मेहनत बेची जाती है या मजदूरों को खरीदा जाता है
हिना आज़मी
वैसे तो देश में कई बाजार देखने को मिलते हैं, जैसे- साधारण बाजार, मीना बाजार, बरेली का बाजार आदि लेकिन क्या आपने कभी मजदूरों के बाजार के बारे में सुना है? जी हाँ, हम आज आपको मजदूरों के बाजार (Labor market) के बारे में बता रहे हैं, जहाँ मेहनत बेची जाती है या मजदूरों को खरीदा जाता है।
हमारे दून में भी यह बाजार कई जगह लगता है। घण्टाघर, लालपुल पर कई जगह मजदूर सुबह 7 बजे से ही खड़े हो जाते हैं फिर एक दिन के खरीदार आकर उन्हें अपने साथ काम करने के लिए ले जाते हैं। यह मजदूर बिहार, उत्तरप्रदेश आदि से बेराजगारी की मार से बचने के लिए अपने घर परिवार को छोड़कर एक सिपाही की तरह शहर रूपी जंग के मैदान में आते हैं, यही है प्रवास या पलायन।
प्रतिदिन मजदूरी करने से ही उनके घर में चूल्हा जल पाता है
यहाँ आकर वह अपनी मेहनत बेचते हैं, प्रतिदिन मजदूरी करने से ही उनके घर में चूल्हा जल पाता है और उसी मजदूरी से वह अपने परिवार के लिए पैसे जोड़कर घर भेजते हैं। जिन्हें काम मिल जाता है, वह तो काम पर लग जाते हैं लेकिन दुबले-पतले और बूढ़े मजदूर को हर दिन काम नहीं मिलता है तो वह अपनी किस्मत को कोसकर निराश हो जाते हैं। इन मजदूरों को सरकारी योजनाओं का भी नहीं पता होता क्योंकि ये अनपढ़ या नाम मात्र के पढ़े होते हैं, ऐसे में ये सभी उन सब योजनाओं से वंचित रहते हैं।
बरसात के दिनों मजदूरों का काम ठप्प हो जाता
इनका कहना है कि मनरेगा के तहत उन्हें न काम मिल पाता है और न ही बेरोजगारी भत्ता। बरसात के दिनों इन मजदूरों का काम बिल्कुल ठप्प हो जाता है, सरकार इनके लिए बड़े वादे तो करती है लेकिन वह सभी जमीनी स्तर पर नाकाम होते हैं। एक दिन के मजदूर दिवस मनाने से कोई फायदा नहीं है जब तक इनकी परिस्थिति में सुधार न आए। सरकार को निरंतर इनके लिए पहल करना होगा।