी होती है। ईश्वर ने सभी को जबान दी है चाहे वह इंसान हो या जानवर, सभी जीव कि अपनी संचार की भाषा होती है। हमारे देश में भी हिंदी का इतिहास बहुत लंबा है जो कि इस प्रकार है।
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हिंदी (Hindi language) के जन्म के बाद, इसमें कई भाषाएँ मिली। हजारों वर्षों बाद हिंदी सफर करती हुई] आज इस युग में पहुंची है। दक्षिण भारत में इसका विरोध कर हिंदी को ठेस पहुँचाई गयी। कितने समर्थन के बावजूद भी हिंदी अपना अस्तित्व खो रही है, जहां वैशिवक मंच पर इसको बढ़ावा मिल रहा है वही अपने ही जन्मस्थान में उसे ठुकराकर अंग्रेजी को सरताज बनाया जा रहा है। आज हर कोई अपने बच्चों को अंग्रेजी स्कूल में ही पढ़ाना चाहता है।
अंग्रेजी (English) के अंधभक्त व प्रांतीय समर्थक Hindi नही स्वीकारते
अंग्रेजी के अंधभक्त व प्रांतीय समर्थक हिंदी नही स्वीकारते हैं। निज भाषा छोड़ उस भाषा का हमारे दिलों पर राज है जिसने कई सालों तक हमें गुलामी की जंजीरों में जकड़े रखा। आधिकारिक भाषा के रूप में भले ही हिन्दी सरकारी कार्यालयो में चल रही है लेकिन निजी संस्थानों व हाई क्लास लोगों में अंग्रेजी का चलन है। यदि हम अंग्रेजी पढना-बोलना नही जानते तो हम कहीं बोलते हुए हिचकते हैं। अंग्रेजी बोलने वाला ही शिक्षित समझा जाता है।
विदेशों में हिंदी की अहमियत समझते हुए बढ़ावा मिल रहा है लेकिन हमारे अपने ही देश में hindi का स्वरूप और अस्तित्व संकटग्रस्त है। ऑक्सफ़र्ड जैसे विश्वविद्यालयों में हिन्दी को बढ़ावा मिल रहा है, इंटरनेट पर भी हिंदी का प्रयोग हो रहा है, हिंदी साहित्यिक रचनाओं को निजी भाषा में अनुवाद कर भारतीय संस्कृति को बढ़ा रहे हैं। चीन-जापान में हर क्षेत्र में अपनी भाषा का प्रयोग किया जाता है।
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आजादी के बाद भी क्यों हमारी मानसिकता गुलाम है, क्यों फैशन-पश्चिमीकरण के रंग में हम इतने रंग गये की स्वभाषा को पीछे धकेल अंग्रेजी को सरताज बना बैठे हैं ऐसे ही चलता रहा तो हमारी भावी पीढ़ी हमारी मातृभाषा हिंदी औऱ संस्कृति को गौरवपूर्ण स्थान नही देगी जिसके जिम्मेदार हम स्वयं ही होंगे। एक दिन हिंदी दिवस मनाने से हिंदी का अस्तित्व नहीं बचेगा। हिंदी भारतीय साहित्य और संस्कृति की धरोहर हमें जरूरत है इसे सम्भालने की।