पत्रकारों की हत्या पर क्यों मौन रहती है जनता Journalist
हिना आज़मी
समाज की समस्याओं को उजागर कर सरकार तक पहुंचाने वाला पत्रकार (Journalist), जब शासन या किसी बड़े अफसर के विरुद्ध जाकर भ्रष्टाचार का पर्दाफाश करता है तो उसे इसके बदले मिलती है मौत। यह सिर्फ अपने देश में ही नहीं बल्कि विदेशों में भी होता है। इसी तर्ज पर हम स्लोवाकिया और अपने देश में पत्रकारों की मौत के मामले पर गौर करें तो हमें क्या मिलता है?
दोस्तों, स्लोवाकिया यूरोप स्थित एक छोटा सा देश है। यह जनसंख्या और क्षेत्रफल की दृष्टि से भारत से कई हजार गुना छोटा है। फिर भी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के मामले में इस देश में जनता शासन के विरुद्ध जाकर क्रांति ला देती हैं। हम जिक्र कर रहे हैं उन पत्रकारों की मौत का जिन्होंने समाज की सेवा के लिए, अपने कर्तव्य का पालन करने के लिए अपनी जान देना ही मुनासिब समझा, बजाय इसके कि वह बिक जाए।
कुछ Journalist के दिल में अभी भी नैतिक मूल्यों के खेत लहलहाते हैं
आज भले ही पत्रकारिता बिक गई हो लेकिन कुछ मीडियाकर्मियों के दिल में अभी भी नैतिक मूल्यों के खेत लहलहाते हैं , उन्हें आंधियों का डर नहीं होता। हाल ही में स्लोवाकिया देश में जैनकुसिका नामक एक पत्रकार और उसकी मंगेतर की हत्या करने पर सारी जनता सड़क पर उतर आई। प्रदर्शन कर प्रधानमंत्री रॉबर्ट फीको से इस्तीफा की मांग की। विरोध और जन आक्रोश के आगे सरकार को झुकना पड़ा और फिको ने इस्तीफा दे दिया।
यह जनता की जीत नहीं उस मृत पत्रकार की जीत थी, जिसने निडर होकर शासन के तामझाम भ्रष्टाचार को उजागर किया, लेकिन अपने भारत में ऐसा कुछ नहीं होता है क्योंकि यहां के लोगों को सांप्रदायिक दंगों से फुर्सत नहीं हैं, जो दूसरे को जलाने के लिए आग लगाते हैं और जलते उनके घर भी हैं क्योंकि आंख का कोई धर्म जात नहीं होती है , आग ना किसी की दुश्मन होती है और ना ही दोस्त।
3 बड़े Journalists की हत्याओं के मामले सामने आए
हाल ही में 3 बड़े पत्रकारों की हत्याओं के मामले सामने आए ,जिनमें दो बिहार और एक मध्य प्रदेश के पत्रकार थे। मध्य प्रदेश के पत्रकार संदीप शर्मा की कहानी स्लोवाकिया के पत्रकार की कहानी के माफिक है। संदीप शर्मा ने भी पुलिस और रेत माफिया के गठबंधन को उजागर किया, जिससे उसे आभास हो गया था कि उसकी जान खतरे में है जिसके चलते उसने पुलिस अधीक्षक को शिकायती पत्र देकर बताया कि उसकी जान खतरे में है। इस पर उसे सुरक्षा तो नहीं मिली बल्कि मिली तो मौत।
Journalist की मौत पर जनता नहीं बोलेगी
इस पर जनता नहीं बोलेगी क्योंकि उनसे जनता का कोई रिश्ता नहीं था। पिछले 5 वर्षों में बड़े जाने-माने 25 पत्रकारों की हत्या कर दी गई और कितने ही ऐसे पत्रकार होंगे, जिन्हें इतना कोई नहीं जानता। ऐसे पत्रकारों की तो बात भी नहीं होती है। ऐसे में जनता सड़क पर नहीं उतरेगी हां लेकिन अगर किसी पाखंडी बाबा के पाखंड का पर्दाफाश हो जाए, तब सड़क पर उतरकर हंगामा -दंगे करेगी ,बाबा के खिलाफ नहीं बाबा के सपोर्ट में।
हम जातियों को लेकर दंगे देखें तो इतने वर्षों से साथ रहने के रिश्ते को भूल दंगे पर उतरा ना इसे कहते हैं मानवता? राजनेताओं के इशारे पर नाचना इसे कहते हैं लोकतंत्र? अप्रत्यक्ष रूप से राज्य तो आप पर भी हो रहा है नेताओं बाबाओं का।