Network Society : सारी सीमाओं से आज़ादी
हिना आज़मी
हम जानते हैं कि कंप्यूटरों के परस्पर संपर्क से बना जाल “नेटवर्क” कहलाता है| नेटवर्कों के बीच विचरण करने वाले इंटरनेट के प्रयोक्ता “नेटिजंस” कहलाते हैं और नेटिजंस का समाज “नेटवर्क सोसाइटी (Network Society)” या “सूचना समाज” के नाम से जाना जाता है। सिटीजंस का समाज एक-दूसरे से शारीरिक तौर पर मिल सकता है, प्रत्यक्ष देख सकता है और इस प्रकार एक यथार्थ समाज की संरचना होती है, लेकिन नेटीजन्स एक-दूसरे से आमने- सामने मिले यह जरूरी नहीं है।
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वह नेट पर किसी सोशल साईट द्वारा मिलते हैं, बातें करते हैं, सूचनाओं का आदान-प्रदान करते हैं, पोस्ट फोटो शेयर करते हैं, लाइक करते हैं, और अब तो वह एक दूसरे को देख सकते हैं, मित्रता कर सकते हैं, प्रेम कर सकते हैं। सिटीजन उसका पता धरती के किसी देश, किसी राष्ट्र, किसी संस्कृति ,किसी मोहल्ले और किसी बस्ती की तरफ इशारा करता है, यानी धरती पर इसकी रिहाइश एक खास सीमाबद्ध होती है , लेकिन नेटीजन्स का इंटरनेट पर एड्रेस इन सीमाओं से आज़ाद होता है। ईमेल, वेब सर्फिंग और फिर बुलेटिन बोर्ड ने मिलकर यह निराकार दायरा बनाया है।
साइबरस्पेस में तन के छोटे-छोटे बुलेटिन बोर्ड ओपन नेटीजन्स अपनी चिंताएं, सरोकार और विचार चस्पां {शेयर } कर सकते हैं। नेटवर्क भी एक नई किस्म के सामूहिक वजूद की तरह सामने आया है, जो एक साथ तरल भी है और अमीबा की तरह स्वत: अपना खाना बटोरते हुए विकसित होता चला जा रहा है। आज नेटवर्क ने ही ग्लोबलाइजेशन की अवधारणा को और मजबूत बनाया है | आज इंटरनेट के बहुत अधिक प्रयोग ने इसे सारी दुनिया का राजा बना दिया है। इस अधुनिक युग में पलक झपकते ही सारी सूचनाएं मिल जाती है और एक स्थान से दुसरे स्थान पर कुछ सेकंड में ही पहुंच जाती है, यह नेटवर्क की ही देन है।