कासाबिनाका : जलना मंजूर कर पिता की आज्ञा मानी Pita ki agyakari putra story
हिना आज़मी
आज हाईटेक जमाने में लोग इतने आगे बढ़ रहे हैं। बच्चों की भी बात की जाए तो, इनका दिमाग बहुत सक्षम हो गया है। एक और जहां हमारी पीढ़ी इतनी तरक्की पर है। वही उनमें से कुछ बच्चे ऐसे भी हैं , जो हमारी संस्कृति को खत्म करने पर लगे हैं। आज हमारे कुछ किशोर-किशोरियों को “आज्ञाकारी” का मतलब भी नहीं पता है। इसी संदर्भ में मैं आज आपको एक कहानी (Pita ki agyakari putra story ) सुनाने जा रही हूं जिसमें एक 8 वर्ष का बच्चा आज्ञाकारी का असली मतलब सिखाता है।
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कासाबिनाका का नाम का, 8 वर्ष का लड़का अपने पिता के साथ जो एक पानी के जहाज के कैप्टन है , एक दिन जहाज में घूमने जाता है। बालक पिता का बहुत लाड़ला है क्योंकि वह इकलौता है और इसके साथ पिता की सारी बातें मानता है। शिप में पहुंच कर बाप बेटे को खाने की चीजें देता है। पिता को अचानक कहीं जाना पड़ जाता है , तो फिर पिता उसे शिप में ही यह कहकर छोड़ जाता है कि “मैं जब तक न आ आऊं, तब तक यहां से मत हिलना” । पिता वहां से चला जाता है|
अचानक शिप में कुछ खराबी होने के कारण वहां आग लग जाती है, बालक वहां से नहीं हिलता है ,बाप की आज्ञा थी, माननी तो थी ही। बालक जलकर राख हो जाता है, पिता पहुंचकर बहुत रोता है। कासाबिनाका जैसे बच्चे आज कहीं नहीं है। मैं यह नहीं कहती हूं कि कासाबिनाका की तरह बच्चे इतने आज्ञाकारी हो जाऐ कि आग को भी गले लगा ले , लेकिन मां-बाप की आज्ञा का पालन जितना हो सके उतना तो करना चाहिए।