Kishore Upadhyay Missionary Person
आज वो वनाधिकारों का झंडा लेकर के आगे बढ़ रहे
टिहरी के विकास के लिए भी बहुत कुछ किया
देहरादून। Kishore Upadhyay Missionary Person पूर्व मुख्यमंत्री व कांग्रेस चुनाव संचालन समीति के अध्यक्ष हरीश रावत ने किशोर उपाध्याय को मिशनरी व्यक्तिी बताया है। हरदा ने अपनी पोस्ट में लिखा कि किशोर-उपाध्याय एक मिशनरी जील से काम करने वाले व्यक्ति हैं।
मैं राजनीति की पसंद-नापसंद से अलग हटकर जब उत्तराखंडियत के लिये सोचता हूँ तो उसमें किशोर उपाध्याय बहुत आगे झंडा लिये खड़े दिखाई देते हैं। उन्होंने हमारे साथ लड़-लड़कर टिहरी परियोजना के प्रभावित क्षेत्र और लोगों के अधिकारों के लिए बहुत कुछ हासिल किया, टिहरी के विकास के लिए भी बहुत कुछ हासिल किया।
#किशोर_उपाध्याय एक मिशनरी जील से काम करने वाले व्यक्ति हैं। मैं राजनीति की पसंद-नापसंद से अलग हटकर जब उत्तराखंडियत के लिये सोचता हूँ तो उसमें @KupadhyayINC बहुत आगे झंडा लिये खड़े दिखाई देते हैं। उन्होंने हमारे साथ लड़-लड़कर टिहरी परियोजना के प्रभावित क्षेत्र और लोगों के
1/2 pic.twitter.com/XZwQDBFsue— Harish Rawat (@harishrawatcmuk) August 7, 2021
मैंने उनको समझाया कि दो वानगी विश्वविद्यालय नहीं हो पाएंगे, मगर संकल्प लेकर के आगे बढ़े तो अनन्तोगत्वा रानी चौरी को भी विश्वविद्यालय का दर्जा मिला, जिसे बाद में आने वाली सरकार ने किशोर उपाध्याय के हारने के बाद बदल दिया।
आज यदि कुछ ऐसे विकास के उदाहरण दिखाई देते हैं जिनमें जो 12 प्रतिशत राज्य का हिस्सा है, बिजली से हो रही आमदनी में उसमें 1 प्रतिशत की वृद्धि कर और उस वृद्धि का लाभ टिहरी को मिले, यह भी किशोर उपाध्याय के संघर्ष का एक उदाहरण है।
आज वो वनाधिकारों का झंडा लेकर के आगे बढ़ रहे हैं। कुछ कठिन डगर जरूर हैं, वनाधिकार कानून तो सोनिया की देन है, उन्होंने सोनिया के अनन्य भक्त के तौर पर जो वनाधिकार का मिशन लॉन्च किया है जिसमें बहुत सारे प्रगतिशील शक्तियों का उनको समर्थन हासिल है।
मैं समझता हूंँ उसके लिए बहुत आवश्यक है कि उत्तराखंड में कांग्रेस आए और किशोर उपाध्याय के इस मिशन को आगे बढ़ाने के लिये उस मिशन में उठाये गये बिंदुओं के समाधान के लिए काम किया जा सके।
…काश मैं ऐसा कर सकूं
देहरादून। हरीश रावत ने कहा कि बच्चे की पढ़ाई में माँ का अभूतपूर्व योगदान होता है। जब मैं इस योगदान की चर्चा कर रहा हूं तो मुझे अपनी अनपढ़ मां की याद आ रही है, मेरे आंखों में आंसू हैं। दिये की टिमटिमाती लौह में जब मैं अपनी परीक्षा की तैयारी कर रहा होता था तो मेरी माँ मेरे साथ जगी रहती थी और बीच-बीच में मुझे थोड़ा-थोड़ा दूध लाकर के देती थी। बचपन में मेरी पाटी कम चमकीली न दिखाई दे, उस समय जो लकड़ी की पाटी होती थी, अपनी धोती के किनारे से उसको जाते-जाते और चमकाने का प्रयास करती थी तो आज परिदृश्य बदल गया है, तकनीक बदल गई है, मगर माँ का समर्पण बच्चों की पढ़ाई के लिए उतना ही गहरा है, जितना पहले था। मैं ऐसी माताओं जिनके बच्चे बोर्ड की परीक्षाओं में 90 प्रतिशत से ज्यादा अंक हासिल कर रहे हैं, उनके पुरस्कार की एक विशेष योजना प्रारंभ करना चाहूंगा, काश मैं ऐसा कर सकूं।
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