उत्तराखंड का वह गांव जहाँ नहीं है एक भी युवा

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उत्तराखंड का वह गांव जहाँ नहीं है एक भी युवा Lawali village uttarakhand

अल्मोड़ा। Lawali village uttarakhand अपनी कप्तानी में 2 अप्रैल 2011 को श्रीलंका को हराकर वनडे क्रिकेट का विश्वकप खिताब जीताने वाले महेंद्र सिंह धौनी देशभर के खेल प्रेमियों के दिलों पर राज करते हैं। लेकिन, उनका पैतृक गांव ल्वाली आज मूलभूत सुविधाओं व रोजगार के पर्याप्त अवसर नहीं होने के कारण पलायन की मार झेलने को मजबूर है। स्थिति यह है कि गांव में एक भी युवा नहीं हैं। आबादी में ज्यादातर बुजुर्ग व बच्चे हैं।

धौनी का गांव ल्वाली अल्मोड़ा की जैंती तहसील में स्थित है। ग्रामीणों के मुताबिक, वर्ष 2004 में महेंद्र सिंह धौनी आखिरी बार अपने गांव आए थे, तब गांव में बड़ी संख्या में लोग रहते। बीते 14 सालों में एक-एक कर लोग गांव छोड़ते गए। यही वजह है कि गांव में 16 से 45 वर्ष के बीच का कोई भी नजर नहीं आता। फिलहाल गांव की कुल आबादी 46 है, जिसमें 13 पुरुष और 33 महिलाएं शामिल हैं। सड़क को तरस रहा गांव धौनी के गांव को जोड़ने वाली सड़क आज तक नहीं बन पाई। गांव के कन्हैया बिष्ट ने बताया कि वर्ष 2012 में सड़क की मंजूरी मिली थी।

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सड़क को तरस रहा गांव

सड़क मार्ग में काम भी हुआ। मामले अफसर एवं स्थानीय नेताओं से भी बात की। फिर भी सड़क गांव तक नहीं पहुंच पाई। 40 साल पहले छोड़ था धौनी के परिवार ने गांव किक्रेटर महेंद्र सिंह धौनी के पिता पान सिंह ने भी करीब 40 साल पहले अपने पैतृक गांव को छोड़ दिया। वह रोजगार के लिए रांची चले गए। बाद में वह वहीं रहने लगे। हालांकि अभी धोनी के पिता धार्मिक आयोजनों में गांव में आते हैं।

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धोनी के चाचा घनपत सिंह भी अब गांव में नहीं रहते हैं। धौनी के गांव ल्वाली की ग्राम प्रधान माधवी देवी ने बताया कि 55 परिवारों के इस गांव में वर्तमान में 21 परिवार बचे हैं। इसमें भी अधिकांश लोग बाहर हैं। गांव में महज 46 लोग रहते हैं। गांव में मूलभूत सुविधाओं के अभाव में लोग शहरों की तरफ पलायन कर रहे हैं। ये हैं गांव के सबसे बुजुर्ग गांव में सबसे बुजुर्ग हैं दीवान सिंह हैं। ग्रामीणों ने बताया कि गांव में वर्तमान में दीवान सिंह (78) सबसे उम्रदराज एवं हयात सिंह सबसे कम उम्र (45) के रहते हैं। इसके अलावा 16 साल के कम उम्र के लोग गांव में रहते हैं।

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