Kumaon Division में आज भी दोस्ती की मिसाल कायम
देहरादून। कुमाऊं ( Kumaon Division ) में मिज्जू (मित्रता) की सदियों से चली आ रही परंपरा आज भी कायम है। कुमाऊं में चंद शासकों ने सातवीं सदी में अपने शासनकाल के दौरान दो अलग-अलग जातियों और समुदायों के बीच मित्रता की डोर मजबूत करने के लिए मिज्जू लगाने की अनूठी परंपरा शुरू की थी, जो कई स्थानों में आज भी बदस्तूर कायम है।
माना जाता है कि मिज्जू लगाने वाले परिवारों के बीच सात पीढ़ियों तक सगे रिश्तेदारों वाला रिश्ता निभाया जाता है। इतिहासकार देवेंद्र ओली के अनुसार जाति कुल के बंधन को छोड़़कर दो अजनबी परिवारों के पुरुषों के बीच मिज्जू लगाने की परंपरा से तत्कालीन सामाजिक सुरक्षा का बोध भी होता है।
कमजोर ब्राह्मण की सशक्त ठाकुर से मित्रता हो या कमजोर दलित की किसी दूसरे सक्षम वर्ग से मित्रता, मिज्जू परंपरा का सबसे सुखद पहलू है। वर्तमान इंटरनेट युग में सोशल मीडिया के माध्यम से देश-विदेश में कहीं भी लोगों से मित्रता बनाई जा सकती है, लेकिन यह मित्रता न तो भावनात्मक रूप से मजबूत और टिकाऊ होती है और ना ही इसकी मित्रता को लंबे समय तक बरकरार रखा जा सकता है।
मिज्जू लगाने वाले दोनों परिवारों के बीच पूजा-अर्चना के साथ गंधाक्षत किया जाता है
वर्षों से मिज्जू परंपरा का निर्वहन कर रहे सीमांत क्षेत्र के सामाजिक कार्यकर्ता पुष्कर दत्त जोशी का कहना है कि दो अलग-अलग परिवारों के बीच मित्रता के बंधन को मजबूत बनाने के लिए सबसे पहले गंधाक्षत (रोली-टीका) की रस्म होती है। इसमें मिज्जू लगाने वाले दोनों परिवारों के बीच पूजा-अर्चना के साथ गंधाक्षत किया जाता है।
इसके कुछ समय बाद बकरी-भात का आयोजन किया जाता है। इसके तहत मित्रता लगने पर आसपास के गांवों के लोगों को मीट-भात का भोज दिया जाता है। कुमाऊं के विभिन्न स्थानों में महिलाओं में भी पुरुषों की मिज्जू लगाने की तरह ही अपनी महिला मित्र के साथ संगज्यू लगाने की परंपरा भी निभाई जा रही है।
नीलावती देवी, प्रमिला देवी के अनुसार आम तौर पर विवाह से पूर्व दो अलग-अलग जातियों की बालिकाओं के बीच संगज्यू लगाई जाती है। जो विवाह के बाद भी दो परिवार के बीच कायम रहती है।