जैसी करनी वैसी भरनी फिर जो भाग्य में लिखा है वो होता क्यों? Jaisi karni waisi bharni
अच्छे कर्म का अच्छा नतीजा और बुरे का बुरा
हिना आज़मी
‘जैसी करनी वैसी भरनी ‘ (Jaisi karni waisi bharni) यह कहावत हमारे बड़े बूढ़ों की है। यह सच है कि इंसान जैसे कर्म करता है उसे ऐसा ही फल मिलता है। अच्छे कर्म का अच्छा नतीजा और बुरे का बुरा। यह भी कहावत है कि “उगाया है बबूल तो आम कहां से खाओगे” मतलब आपने अगर बबूल का पेड़ उगाया है तो आपको कांटे ही मिलेंगे आम नहीं ।
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एक सच यह भी है कि मानव एक कठपुतली जैसा है जिसकी डोर परमात्मा के हाथ में है । वह जैसा चाहता है वैसा अभिनय करवाता है । हमें सिर्फ उसके निर्देशन में अभिनय करते जाना है। हमारे जीवन की कहानी वह पहले ही लिख चुका होता है। इसलिए जिंदगी में कभी उतार-चढ़ाव आए तो हमें ना बहुत ज्यादा भयभीत और ना ही बहुत खुश होना चाहिए, हमें अपने जीवन की प्रत्येक परिस्थिति को उस निदेशक की आज्ञा माननी चाहिए और फिर उसी के हिसाब से काम करना चाहिए। प्रत्येक मनुष्य एक सीमित अवधि के लिए इस दुनिया में आता है और परमात्मा ने हमारे हिस्से में जितना दुख लिखा है, उसे हमें हर हाल में ही भोगना पड़ता है।
भाग्य से हमारा पुरुषार्थ यानी कर्म जुड़ा हुआ है
इस तरह प्रत्येक व्यक्ति की नियति यानी किस्मत है और यही प्रारब्ध यानी भाग्य है। हमारे भाग्य से हमारा पुरुषार्थ यानी कर्म जुड़ा हुआ है। इन दोनों के बीच गहरा रिश्ता है जैसे कुछ लोग कहते हैं कि जब प्रत्येक मनुष्य की नियति तय है और उसके भाग्य में जो लिखा है वही होना है तो फिर कर्म करके क्या लाभ? इसी तरह दूसरे मत में लोगों का कहना है कि भाग्य नाम की कोई चीज नहीं होती। जितना और जैसा कर्म किया जाए वह उसी के अनुसार फल मिलता है। वास्तव में भाग्य और पुरुषार्थ यानी कर्म दोनों ही अपनी महत्ता रखते हैं। भाग्य के बगैर कर्म अधूरा है और कर्म के बगैर भाग्य।
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इससे संबंधित एक कहानी हम आपको सुनाने जा रहे हैं – एक गाय दलदल में फसी हुई थी । एक लुटेरा उस रास्ते से गुजर रहा था। उसने गाय की मदद नहीं की लेकिन कुछ दूर जाने पर उसे एक आभूषण मिल गया । फिर कुछ देर बाद एक साधु भी उसी राह से गुजर रहा था । उन्होंने गाय को दलदल से बाहर निकाल दिया लेकिन कुछ दूरी पर वह खुद एक गड्ढे में गिर गया। मुनि की मृत्यु हो गई तो नारद मुनि सीधे परमात्मा के पास गए और शिकायत करते हुए कहने लगी कि हे प्रभु धरती पर आप का प्रभाव कम हो रहा है।
प्रभु ने पूछा क्यो नारद मुनि ने आगे कहा जो धर्म कर रहे हैं उसके बदले में सजा मिल रही है और जो अधर्म कर रहे हैं उन्हें पुरस्कार मिल रहे हैं ?इस पर ईश्वर ने जब यह कहा कि ऐसा संभव नहीं है, तो नारद मुनि ने यह किस्सा उन्हें बताया तो भगवान ने कहा लुटेरे के भाग्य में खजाना था लेकिन उसने अधर्म किया इसलिए उसे एक आभूषण ही मिला संत के भाग्य में मृत्यु लिखी थी। लेकिन उन्होंने धर्म का कार्य किया तो उनको मृत्यु मिली। असल में मनुष्य के पूर्व में किए गए कर्मों का फल भाग्य है।