Mrinal Pangti कभी स्कूल गई नहीं, सीधे दी बोर्ड परीक्षा
हल्द्वानी। आमिर खान की फिल्म ‘थ्री इडियट’ में एक डायलॉग है, बच्चा काबिल बनो कामयाबी झक मारकर पीछे आएगी… इसी का उदाहरण है उत्तराखंड की मृणाल। Mrinal Pangti अल्मोड़ा के एक गांव में रहती है, जबकि उनके दादा हल्द्वानी में रहते हैं। मृणाल ने बिना स्कूल में पढ़ाई किए न केवल ज्ञान हासिल किया, बल्कि जिंदगी में पहली बार परीक्षा भी दे डाली है। 10वीं कक्षा की परीक्षा में मृणाल बैठी हैं, जो घर में मिले बुनियादी ज्ञान के दम पर अब आगे का सफर शुरू करने की तैयारी कर रही हैं।
अल्मोड़ा के सल्ला गांव की 15 वर्षीय मृणाल पांगती न तो कभी पढ़ने के लिए स्कूल गई और न ही किसी से ट्यूशन पढ़ा। घर पर मिली तालीम और कार्यों की बुनियाद पर मृणाल ने मार्च 2018 में पहली बार सीधे बोर्ड की परीक्षा में बैठीं। ओपन स्कूल के माध्यम से मृणाल ने 10वीं कक्षा की परीक्षा दी है। मूल रूप से मुनस्यारी के मिलम गांव के निवासी नवीन पांगती वर्तमान में अल्मोड़ा के कफड़खान के करीब सल्ला गांव में परिवार के साथ रहते हैं।
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नवीन पांगती की दो बेटियां हैं और दोनों को ही बेटियों को उन्होंने स्कूल नहीं भेजा है। बताया कि करीब 6 साल पहले वो हल्द्वानी आए। मगर उनकी इच्छा पहाड़ में रहने की थी, इसलिए अल्मोड़ा के पासबाराकोट-देवड़ा रोड के करीब स्थित सल्ला गांव को चुना। बताया कि उनकी बड़ी बेटी मृणाल 15 साल की है और छोटी बेटी कृतिका साढ़े 13 साल की, दोनों को ही स्कूल में नहीं पढ़ाया।
15 साल उम्र में Mrinal Pangti ने जिंदगी की पहली परीक्षा दी
इस बारे में पूछे जाने पर नवीन पांगती का कहना है कि स्कूल में टीचर पढ़ाते नहीं, इसलिए ट्यूशन लगाना होता है। स्कूल जाने से पढ़ने-सीखने की प्रवृत्ति खत्म हो जाती है। इसलिए गुड़गांव में कक्षा 2 तक Mrinal Pangti को स्कूल भेजा, लेकिन फिर स्कूल से निकाल लिया। 15 साल उम्र में मृणाल ने जिंदगी की पहली परीक्षा दी है। नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ ओपन स्कूलिंग में 10वीं की परीक्षा को ऑन लाइन आवेदन किया।
ऑन डिमांड के आधार पर सारे पेपर देहरादून के सेंटर में दिए हैं और 27 मार्च को अंतिम पेपर दिया। मृणाल का रुझान इतिहास, राजनीतिशास्त्र, मनोविज्ञान की ओर है। फिलहाल वकालत या मनोविज्ञान के क्षेत्र में करियर बनाने की चाहत है, लेकिन ये भी अभी फाइनल नहीं है। नवीन पांगती की छोटी बेटी कृतिका की उम्र अभी करीब साढ़े 13 साल है। बताया कि त्रितिका कभी स्कूल ही नहीं गई। बचपन में कभी-कभी बच्चों को देखकर स्कूल जाने के लिए कहती।
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इसके बाद वो त्रितिका को स्कूल ले गए, लेकिन स्कूल में कमरों में बैठकर पढ़ रहे बच्चों को देखकर त्रितिका सहम सी जाती। उसको अक्षर ज्ञान, अंक ज्ञान भी घर पर ही हुआ है। नवीन पांगती ने बताया कि स्कूल न भेजकर बच्चों को उन्होंने व्यवहारिक ज्ञान दिया। घर पर मैं और मेरी पत्नी ने किताबें पढ़ना शुरू किया। इस देखकर बच्चे भी उन किताबों की आकर्षित हुए और उन्होंने किताबें पढ़नी शुरू कर दी।
गणित का संख्या का ज्ञान देने के लिए घर छोटे-छोटे काम कराए
गणित का संख्या का ज्ञान देने के लिए घर छोटे-छोटे काम कराए। जैसे एक मग पानी खेत में डलवाया, दो लकड़ी मंगायी। जो भी काम बच्चों ने किया संख्या के आधार पर किया। साथ ही कुकिंग के काम भी साथ लिया, इससे उनको गणित का व्यवहारिक ज्ञान हुआ। इसके साथ ही दुकान से सामान लेने सहित अन्य काम भी बच्चों से ही कराए, ताकि उनकों गणितीय ज्ञान समझ में आ सके। नवीन पांगती ने एनआईटी से बीटेक ओर आईआईटी मुम्बई से ग्राफिक डिजाइन का कोर्स किया है। इसके बाद परिवार के गुड़गांव में ही रहते थे।
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पांगती ने बताया कि करीब 6 साल पहले हल्द्वानी आए, लेकिन उनका मन पहाड़ रहने का था। दो साल पहले सल्ला गांव में आए हैं और ऑर्गेनिक फार्मिंग की पद्धति सीख रहे हैं। हालांकि उनके पिताजी अभी भी हल्द्वानी में ही परिवार के साथ रह रहे हैं। बताया कि वो सौका समुदाय के हैं, उनके परिजन पूर्व में गर्मियों में पिथौरागढ़ जिले के मिलम गांव है और सर्दियों में थल के करीब भैंसखाल में रहते थे।