Important contribution of Uttarakhand in protecting the environment
देहरादून।Important contribution of Uttarakhand in protecting the environment प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष करन माहरा ने विश्व पर्यावरण दिवस पर प्रदेशवासियों को शुभकामनाएं दी हैं। करन महारा ने कहा कि विश्व के पर्यावरण की रक्षा में उत्तराखण्ड का महत्वपूर्ण योगदान है यहां की अनेक महान विभूतियों ने पर्यावरण की रक्षा के क्षेत्र में अपनी अहम भूमिका निभाई है, उन्होंने कडे संघर्ष के उपरान्त यहां के पर्यावरण की रक्षा की हैै।
प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष ने कहा कि चिपको आन्दोलन के अग्रणी नेता स्वनामधन्य स्व0 सुन्दरलाल बहुगुणा, चण्डी प्रसाद भट्ट, गौरा देवी, डाॅ0 अनिल प्रकाश जोशी आदि महान पर्यावरण विदों ने पर्यावरण की रक्षा के लिए समाज को नई दिशा देने का काम किया है। उन्होंने कहा कि मध्य हिमालय का भारत की रक्षा में महत्वपूर्ण योगदान रहा है उसी प्रकार उत्तराखण्ड की गोद से अवतरित मां गंगा ने पर्यावरण की रक्षा के साथ-साथ करोड़ों लोगों को जीवन देने का काम कर रही है।
करन माहरा ने कहा कि पर्यावरण की रक्षा में उत्तराखण्ड के महत्व को देखते हुए अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर लोगों को हिमालयी क्षेत्र की रक्षा के लिए आगे आना चाहिए। उन्होंने सभी हिमालयी राज्यों का आह्रवान किया कि हिमालयी क्षेत्र के विकास के लिए लिए अलग नीति बनायी जानी चाहिए।
उन्होंने कहा कि यदि हिमालयी क्षेत्र के लिए अलग नीति नहीं बनाई जाती, वहां के युवाओं, महिलाओं के हितों की रक्षा समय पर नहीं हो पाई तथा हिमालय की रक्षा नहीं हो पाई तो पूरे विश्व को इसका नुकसान उठाना पड़ेगा। आज समय की मांग है कि हम सबको मिलकर पर्यावरण की रक्षा के साथ-साथ हिमालय की रक्षा के लिए नये सिरे से सोचना होगा।
श्री महरा ने जोर देकर कहा कि विश्व के पर्यावरणीय वातावरण में तेजी से बदलाव आ रहा है जिसका असर हिमालय के हिमखण्डों पर भी पड़ रहा है। उत्तराखण्ड राज्य 67 प्रतिशत वनों से आच्छादित है तथा जीवन दायिनी गंगा, यमुना के साथ ही उत्तराखण्ड से निकलने वाली उसकी सहायक नदियों का भी पर्यावरण की रक्षा में महत्वपूर्ण योगदान है, उनकी भी रक्षा की जानी चाहिए।
प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष ने केन्द्र सरकार से मांग की कि हिमालयी राज्यों के लिए एक ‘‘सस्टिनेबल हिमालयन डेव्लप्मेंट पालिसी’’ बनायी जाय। हिमालयी राज्यों की सबसे बड़ी संपदा जल एवं जंगल हैं, मध्य हिमालयी क्षेत्र के जंगलों तथा जल को प्राकृतिक संसाधन मानते हुए उसका आंकलन कर इन क्षेत्रों को ग्रीन बोनस दिया जाना चाहिए। मध्य हिमालय के संरक्षण हेतु हिमालयी राज्यों के मैदानी, तराई एवं भावर क्षेत्रों के लिए भी नीति बनाने की आवश्यकता है, क्योंकि निरंतर वनों के क्षरण से गर्म हवायें सीधे स्नोलाईन पर प्रभाव डालने का काम कर रही हैं।