ट्रोल लगता है कि नोटबंदी के कारण पेमेंट के इंतज़ार में घर बैठ गए हैं। आईटी सेल वालों को लगता है कि गूगल सर्च से कुछ मिल ही नहीं रहा है। टाइम्स ऑफ इंडिया, इंडिया टुडे, आजतक, भास्कर, पत्रिका इन सबमें वो ख़बर छपी है लेकिन कोई भी लिंक निकाल कर मुझे गाली नहीं दे रहा है कि आप इसे कवर क्यों नहीं करते हैं। आप बिक गए हैं। ये नहीं कह रहा है कि मैं मोदी विरोधी हूं। अगर मुझे निष्पक्षता साबित करनी हो तो इन्हें प्राइम टाइम में दिखाओ। मैसेज डिलिट करता हूं फिर मैसेज आ जाता है। दो दिनों से कोई ट्रोल मेरा पीछा नहीं कर रहा है। मैं आम तौर पर ऐसी बातों को नज़रअंदाज़ करता हूं। यह तर्क ही बेतुका है कि सारी ख़बरों की रिपोर्टिंग मैं ही करूंगा तभी जाकर निष्पक्षता या पत्रकारिता साबित होगी। ऐसा करने वालों का मतलब पत्रकारिता से कम होता है। वे कभी उन सरकारों और कारपोरेट के ख़िलाफ़ ट्रोल नहीं करते हैं जिन्होंने पत्रकारिता का गला घोंट कर पार्टियों का चंपू बना रखा है। ऐसे बहुत से मसले आए जिन पर मैंने लिखना ठीक नहीं समझा। दूसरों ने अच्छा लिखा या मैं कहीं और व्यस्त रहा। नेता और समर्थक चाहे जितने लंठ हो जाएं, एक दिन लंठई का अंत होता ही है। ऐतिहासिक प्रक्रिया यही कहती है। एक दौर था जब बंदूक लेकर नेताओं के चंपू लहराते थे। हर दल के लंठ समर्थकों को समय के साथ बिलाते देखा है।
ध्रुव सक्सेना, मनीष गांधी, मोहित अग्रवाल, बलराम पटेल, ब्रजेश पटेल, राजीव पटेल, कुश पंडित, जितेंद्र ठाकुर,रितेश खुल्लर,जितेंद्र सिंह यादव,त्रिलोक सिंह। ये सारे नाम है उन लोगों को जिन्हें मध्य प्रदेश के एंटी टेरर स्कॉड ने पाकिस्तानी की ख़ुफ़िया एजेंसी के लिए काम करने के आरोप में पकड़ा है। गनीमत है कि इनमें से कोई जे एन यू का नहीं है और न ही मुसलमान है वर्ना आज मीडिया में तूफान मच रहा होता और इसके बहाने यूपी के बड़े वाले वोट बैंक को एकजुट होने के लिए ललकारा जाता। अगर इन नामों की जगह मुस्लिम नाम होते तो मीडिया में हंगामा मच रहा होता। ट्रोल सारा काम छोड़ कर बवाल मचा चुके होते। तूफान मचाने की राजनीति का एक ही मकसद है कि किसी तरह हिन्दू मुस्लिम गोलबंदी करो और वो गोलबंदी एक पार्टी के हक में करो। जहां कहीं दंगा हो, वहां से ऐसा कोई किस्सा चुन लो और फिर सोशल मीडिया से लेकर मीडिया में हंगामा करो, सवाल पूछो कि फलां कहां हैं,वो चुप क्यों हैं। अपनी सरकारों से नहीं पूछेंगे, दो चार पत्रकार से पूछकर ये बराबरी और इंसाफ मांगते हैं। एकाध ट्वीट अपने मंत्री को ही कर देते कि आप क्यों नहीं बोल रहे हैं। जांच क्यों नहीं हो रही है। आए दिन यही होता रहता है।
मेरी राय में इन सभी को शक और प्राथमिक साक्ष्यों के आधार पर गिरफ़्तार किया गया है। आरोप पत्र दायर होने बाकी हैं और साबित होना। इसलिए अभी इनके साथ वैसा न हो जो आमिर के साथ हुआ। आमिर जैसे नौजवानों को महज़ आरोप के चलते बीस बीस साल जेल में रहना पड़ा, उनकी ज़िंदगी तबाह हो गई। किसी हिन्दू की हो या किसी मुस्लिम की, आतंकवाद के आरोप में हर गिरफ्तारी से दिल धड़का है कि कहीं दोष साबित से पहले इनका मीडिया ट्रायल न हो जाए। आतंकवादी न बना दिया जाए। मीडिया की ख़बरों में भोपाल का ध्रुव सक्सेना भाजपा आईटी सेल का ज़िला संयोजक बताया जा रहा है। मैं ध्रुव सक्सेना के दोष साबित होने तक निर्दोष होने के अधिकार की रक्षा करूंगा ताकि आमिर जैसे निर्दोष जवानों को इस तरह के मीडिया ट्रायल से तबाही न देखनी पड़े। आतंकवादी पहचान के साथ जीना न पड़े। तमाम आईटी सेल वालों को समझ लेना चाहिए कि दोष साबित होने तक उनके निर्दोष होने की रक्षा भी मैं ही करूंगा। इतना बचाव उस पार्टी के लोग भी ध्रुव सक्सेना का नहीं कर पाएंगे जिसके लिए उसने दूसरों के खिलाफ न जाने क्या क्या प्रोपेगैंडा किया होगा। जिन्हें आरोप और दोष साबित में फर्क नहीं पता है।
बहरहाल, आतंकवाद विरोधी सेल ने जिन 11 लड़कों पर पकड़ा है उन पर कथित रूप से आई एस आई के लिए भारतीय सेना की जासूसी करने का आरोप है। बाग्लादेश, नेपाल, अफगानिस्तान और पाकिस्तान में बातचीत के लिए टेलिफोन एक्सचेंज चलाते हैं और टेलिकाफ कंपनियों को नुकसान पहुंचाते हैं। इनके पास से 40 सिम बाक्स बरामद हुए हैं। 3000 सिम कार्ड मिले हैं। इनमें से एक बीजेपी नेता का भाई है। इन पर देश के ख़िलाफ़ युद्ध भड़काने का आरोप है। मध्य प्रदेश के एंटी टेरर स्कावड के मुखिया संजीव शामी ने कहा है कि ये लोग जासूसी और मनी लौंड्रिंग कर रहे थे। इन लोगों ने टेलिकाम डिपार्टमेंट का भी भारी नुकसान किया है क्योंकि ये समानांतर टेलिफोन एक्सचेंज चला रहे थे। सेना का अफसर बनकर जम्मू कश्मीर में तैनात सैन्य अधिकारियों को फोन कर जानकारी लेते थे। गिरफ्तार लड़कों के ताल्कुल सतविंदर सिंह और दादु नाम के किसी आतंकवादी से बताये जाते हैं जिन्हें पिछले साल गिरफ्तार किया गया था।
सोशल मीडिया पर किसी ध्रुव सक्सेना की तस्वीर चल रही है जो मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और वरिष्ठ नेता कैलाश विजयवर्गीयक के पीछे मंचों पर खड़ा है। भाजपा का टीशर्ट पहना है। किसी की भी तस्वीर किसी के साथ हो सकती है। मैं तो रोज़ पचासों लोगों के साथ तस्वीर खींचाता हूं। मुझे क्या पता किस तस्वीर में कौन है। मगर ये चलन भी दक्षिणपंथी ट्रोल का चलाया हुआ है कि किसी की तस्वीर निकालो, लाल रंग से घेर दो और फिर उसे आतंकवादी बताकर व्हाट्स अप में फैला दो। इसलिए शिवराज सिंह चौहान या कैलाश विजयवर्गीय के साथ ध्रुव सक्सेना की तस्वीर को लेकर भ्रम नहीं फैलाना चाहिए। अगर ये दोनों चाहें तो अपने रिश्तों को स्पष्ट कर सकते हैं और ध्रुव सक्सेना जैसों के ख़िलाफ़ निष्पक्ष जांच से लेकर कड़ी सज़ा की मांग कर सकते हैं। धरना प्रदर्शन भी कर सकते हैं। फिर भी तस्वीर के आधार पर कैलाश जी की राष्ट्रीयता पर शक नहीं होना चाहिए। कैलाश जी का भी बचाव मैं ही कर सकता हूं! किसी गैर भाजपा नेता का ऐसा बचाव करता तो आई टी सेल वाले मुझे भ्रष्ट से लेकर अपराधी तक बता देने में कोई कसर नहीं छोड़ते। फिर भी ध्रुव सक्सेना के चलते कैलाश विजयवर्गीय के ख़िलाफ़ बातें न कही जाएं। वो ख़ुद ही कहने के लिए मटीरियल सप्लाई कर देते हैं।
सोशल मीडिया और तमाम मीडिया वेबसाइट पर ध्रुव सक्सेना की तस्वीर है जिसमें वो भाजपा का टीशर्ट पहना है। भाजपा के लिए अपील कर रहा है। इसलिए भाजपा को थोड़ी चिंता करनी चाहिए कि उसके बीच से कोई आई एस आई का एजेंट कैसे निकल सकता है। वो भी जो मुसलमान नहीं है। वो भी जो उस इस्लाम से नहीं है जिसे मानने वाले सारे आतंकवादी होते हैं। अलग अलग दौर में हर मज़हब के मानने वाले आतंकवादी हुए हैं और उन्होंने धर्म का सहारा लिया है। बाद में पता चला कि इस पागलपन का धर्म से कोई लेनादेना नहीं है। आतंकवाद को लेकर इस मज़हबी चश्मे को उतार फेंकना चाहिए। आतंकवाद का धर्म से कोई लेना देना नहीं है। ये प्रधानमंत्री मोदी की लाइन है। इसलिए ट्रोल को अपने नेता की इतनी बात मान लेनी चाहिए। यह छोटी बात नहीं है कि ध्रुव सक्सेना आई टी सेल का ज़िला संयोजक है। पत्रिका डाट काम पर इसके बारे में लिखा है कि महंगी गाड़ियों का शौकिन है और इसके पास टोयटा की फार्चुनर कार है। किसी को चेक करना चाहिए कि आई टी सेल में काम करने वाला बंदा इतनी मंहगी कार कैसे ख़रीद लेता है।
पिछले ही महीने जनवरी में मोतिहारी से कानपुर ट्रेन दुर्घटना के मामले में कुछ गिरफ्तारियां हुई थीं। मोती पासवान, उमा शंकर पटेल और मुकेश यादव को गिरफ्तार किया गया है। इन पर कथित रूप से घोड़ासहन के पास रेल की पटरी को बम से उड़ाने के आरोप हैं। इसी गिरफ्तारी से कानपुर रेल दुर्घटना का भी राज़ खुला जिसमें 140 लोग मारे गए। इतनी तबाही के बाद भी कोई हंगामा नहीं। कहीं इसलिए तो नहीं कि मोती पासवान या ध्रुव सक्सेना का नाम आ गया है। मुझे पूरा यकीन है कि इन बातों को लेकर कोई ट्रोल नहीं करेगा। ट्रोल करने वालों का क्या मकसद होता है, दुनिया समझ रही है।
आज मतदान करने गया था। एक जनाब मीडिया को लेकर बात करने लगे। मैंने कहा कि सही बात है कि मीडिया सरकार और कारपोरेट के दबाव में आ चुका है। बहुत तेज़ी से ख़त्म हो रहा है। थोड़े दिनों में गुनगान के अलावा आपको कुछ सुनने को नहीं मिलेगा। एक पतला सा लड़का आया। कान लगाकर सुनने लगा। मोटा चश्मा पहने था। पीछे लंबी चुटीया थी। बोल गया कि आप मोदी विरोधी हैं। फिर उंगली दिखाकर जाने लगा कि आप मोदी विरोधी हैं। मैंने बुलाया कि भई हम किसी का विरोध नहीं करते हैं। वो काम विपक्ष का है। सवाल पूछते हैं, जवाब दे दो, हमारा काम ख़त्म। वो लौट कर आया और कहने लगा कि जेएनयू में वीडियो निकला था। एक चैनल पर दिखाया था। तो मैंने कहा कि साल बीत गए, जांच हो जानी चाहिए थी और वीडिओ के लड़के भी पकड़े जाने चाहिए थे। अगर मामला इतना गंभीर है तो अंजाम पर पहुंचना चाहिए था। लेकिन आज तक कुछ पता नहीं चला।
फिर वो चला गया। उंगली दिखाता रहा। मैं कार में बैठकर चलने लगा तो देखा कि वो चार पांच लड़कों के साथ लौटा है। मेरी गाड़ी आगे बढ़ने लगी। अब वो आगे आगे दौड़ रहा था। उसके साथ लड़के गाली वाली दे रहे थे। मेरे साथ आए दिन ऐसा होता रहता है। दो तीन बार हो चुका है। पहले अकेला आएगा,कुछ बोल कर चला जाएगा। फिर दो चार के साथ लौटता है। जहां तहां ये मिल जाते हैं और ऐसी हरकत करते हैं। इनकी एक ही रणनीति है। हल्ला गाड़ी बन जाओ। हल्ला मचाओ और बात को कहीं से कहीं ले जाकर उलझा दो ताकि मूल सवाल ही न बचे कि आपने किसी को अकेले देख समूह में हमला क्यों किया। याद दोस्त कहते हैं कि पुलिस में एफ आई आर कर दूं। उससे क्या होगा। आजकल ट्रोल समुदाय के लोग चालाक हो गए हैं। जब उन्हें गाली दे देता है तो हल्ला मचाते हैं कि कहां है वो पत्रकार जो ट्रोल को लेकर लिखते रहे हैं। अब मेरे बारे में क्यों नहीं बोलते। मेरा यही जवाब है। आपका ट्रोल हो रहा है तो आप बोलिये। दूसरे का ट्रोल हो रहा था तो क्या आप बोल रहे थे। मैं मोदी समर्थक और मोदी विरोधी दोनों प्रकार के ट्रोल का विरोध करता हूं। पहले भी किया है और आगे भी किया है। जब सर्जिकल स्ट्राइक से पहले प्रधानमंत्री का ट्रोल हो रहा था, उनका मज़ाक उड़ाया जा रहा था, मैंने प्राइम टाइम में उसकी आलोचना की थी और बचाव किया था। आजकल खबरें छप रही हैं कि प्रधानमंत्री किस किस तरह के ट्रोल को ट्वीटर पर फोलो करते हैं।
मुझे पता है कि ट्रोल टाइप लोग पर्चा बैनर ढोने से ज्यादा राजनीति में कुछ नहीं कर पाएंगे। मुझसे ये डरे रहते हैं इसलिए डराते हैं। मैं ईश्वर से प्रार्थना करता हूं कि ये मेरे सवालों के ख़ौफ से निकल आएं। ईश्वर उन्हें जवाब देने का साहस दे। लिखकर या बोलकर। पीछा कर, दौड़ा कर या मार कर नहीं। संघ और बीजेपी नोट कर लें,उसके ऐसे समर्थक उसके लिए बोझ हैं। आज दुनिया के तमाम अखबारों में इन्हीं ट्रोल के कारण प्रधानमंत्री की नाहक आलोचना हो रही है। जितनी जल्दी हो इन्हें दूसरे दलों में भेज दें या निकाल दें।आज न कल आप इन्हें निकालेंगे ही। लड़कियां शादी या दोस्ती से पहले लड़कों की पड़ताल कर लें कि कहीं वो किसी दल का ट्रोल तो नहीं है। पत्नियां भी चेक कर लें। ऐसे लोग बर्बाद होते हैं। हिंसक होते हैं। कुंठित होते हैं। ट्रोल से भी निवेदन है कि आप किसी भी दल के लिए इस हद तक काम न आएं। कोई फायदा नहीं। ये नेता लोग आपका इस्तमाल कर आगे निकल जायेंगे। आपको यह भी पता नहीं कि आपके ही नेता मेरे साथ चाय पीते नज़र आएं या मैं उनके साथ। इसलिए विरोध करो। सवाल करो। मगर किसी का पीछा मत करो। गाली मत दो। वो भी दो चार लोगों को बुलाकर।
आप पाठक भी कुछ तय कीजिए। क्या आप लोकतंत्र के तमाम आश्वासनों के बाद भी ऐसी हरकतों से आश्वस्त होते हैं। इसका बुरा अंजाम आपको ही भुगतना है। आपकी ही आवाज़ दबाई जाएगी। कभी न कभी तो आपकी मांग होगी। अखबार या टीवी में भजन सुनना है या पत्रकारिता देखनी है। अगर आपको पार्टी समर्थक या पार्टी विरोधी पत्रकारिता देखनी है तो कभी इसके लिए भी मतदान कर आइये कि हमें भले कोई नौकरी न दे, कोई एडमिशन न दे, सस्ती शिक्षा या अस्पताल न दे हम तो उसी पार्टी को वोट देंगे। इसलिए न अखबार पढ़ेंगे या न टीवी देखेंगे। इस तरह से किसी को चेज़ करना, गाली देना अगर आपको लगता है कि सही है तो लिख कर दे रहा हूं। आप गर्त में पहुंच गए हैं। आपको अब कोई नहीं बचा सकता।
गनीमत है समाज ऐसा नहीं है। रोज़ सैंकड़ों लोगों की बात मुझ तक पहुंचती है। जो पत्रकार को सिर्फ पत्रकार के रूप में देखना चाहते हैं। जो चाहते हैं कि पत्रकारिता का सबसे बड़ा मतलब यही है कि वो सरकार के सामने कैसे खड़ी है। जनता का राजनीतिकरण होता रहता है मगर जनता इस प्रक्रिया से निकलती भी रहती है। पश्चिम उत्तर प्रदेश में जाट समाज के नौजवान और बुज़ुर्ग समझ गए हैं कि सांप्रदायिक हिंसा ने उनकी पहचान और कमर दोनों तोड़ दी। खुलेआम जाट कह रहे हैं कि वे बहक गए थे। हिन्दू मुस्लिम नहीं करना चाहिए था। यह कम बड़ी बात नहीं है। इतनी हिम्मत जाट लोग ही दिखा सकते हैं। जबकि मीडिया में इस समाज को कितनी नकारात्मकता के साथ चित्रित किया जाता है। किसी भी समाज का एक चेहरा नहीं होता है। फिर भी यह काम किया जाता है। मैं तो कहता हूं कि सांप्रदायिक हिंसा और सोच के ख़िलाफ़ सामुदायिक प्रायश्चित का ऐसा प्रमाण किसी समुदाय में नहीं मिलेगा। तभी तो कहता हूं कि जाट लोग अच्छे होते हैं। आप अजित सिंह की किसी भी सभा में जाइये। छोटे जाट नेता भी हिन्दू मुस्लिम सांप्रदायिकता के ख़िलाफ भाषण दे रहे हैं। इतना खुलकर तो मायावती या अखिलेश भी नहीं बोल रहे हैं। चौधरी साहब जीते या हारें, मेरे हिसाब से उन्होंने ये लड़ाई जीत ली है। खुलकर कहते हैं कि हिन्दू मुस्लिम करोगे तो ये इलाका बर्बाद हो जाएगा।
अंत में सभी से यही गुज़ारिश है कि ध्रुव सक्सेना हो या कोई आमिर,दोनों का ही मीडिया ट्रायल न करें। सबूत मिलेंग,जांच होगी और साबित होगा तो कहियेगा। इससे पहले किसी की ज़िंदगी से मत खेलिये। ध्रुव सक्सेना की तस्वीर मत घुमाइये कि वो बीजेपी का है। बाकी दस भी तो हैं। सोचना चाहिए कि वो क्या चीज़ है जो राष्ट्रवाद राष्ट्रवाद करने के बाद भी किसी को आई एस आई का एजेंट बना देती है। कहीं वो पैसा तो नहीं है। किसी भी बहस का यही मकसद होना चाहिए कि हम सभी बेहतर हों। हम सभी उस रास्ते से कभी न कभी लौट आएं जहां करूणा न हो,ईमानदारी न हो। जब भी कोई लौट आए, उसे गले लगा लीजिए।