भौतिक विकास ने खत्म किया नदियों का अस्तित्वः राजेंद्र सिंह

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अल्मोड़ा । जल क्रांति के जनक मैगससे व वाटर नोबल पुरस्कार से सम्मानित राजेंद्र सिंह उर्फ पानी बाबा ने कहा कि उत्तराखंड सहित पूरे भारतवर्ष में यदि सूख रही सदानीरा नदियों को यदि बचाना है तो नीर, नारी और नदी का सम्मान करना सीखना होगा। उत्तराखंड में भौतिक विकास ने प्राकृतिक संपदाओं को तहस-नहस और नदियों, जलस्रोतों अस्तित्व समाप्त किया है। यहां सबसे बड़ी जरूरत जल साक्षरता की है।

राजस्थान की सूख चुकी सात नदियों को पुर्नजीवित करके 1200 से अध्कि गांवों को पुर्नस्थापित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले मैगससे पुरस्कार से सम्मानित ‘द वाॅटर मैन आॅफ इंडिया’ नाम से विख्यात, जल बिरादरी के राष्ट्रीय अध्यक्ष, तरूण भारत संघ के संस्थापक राजेंद्र सिंह उर्फ ‘पानी बाबा’ शनिवार को अल्मोड़ा पहुंचे। उत्तराखंड लोक वाहिनी के केंद्र्रीय अध्यक्ष व सोशल एक्टीविस्ट डाॅ. शमशेर सिंह बिष्ट के आवास में मीडिया से बातचीत में उन्होंने उत्तराखंड में नदियों की स्थिति और प्राकृतिक असंतुलन को लेकर खुलकर अपने विचार रखे।

उन्होंने कहा कि जब तक देश में कोई लिखित संविधन नहीं था तब तक लोग मां का दर्जा देते हुए पानी और प्रकृति का बहुत सम्मान करते थे, लेकिन दुर्भाग्य से जब से लिखित संविधन बना तो जनता की मनावृत्ति ही बदल गई। उन्होंने बताया कि वह पूर्व से ही कहते रहे कि बड़े बांधें से मानव आबादी को ऽतरा है, लेकिन उनकी बात अनसुनी करते हुए उल्टा उन्हीं पर दर्जनों मुकदमे तत्कालीन सरकारों ने थोप दिये, लेकिन जब हादसे होने लगे तो सरकारों को उनकी बात का अर्थ समझ आने लगा। उन्होंने सीधे शब्दों में कहा कि यहां ठेकेदारों का लोकतंत्रा चल रहा है, जहां जनता को विकास का लालच देकर बरगलाया जा रहा है। प्राकृतिक संसाध्नों का दोहन कर हिमालय को नुकसान पहुंचाने के काम हो रहे हैं। इन 17 सालों में सड़क, बांध् और विद्युत परियोजनाओं के नाम पर उत्तराखंड को जबरदस्त नुकसान पहुंचाया गया है।

उत्तराखंड के जंगल समाप्त हो रहे हैं और नदियों की मिट्टðी बहकर मैदानी भू-भागों को जा रही है। कभी जिस कोसी नदी में दर्जनों झरने बहते थे, वहां से एक भी झरना बहता हुआ नहीं दिख रहा है। उत्तराखंड प्रकृति से भरपूर है, लेकिन इसका सम्मान नहीं किया जा रहा है। नियमानुसार किसी भी प्रदेश में कम से कम 66 प्रतिशत जंगल होने चाहिए, लेकिन भवन निर्माण और औद्योगिक इकाईयों की स्थापना ने जंगल सापफ कर डाले हैं। ऐसे में ध्रती तप रही है और बुऽार से पीड़ित है। उन्होंने कहा कि यदि उत्तराखंड में नदियों व जल स्रोतों को बचाना है तो पानी का रिचार्ज बढ़ाना होगा और डिस्चार्ज घटाना होगा। जब तक पानी का दुरूपयोग बंद नहीं होगा और जल संवधर््न पर ध्रातल पर सामूहिक सहभागिता के साथ काम नहीं होंगे हालात बद से बदतर होते जायेंगे। प्रेस वार्ता में डाॅ. शमशेर सिंह बिष्ट ने राजेंद्र सिंह का परिचय दिया और जल संरक्षण पर अपने विचार भी रखे ।

कहां गया जवानी, पानी और किसानी का नारा ? राजेंद्र सिंह ने कहा कि उत्तराखंड राज्य के संदर्भ में चर्चा करते हुए कहा कि राज्य गठन से पूर्व ‘जवानी, किसानी और पानी’ का नारा दिया गया था। आशा थी कि पृथक राज्य गठन के बाद यहां की जवानी पलायन से मुत्तिफ पायेगी, पर्याप्त पानी होगा और किसान समृ( बनेगा, लेकिन राज्य गठन के बाद इसका ठीक उल्टा हुआ। यहां की जवानी पलायन कर रही है, पानी के स्रोत सूख गये और किसान खेती बाड़ी छोड़ने को मजबूर हो गये हैं। उत्तराखंड में भयानक जल संकट के आसार राजेंद्र सिंह ने कहा कि भारत व उत्तराखंड के संदर्भ में गंभीर चिंतन करने के उपरांत उन्हें वहीं हालात दिख रहे हैं, जो आज सेंट्रल ऐशिया व अका के देशों के हैं, जो आज सिपर्फ पानी के लिए युद्ध कर रहे हैं।

जल संकट के आसार भारत व उत्तराखंड में हैं। उन्होंने बताया कि तीन साल पहले उन्होंने साउथ कोरिया से विश्व जल शांति यात्रा शुरू की थी। ज्ञानजू ;साउथ कोरियाद्ध में हुए सम्मेलन में यह बात सामने आई थी कि यदि तीसरा विश्व युद्ध हुआ तो वह पानी के लिए होगा। जिस तरह से आज नदियां सूख रही है, जल स्रोत ऽत्म हो रहे हैं। उससे संघर्ष के हालात पैदा होने लगे हैं। प्रोजेक्ट बनाने से नहीं सुलझेगी समस्या पानी बाबा ने कहा कि जल संरक्षण का काम सिर्फ प्रोजेक्ट बनाने और किसी संस्था विशेष को यह जिम्मेदारी सौंप देने से नहीं होने वाला है। जब तक सरकारों व संस्थाओं में किसी प्रोजेक्ट को लेकर श्रेय लेने की होड़ समाप्त नहीं होगी तब तक ध्रातल पर कोई काम भी नहीं होगा। पानी बचाना तो एक सामूहिक कर्तव्य होना चाहिए, ना कि किसी संस्था विशेष की जिम्मेदारी। उन्होंने कहा कि उन्होंने आज तक पानी बचाने को जो भी काम किये उसमें से एक पर भी अपना या अपनी संस्था का लेबल नहीं चिपकाया है।