वाराणसी। 17वीं विधानसभा चुनाव के पूर्व उत्तर प्रदेश में खासकर पूर्वांचल में अपना दल में कई रंग देखने को मिला। कमेरा समुदाय के सबसे ताकतवर नेता रहे डॉ. सोनेलाल पटेल की दुर्घटना में मौत के बाद अपना दल की कमान पहले उनकी बेटी अनुप्रिया पटेल ने संभाली। फिर लोकसभा चुनाव के बाद परिवार में अन्तरकलह की ऐसी जंग छिड़ी कि बेटी अनुप्रिया अब केन्द्रीय मंत्री और उनकी मां कृष्णा पटेल और बहन पल्लवी पटेल की राह अलग हो गयी और दल में दो फाड़ हो गया। इसके बाद विधानसभा चुनाव में दोनो गुटों में शब्द रूपी तीर जमकर निकलता रहा।
मीडिया में भी दल की फूट सुर्खियां बटोरती रही। मां कृष्णा पटेल और बहन पल्लवी दल में फूट के लिए भाजपा पर बरसती रही और दल पर कमेरा समाज में अपनी स्वीकार्यता बढ़ाने के लिए छटपटाहट दिखाती रही। इसके लिए उन्होने कई छोटे दलों के साथ बाबू लाल कुशवाहा के पार्टी के संग गठबंधन कर बेटी अनुप्रिया को सीधी चुनौती दी और जातिगत आधार पर रोहनिया विधानसभा से ताल ठोंक दिया। इस भरोसे कि कमेरा समाज उन्हें अपना नेता मान लेगा। उधर केन्द्रीय मंत्री अनुप्रिया भी अपनी ताकत बढ़ाकर दल पर पूर्ण वर्चस्व के लिए बेचौन रही।
चुनाव के बाद कमेरा समाज ने कृष्णा पटेल के नेतुत्व क्षमता को नकार दिया। इसकी उम्मीद तो कृष्णा पटेल और उनके कट्टर समर्थकों को भी नहीं रही। चुनाव में अपना दल की अध्यक्ष कृष्णा पटेल की जमानत जब्त हो गई। उन्हें महज 9549 वोट मिले, जबकि इस सीट पर भाजपा गठबंधन सुरेंद्र नारायण औढ़े ने 1,19,676 मत हासिल कर जीत हासिल की। इस जीत में अनुप्रिया अपनी पार्टी के साथ पूरी ताकत से खड़ी थी। सियासी पंडित मानते हैं कि इस चुनाव के बाद कृष्णा पटेल का सियासी अवसान शुरू हो गया है। जबकि चुनाव के पहले लोग मानते थे कि कृष्णा पटेल यहां सम्मान जनक मत पाकर पार्टी में पुनःस्थापित हो जाएंगी।