उत्तराखंड में दो दशकों में पलायन तेजी से हुआ

Migration in Uttarakhand

Migration in Uttarakhand

यह एक नकारात्मक प्रक्रिया है जो ग्रामीण क्षेत्रों को लुप्त करने का काम कर रही है

देहरादून। Migration in Uttarakhand पहाड़ों के बारे में यह कहावत मशहूर है कि यहां का पानी और जवानी कभी यहां के काम नहीं आ पाती।रोजगार की कमी, शिक्षा की समुचित व्यवस्था का अभाव, खेती करने में आने वाली परेशानियां यहां के लोगों को अपनी जड़ों को छोड़ने पर मजबूर करती जा रही है।

उत्तराखंड में पलायन इस हद तक बढ़ चुका है कि यहां के गांव तेजी से वीरान होते जा रहे हैं स यह बहुत बड़ा दुर्भाग्य है कि पहाड़ के कितने घरों के बाहर या तो ताले लगे हुए मिलते हैं या घर के बाहर केवल कोई बुजुर्ग दिखाई देता है।
पिछले दो दशकों में उत्तराखंड में भी पलायन तेजी से हुआ है।

आमतौर पर उत्तराखंड के लोग सुख सुविधाओं और बेहतर जीवन की चाहत में पलायन करते हैं लेकिन अब इन कारणों में प्राकृतिक आपदाएं,जैसे पानी की कमी,भूस्खलन,भूकंप आदि भी प्रमुख रूप से शामिल हो गए हैं।

उत्तराखंड के गांवों से जहां स्थानीय निवासी शहरों में जा रहे हैं, वहीं नेपाल और बिहार के लोग इन गांवों में आ रहे हैं। ये लोग कृषि श्रमिक के रूप में खेती का काम कर रहे हैं क्योंकि स्थानीय निवासियों की इस काम में दिलचस्पी काफी कम हो गई है।

2000 में उत्तराखंड के गठन के बाद से पर्वतीय क्षेत्रों की 35 प्रतिशत आबादी पलायन कर चुकी है। इन क्षेत्रों से प्रतिदिन 246 लोग पलायन कर रहे हैं। अगर इसी दर से पलायन जारी रहा तो राज्य की विधानसभा और लोकसभा क्षेत्रों को नए सिरे से परिभाषित करना पड़ सकता है।

उत्तराखंड में इन 20 वर्षों में आई गई सरकारों के लिए यह बहुत महत्वपूर्ण प्रश्न और गंभीरता से विचार करने वाला विषय था ताकि जहां का जनमानस पलायन की इस समस्या से निजात पा सकता।

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