जम्मू। उद्योग मण्डल द एसोसिएटेड चैम्बर्स ऑफ कॉमर्स एण्ड इण्डस्ट्री ऑफ इण्डिया (एसोचैम) ने जम्मू-कश्मीर में व्याप्त समस्याओं की वजह से इस राज्य की अर्थव्यवस्था पर पघ्ने वाले दुष्प्रभावों से चिंतित होकर सहयोग का हाथ बघया है। एसोचैम ने प्रदेश की अर्थव्यवस्था को फिर से आकार देने के लिये नये प्रयास करने का आह्वान किया है। उसका कहना है कि पर्यटन, हस्तशिल्प, औद्यानिकी क्षेत्र, पशुधन तथा वन इत्यादि क्षेत्रों को बघवा देकर प्रदेश की अर्थव्यवस्था को नया जीवन-रक्त दिया जा सकता है।
एसोचैम ने पाया है कि जम्मू-कश्मीर के आर्थिक विकास और संघर्ष के बीच काफी नकारात्मक सम्बन्ध है। ऐसे में उद्योग मण्डल का सुझाव है कि घाटी में उद्योगों को वापस लाने के लिये राज्य तथा केन्द्र की आर्थिक एजेंसियां विधि प्रवर्तन इकाइयों के साथ तालमेल करके एक पूर्ण समन्वित रवैया अपनाएं।
एसोचैम के राष्ट्रीय महासचिव डी. एस. रावत ने कहा कि प्रदेश का आर्थिक विकास तभी हो सकता है जब समस्याओं का सतत निवारण हो। उन्होंने पेशकश करते हुए कहा कि अगर मौका मिले, तो उनका चैम्बर जम्मू-कश्मीर के लिये एक ‘इकोनॉमिक रिवाइवल प्लान’ (आर्थिक पुनरुद्धार योजना) का अल्पकालिक, मध्यमकालिक तथा दीर्घकालिक खाका खींचने में खुशी महसूस करेगा।
एसोचैम के अनुसार जम्मू-कश्मीर का सकल राज्य घरेलू उत्पाद (जीएसडीपी) वर्ष 2014-15 में 2004-05 के कांस्टेंट प्राइसेज (मुद्रास्फीति के प्रभाव को घटाकर) पर अनुमानित 45,126.30 करोघ् रुपये था। राज्य की आय के क्षेत्रवार संयोजन में भी हाल के वर्षों में महत्वपूर्ण बदलाव आये हैं।
उद्योग मण्डल के अनुसार ‘‘पिछले पांच दशकों के दौरान प्राइमरी सेक्टर की भागीदारी में लगातार गिरावट आयी है। वर्ष 2004-05 में जहां यह 28.16 प्रतिशत था, वहीं 2014-15 में यह घटकर 17.83 प्रतिशत रह गया।
इसके अलावा सेकेण्ड्री क्षेत्र में भी 2004-05 में दर्ज 28.13 प्रतिशत के मुकाबले वर्ष 2014-15 में गिरावट आयी और यह 25.53 प्रतिशत रहा। हालांकि सेवा क्षेत्र के योगदान में काफी बघेत्तरी हुई है। वर्ष 2004-05 में जहां यह 43.71 प्रतिशत था, वही 2014-15 में यह बघ्कर 56.64 प्रतिशत हो गया।’’
रावत ने कहा ‘‘राज्य सरकार तथा स्थानीय एजेंसियों की मदद से ऐसे प्रयास सुनिश्चित किये जाने चाहिये, जिनसे अच्छी मानसूनी बारिश का पूरा फायदा उठाया जा सके और प्रदेश के कृषि तथा औद्यानिकी उत्पादन को बेहतर किया जा सके।’’
उन्होंने कहा ‘‘परिवहन क्षेत्र के साथ-साथ भण्डारण क्षेत्र में सुरक्षा के प्रति भरोसा पैदा किया जाना चाहिये ताकि कुटीर तथा लघु उद्योगों समेत पूरे उद्योग क्षेत्र को नयी उम्मीद मिल सके।’’
कश्मीर की धरती आश्चर्यजनक और लुभावनी है और यह प्राकृतिक सुन्दरता से परिपूर्ण है। बर्फ से ीलों की वजह से कश्मीर को धरती का स्वर्ग भी कहा जाता है।
रावत ने कहा ‘‘पर्यटन क्षेत्र में नये भरोसे का संचार करने की जरूरत है। इसके अलावा होटलों तथा रेस्त्राओं समेत समूचे पर्यटन क्षेत्र को नयी ऊर्जा दिये जाने की आवश्यकता है।’’
उन्होंने कहा ‘‘कपघ मंत्रालय, वित्त मंत्रालय तथा क्षेत्रीय निर्यात संवर्द्धन परिषदों की सक्रिय भागीदारी की मदद से कालीन तथा हस्तशिल्प इत्यादि क्षेत्रों को विशेष पैकेज तथा प्रोत्साहन दिये जा सकते हैं।’’
जम्मू-कश्मीर के कुल सकल राज्य घरेलू उत्पाद में कृषि तथा पशुधन क्षेत्र का योगदान 14.35 प्रतिशत है। इसके अलावा वानिकी क्षेत्र (2.77 प्रतिशत), मत्स्य (0.36 प्रतिशत), विनिर्माण (7.72 प्रतिशत), उद्योग (25.87 प्रतिशत), परिवहन, भण्डारण तथा संचार (5.15 प्रतिशत), होटल्स एवं रेस्टोरेंट्स (7.75 प्रतिशत), बैंकिंग एवं इंश्योरेंस (6.24 प्रतिशत) तथा लोक प्रशासन (18.36 प्रतिशत) भी विभिन्न योगदानकर्ता हैं।
छठी आर्थिक गणना-2013 के परिणामों के अनुसार जम्मू-कश्मीर में 507372 प्रतिष्ठान हैं, जो कृषि उत्पादन, पौधरोपण, लोक प्रशासन, रक्षा तथा अनिवार्य सामाजिक सुरक्षा से इतर विभिन्न आर्थिक गतिविधियों से जुघ्े हैं। इनमें से 59.96 प्रतिशत अर्थात् 304207 प्रतिष्ठान ग्रामीण क्षेत्रों में जबकि शेष 40.4 प्रतिशत यानी 203165 प्रतिष्ठान शहरी इलाकों में स्थित हैं।
अनन्तिम परिणामों के मुताबिक जम्मू-कश्मीर में हस्तशिल्पध्हथकरघा की 60397 इकाइयां स्थापित है। इनमें से 46054 (76.25 प्रतिशत) प्रतिष्ठान ग्रामीण क्षेत्र में जबकि 14343 (23.75 प्रतिशत) शहरी क्षेत्रों में स्थित हैं। इन प्रतिष्ठानों की संख्या प्रदेश में स्थापित कुल प्रतिष्ठानों के 11.9 प्रतिशत हिस्से के बराबर है।