डॉ. मयंक चतुर्वेदी
सरहदें दीवार खींच सकती हैं, लेकिन भावनाओं को बहने से नहीं रोक सकतीं, नहीं तो ऐसा कभी नहीं होता कि पाकिस्तान में बैठे बच्चों से पूछा जाता है तो वे हिन्दुस्तान को अपने लिए सबसे अच्छा देश बताएं और भारत के बच्चों की नजर में पाकिस्तान हमारा ही है, हम जैसे लोग ही वहाँ रहते हैं, कहा जाए। इसलिए संवेदना के स्तर पर जब कोई भावना से जुड़ी घटना हो जाती है तो दर्द सरहदों की सभी हदें पार कर जाता है। अभी हाल ही में पाकिस्तान से एक खबर आई हैं, उसे जब से जाना, लगातार यही लग रहा है कि हम तो हिन्दुस्तान में महिलाओं की बुरी स्थिति पर लगातार प्रहार करते हैं, प्रयत्न यही है कि देश की आधी आबादी की सुध कोई वास्तविक धरातल पर ले और उनके प्रति जो आदमी की नीयत है, वह पवित्रता को धारण करे।
जब से पाकिस्तान वाला समाचार पढ़ा है, लग रहा है कि हमारे इस पड़ोसी पाकिस्तान में तो महिलाओं की हालत भारत से भी कई गुना अधिक दयनीय है, इतनी कि हम स्वप्न में भी कल्पना नहीं कर सकते। कम से कम भारत में तो ऐसा कभी सुनने में नहीं आया कि किसी परिवार के सदस्य ने अपने घर की स्त्री की हत्या सिर्फ इसलिए कर दी कि उसे उसका बाहर जाना और नौकरी करना पसंद नहीं था। पाकिस्तान के कोहत की रहने वाली 27 साल की हिना शाहनवाज को सिर्फ नौकरी करने के कारण मार दिया गया। यह जानते हुए भी कि वह नौकरी किन हालात में अपनी पारिवारिक मजबूरियों के चलते कर रही है, उस पर कोई रहम नहीं किया गया । हिना अपने परिवार को चलाने वाली इकलौती सदस्य थी, उसके पिता का देहांत कैंसर के कारण कुछ साल पहले हो गया था। घर चलाने वाला हिना का भाई भी इस दुनिया में नहीं है , जिसके बाद से हिना के सिर पर अपनी मां और भाई के परिवार का जिम्मा आ गया, इसके अलावा हिना अपनी विधवा बहन और उसके बच्चे की भी देखरेख कर रही थी।
पेशावर से एम.फिल तक कि पढ़ाई कर चुकी हिना का इस्लामाबाद में एक गैर-सरकारी संगठन में काम करना उसके चचेरे भाई को इतना नागवार गुजरा कि वह उसकी हत्या करने में भी पीछे नहीं रहा। हमारी संवेदना यहां इस बात से भी जुड़ी है कि पाकिस्तान में महिलाएं जिन परिवारिक परिस्थितियों के बीच नौकरियां करने को विवश हैं, लोग हत्या या उन पर जुल्म करने के पहले उस स्थिति पर भी गौर करना क्यों मुनासिब नहीं समझते ? पाकिस्तान में ऑनर किलिंग के नाम पर इस तरह की हत्या का यह पहला मामला नहीं है. इससे पहले पाकिस्तान की मशहूर हस्ती कंदील बलोच की हत्या कर दी गई थी । रूढिवादी मुस्लिम देश पाकिस्तान में रहकर कंदील को सोशल मीडिया पर ‘खुलेपन’ वाले वीडियो और फोटो पोस्ट करने के लिए पहचाना जाता था। साथ ही वे अपने बयानों को लेकर भी चर्चा में रहती थीं।
कंदील के आरोपी भाई वसीम ने इस पर बड़ी ही बेशर्मी से कहा भी था कि उसे अपनी बहन की हत्या पर कोई पछतावा नहीं है और कंदील ने मुस्लिम धर्मगुरु अब्दुल कवी के साथ सेल्फी सहित सोशल मीडिया पर कई फोटो पोस्घ्ट कर परिवार की प्रतिष्ठा गिराई है। जिस देश में अभिव्यक्ति का अधिकार ही उसकी आधी आबादी से छीन लिया जाए, तब फिर उस देश की सामाजिक परिस्थितियों के बारे में कुछ कहना शेष नहीं रह जाता है । यह एक विडम्बना ही है कि धर्म के आधार पर भारत से अलग हुआ यह देश अपना नाम बड़े ही फक्र से पाक+स्तान = पाकिस्तान रखता है, जिसका कि शाब्दिक अर्थ ही पाक यानी पवित्र लोगों का वतन है। अब, यहां के लोग कितने पवित्र हैं, आज यह इनकी करतूतों के कारण कहने की जरूरत शेष नहीं बची। इसके नापाक इरादे पूरी दुनिया जान गई है। अपनी आधी जनसंख्या पर जुल्म ढहा रहे इस देश में महिलाओं के प्रति आपराधी भावना, जबरन विवाह का प्रचलन, एसिड अटैक लड़कियों की इज्जत के नाम पर करने का चलन भी जोरों पर है।
आंकड़े यही हैं कि 10 या 20 प्रतिशत नहीं, 90 फीसदी पाकिस्तानी महिलाएं घरेलू हिंसा की शिकार हैं। देश में झूठी शान के नाम पर हत्या, बाल विवाह और कुरान के साथ शादी जैसे पुरातन रीति रिवाज कायम हैं। यहां तक कि महिलाओं को सामाजिक नियम कायदों के नाम पर घरेलू हिंसा, दहेज प्रताड़ना और लैंगिक असमानता का सामना करना पड़ता है और वे इसके खिलाफ आवाज भी नहीं उठा सकतीं। पाकिस्तान में उपरोक्त कारणों के अलावा धर्मांधता और पति द्वारा तीन बार तलाक कहकर अलगाव का नियम महिलाओं की स्थिति को और कमजोर करता है और इन सबसे बढ़कर पाकिस्तान की राजनीति और शासनतंत्र में धर्म के हस्तक्षेप से महिलाओं की स्थिति और भी खराब हो रही है। इसका एक बड़ा उदाहरण हम सभी ने पिछले दिनों देखा भी है, जिसमें वहां संवैधानिक दर्जा प्राप्त ‘द काऊंसिल ऑफ इस्लामिक आइडियालोजी (सी.आई.आई.) जो देश की संसद को इस्लाम के अनुसार कानून बनाने के लिए प्रस्ताव देती है, ने महिलाओं को लेकर अपनी स्तुतियाँ दी।
यहां उसने पाकिस्तानी पंजाब की विधानसभा द्वारा पारित ‘महिलाओं के संरक्षण सम्बन्धी विधेयक’ को गैर-इस्लामी बताकर खारिज करते हुए एक विवादास्पद वैकल्पिक विधेयक तैयार किया है जिसके अनुसार यदि पत्नी अपने पति की बात नहीं मानती, उसकी इच्छा के अनुसार कपड़े नहीं पहनती और शारीरिक संबंध बनाने को तैयार नहीं होती तो पति को अपनी पत्नी की थोड़ी-सी पिटाई करने की अनुमति मिलनी चाहिए। वहीं, इसमें हिजाब नहीं पहनने, अजनबियों से बात करने, तेज आवाज में बोलने और अपने पति की सहमति के बगैर लोगों की वित्तीय मदद करने पर भी पत्नी की पिटाई करने की अनुमति देने की सिर्फारिश की गई। इसके अलावा सह-शिक्षा वाले विद्यालयों में लड़कियों के पढ़ने, किसी सैनिक अभियान में हिस्सा लेने, पुरुषों से घुलने-मिलने, अजनबियों के साथ घूमने व महिला नर्सों द्वारा पुरुष रोगियों की देखभाल पर भी रोक की सिर्फारिश की गई।
वस्तुतः यह तो एक उदाहरण है, अपनी आधी आबादी के साथ नाइंसाफी के ऐसे कई उदाहरण पाकिस्तान की रोजमर्रा की जिन्दगी के साथ आम हैं। अंत में यही कि पाकिस्तान में महिलाओं की स्थिति का अंदाजा इससे भी लगाया जा सकता है कि जिन्हें दुनिया ने सम्मान दिया है, ऐसी नोबेल पुरस्कार विजेता मलाला यूसुफजई और सामाजिक कार्यकर्ता मुख्तारन माई को भी यहां आज तक सम्मान नहीं मिला। वे खुलकर यहां जश्न तक नहीं मना सकती हैं। इसे लेकर यहां से प्रकाशित एक प्रमुख समाचार पत्र पाकिस्तान टुडे की यह तल्ख टिप्पणी समझने लायक है जो कहती है कि यहाँ महिलाएँ दुनिया के किसी भी देश की तुलना में अधिक पिछड़ी हैं। यातना, प्रताड़ना, दुष्कर्म, वैवाहिक दमन और सम्मान के नाम पर हत्याएँ आम बातें हैं, इसलिए इन पर बहुत शोर नहीं होता। पाकिस्तान ऐसे तत्वों को लेकर समझौतावादी हो गया है जो धर्म के नाम पर समाज पर अपनी दकियानूसी सोच थोपना चाहते हैं।