मत तोड़ वह ताल्लुक जो तेरी जात से है
तू खफा मेरी किस बात से है,
तू भी न उलझा कर मुझसे इस तरह
जो तू अच्छी तरह वाकिफ मेरे जज्बात से है।
मैं कैसे जी लू तुमसे रूठ कर
मेरी हर सांस वो बस्ता तेरी याद से है,
मेरा रिश्ता जुड़ा है कुछ इस तरह तुमसे
जैसे इंसान का रिश्ता खुद अपने आप से हैं।।
यूं न मिल मुझसे खफा हो जैसे
साथ चल मौज-ए-सबा हो जैसे
लोग यू देखकर हंस देते हैं
तू मुझे भूल गया हो जैसे
इश्क को शिर्क की हद तक न बढ़ा
यू न मिल हमसे खुदा हो जैसे
मौत पे एहसान किया हो जैसे
ऐसे अंजान बने बैठे हो
तूमको कुछ भी न पता हो जैसे
हिचकियां रात को आती ही रहीं
तूने फिर याद किया न जैसे
जिंदगी बीत रही है ‘‘दानिश’’
एक बेजुर्म सजा हो जैसे।।