राज्य सरकार करे पंचकर्म को बढ़ाने का प्रयास Panchakarma
Panchakarma हमारे राज्य उत्तराखंड में योजनाएं तो बड़ी जोर- शोर से बनती रहती हैं, लेकिन कुछ समय बाद जनता को यह पता नहीं चलता है कि जिस योजना का इतना प्रचार- प्रसार किया गया था, उसकी मौजूदा स्थिति क्या है ? इसका सबसे बड़ा कारण योजनाओं का फाइलों में ही कैद रह जाना है। योजनाएं फाइलों से बाहर निकलती है वह भी कुछ ही कदम चल कर थम जाती हैं।
यह पहली मर्तबा नहीं है कि ऐसी योजनाओं का जमीनी स्तर पर कुछ नही हो पाया है, बल्कि राज्य गठन के बाद यह सियासी अभ्यास नीति- निर्धारकों की आदत का हिस्सा बन चुका है , इससे संबंधित मामला पिछले वर्ष ही हुआ, जिसमें स्वास्थ्य विभाग की आयुष विंग की चर्चा हुई, 4 साल पहले खरीदे गए|
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पंचकर्म फिजोथेरपी के उपकरणों की पैकिंग तक नहीं खोला जाना हतप्रभ करने वाला था। करोड़ों की धनराशि वाले उन उपकरणों को केवल इसलिए नहीं खोला जा सका क्योंकि विभाग के पास ऐसे तकनीकी विशेषज्ञ नहीं थे, जो उन उपकरणों को संचालित कर सकें, जबकि उन उपकरणों का संचालन करने वालों की राज्य में कमी है।
उत्तराखंड की हकीकत परेशान करने वाली
इसके बावजूद स्वास्थ्य विभाग लापरवाह बना रहा है। उत्तराखंड के नीति निर्धारकों की कार्यशैली पर सवाल उठना स्वाभाविक है, इसका दावा देश में करने वाले उत्तराखंड की हकीकत परेशान करने वाली है। होना तो यह चाहिए था कि राज्य में पंचकर्म को विकसित करने वाली योजना को चरणबद्ध ढंग से धरातल पर उतारा जाता, लेकिन ऐसा नहीं हुआ सरकारें बदलती गई और पंचकर्म के ढांचे में मनमुताबिक या सियासी निहितार्थ के तहत बदलाव किए, ऐसे में पंचकर्म की पैथी को स्थापित करने में राज्य हिचकोले खाता ही ज्यादा नजर आया।
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अभी समय है कि इस तरह के प्रयासों को गंभीरता के साथ आगे बढ़ाया जाए। अभी पंचकर्म को स्थापित व विकसित करने की दिशा में प्रभावी पहल होती है तो निश्चित तौर पर इसके नतीजे सकारात्मक सामने आएंगे। सरकार को चाहिए कि योजनाओं को फाइलों से बाहर निकालें और व्यवस्थाओं का समग्र मूल्यांकन की गयी नई राह पर आगे बढ़े। यदि ऐसा होता है तो उत्तराखंड को पंचकर्म के क्षेत्र में देश में एक विशेष पहचान मिलेगी और सरकार भी आयुर्वेद और पंचकर्म में उत्तराखंड के हस्तक्षेप को और गहरा कर सकेगी।