सवाल वैश्विक स्तर पर आत्मसम्मान का

self respect
सवाल वैश्विक स्तर पर आत्मसम्मान का self respect
मानवीय गरिमा की गारंटी
हिना आज़मी

इस बात में कोई संदेह नहीं है कि नवअनुदानों द्वारा शुरू की गई नवउदारतावादी आर्थिक नीतियों और अन्य कार्यक्रमों से इतने बड़े पैमाने पर दरिद्रता आयोग, जितनी मानव इतिहास में कभी नहीं आई और ज़रूरत से कम काम करने की स्थिति, स्थाई रोजगार, मजदूरों के अधिकार, काम के अवसर और प्रकृति का सवाल वैश्विक स्तर पर भी आत्मसम्मान (self respect ) से जुड़े मामले हैं।

उदारतावादियों की इमेज पर गिरी जूठन भले ही लोगों की बुनियादी जरूरतों के हिसाब से काफी हो, लेकिन इस क्रम में मनुष्य होने के समान भाव की बलि चढ़ जाती है। प्रभुत्ववादी नीतियां लोग पर टिकी है। उपभोक्तावाद और भौतिकवाद को बढ़ाकर अपना उल्लू सीधा करती हैं, और लोगों को अपने आत्मसम्मान के अनुसार नैतिक फैसले लेने का विकल्प नहीं देती। वह मुनाफे के लिए मानव जाति के सम्मान को बलि का बकरा बनाती है।

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Daliton ka आत्मसम्मान और सामाजिक समानता

दलितों को उनके नजरिए और अनुभव सहित शैतानी भूमंडलीकरण के खिलाफ लड़ी जाने वाली लड़ाई के लिए आत्म सम्मान और सामाजिक समानता के संघर्ष को मुख्य मुद्दा बनाना होगा। दलितों की वस्तुगत स्थितियों ने ही बाबासाहेब आंबेडकर समेत अनेक दलित नेताओं के विचारों को भारत में जातीय आंदोलन चलाने की ओर प्रेरित किया। दक्षिण एशिया के शेष हिस्सों में विशिष्ट स्थानीय स्थितियों के चलते यही अभी यह एहसास नहीं जगह है कि यह सामाजिक असमानता का एक महत्वपूर्ण स्रोत है।

Dr. Bhimrao Ambedkar

पिछले दो दशकों में अछूत जातियों के सशक्तिकरण को बड़ी जातियों द्वारा कबूल कर लिए जाने की स्थिति में बदलाव आया है। दलित चेतना के प्रसार के साथ ही बड़ी जातियों का रुख भी कठोर हुआ है। यही हाल महिलाओं में बढ़ती चेतना से भी पैदा हुआ है। उनके खिलाफ हिंसा और दमन बढ़ा है।

मसलन  गर्भस्थ कन्या भ्रूण की हत्या, भी  कुछ वर्षों तक की लड़कियों के अनुपात में आई गिरावट का कारण है जिससे लिंगानुपात गडबडा रहा है। इन मुद्दों को सामाजिक लोकतंत्र के बेहतर दायरे मैं उनकी पूरी जटिलताओं के साथ देखना चाहिए।

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