नवरात्रि का छठवां दिन कात्यायिनी की पूजा व उपासना होती है। माँ दुर्गा के छठे प्रतिरूप का नाम कात्यायनी है। उस दिन योगी का मन ‘आज्ञा’ चक्र में अवस्थित होता है। योगसाधना में इस आज्ञा चक्र का बहुत महत्वपूर्ण स्थान है। इस चक्र में स्थिर मन वाला साधक माँ कात्यायनी देवी के चरणों में अपना सबकुछ पेश कर देता है। व्याप्त आत्मदान करने वाले ऐसे भक्तों को स्वभाविक मन से माँ कात्यायिनी के दर्शन प्राप्त हो जाते हैं।
कथा:- माँ का नाम कात्यायनी कैसे और क्यों पड़ा इसकी एक कथा है- कत नामक एक महर्षि थे। उनके पुत्र ऋषि कात्य थे। इन्हीं कात्य के गोत्र में विश्वविख्यिात महर्षि कात्यायन उत्पन्न हुए थे। इन्होंने भगवती पराम्बा की कई वर्षों तक बड़ी कठिन तपस्या की। इनकी इच्छा थी कि माँ भगवती उनके घर पुत्री के रूप में जन्म लें। माँ भगवती ने उनकी यह इच्छा स्वीकार कर ली। कुछ समय बाद जब दानव महिषासुर का अत्याचार पृथ्वी पर बढ़ गया तब भगवान ब्रह्मा, विष्णु, महेश तीनों ने अपने तेज का अंश देकर महिषासुर के विनाश के लिए एक देवी को उत्पन्न किया। महर्षि कात्यायन ने सबसे पहले इनकी पूजा की। इस वजह से यह कात्यायनी कहलाईं।
ऐसी भी कथा सुनने को मिलती है कि ये महर्षि कात्यायन के यहां पुत्री रूप में जन्मी। माँ कात्यायिनी ने आश्विन कृष्ण चतुर्दशी को जन्म ले सूक्त सप्तमी, अष्टमी व नवमी तक इन्होंने कात्यायन ऋषि की पूजा ग्रहण की दशमी को माँ कात्यायिनी ने महिषासुर का वध किया था। माँ कात्यायनी देवी अमोघ फलदायिनी हैं। भगवान कृष्ण को पति रूप में पाने के लिए ब्रज की गोपियों ने माँ कात्यायनी की पूजा की थी। ये ब्रजमंडल की अधिष्ठात्री देवी के रूप में प्रतिष्ठित हैं।
माँ कात्यायनी का स्वरूप बहुत चमकदार है। इनकी चार भुजाएं हैं। इनकी दाहिनी ओर का ऊपरवाला हाथ अभयमुद्रा में एवं नीचे वाला वरमुद्रा में होता है। बाईं ओर के ऊपरवाले हाथ में तलवार एवं नीचे वाले हाथ में कमल-पुष्प सुशोभित है। माँ कात्यायनी वाहन सिंह है। माता की भक्ति एवं उपासना द्वारा व्यक्ति को बड़ी असानी से अर्थ, धर्म, काम, मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है। वह इस लोक में स्थित रहकर भी रहस्यमय तेज और शक्ति से युक्त हो जाता है।
उपासनाः- इनके पूजन से अलौकिक शक्ति का संचार होता है एवं दुश्मनों का संहार करने में ये समर्थ बनाती हैं। इनका ध्यान गोधुली बेला में करना पड़ता है। प्रत्येक साधारण व्यक्ति के लिए आराधना योग्य यह श्लोक आसान एवं स्पष्ट है। माँ जगदम्बे की भक्ति पाने के लिए इसे याद कर इसका जाप करना चाहिए।
श्या देवी सर्वभूतेषु, शक्ति रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।
अर्थातः है माँ! सर्वत्र विराजमान व शक्ति-रूपिणी प्रसिद्ध अम्बे, आपको मेरा बार-बार प्रणाम। या मैं आपको बारंबार प्रणाम करता/करती हूँ।
इसके अलावा जिन कन्याओ के विवाह मे विलम्ब हो रहा है, उन्हे इस दिन माँ कात्यायनी की उपासना करनी चाहिए, जिससे उन्हे मनोवांछित वर प्राप्त हो सके।
विवाह के लिये कात्यायनी मंत्रः- कात्यायनी महामाये महायोगिन्यधीश्वरि ! नंदगोपसुतम् देवि पतिम् मे कुरुते नमः।