अंधेरे जीवन में रोशनी बिखेर रही Sukeshi Barui
यूं तो जिनको मुकम्मल जिंदगी हासिल हुई है वह किसी ना किसी बहाने जी ही लेते हैं, लेकिन जो किस्मत के हाथों मजबूर हैं, उनको उनकी मंजिल तक पहुंचाने की निरंतरता कोशिश समाज में बहुत कम देखी जाती है। Sukeshi Barui ऐसे ही कुछ लाचार वह मजदूर लोगों को तलाश कर उनकी मंजिल तक पहुंचाने के भगीरथ प्रयास में जुटी है। हावड़ा की सुकेशी बारुई बेबस व बेसहारा बच्चों की जिंदगी संवारने के साथ ही कमजोर तबके की मदद की हर मुमकिन कोशिश में वर्षों से जुटी हैं।
दिव्यांगों व बेसहारा बच्चों का जीवन संवारने का बीड़ा उठाया
जीवन का 78वां बसंत देख चुकी सुकेशी ने 17 वर्ष की उम्र से दिव्यांगों व बेसहारा बच्चों का जीवन संवारने का बीड़ा उठाया था। वह 12वीं की पढ़ाई पूरी करने के बाद मदर टेरेसा की संस्था से जुड़ी और इसके बाद निरंतर परोपकार के कार्यों में खुद को समर्पित कर दिया। तत्कालीन बिहार के गुण चिकित्सा शिक्षा शिविरों के माध्यम से अति पिछड़े व आदिवासी परिवारों को सेवाएं मुहैया कराएं।
इसके बाद हावड़ा के पुल खाना में वर्षों गरीब व बेसहारा लोगों के उत्थान में जुटी रही। 1978 में ग्रामीण हावड़ा के आमता उदयनारायणपुर व संलग्न इलाकों में आई भीषण प्राकृतिक आपदा में हजारों परिवार बेघर हो गए। इन परिवारों को महीनों राहत शिविरों की मदद से चिकित्सा व अन्य जरूरी सेवाएं उपलब्ध कराने के सेवा कार्य में लगे रही।
बेटों के साथ की दिव्यांगों की परवरिश
1999 में 3 दिव्यांग बच्चों के साथ उलबेडिया के काटीला में अपने ही घर में Sukeshi Barui ने आशा भवन सेंटर की नींव रखी। इसी सेंटर से दिव्यांगों की परवरिश का सिलसिला शुरु हुआ अपने बच्चों के साथ दिव्यांग बच्चों की परवरिश करने लगी। 2004 में 50 दिव्यांग बच्चों के साथ आशा भवन सेंटर को विस्तृत आकार में स्थापित किया गया। विभिन्न शारीरिक अक्षमता वाले 300 बच्चों को चिकित्सा व शिक्षा मुहैया कराने के अत्याधुनिक व्यवस्था से लैस सेंटर में फिलहाल 110 दिव्यांगों को चिकित्सा शिक्षा उपलब्ध कराई जा रही है।
सेंटर की स्थापना में तत्कालीन कोलकाता पर आधारित पुस्तक सिटी ऑफ जॉय के फ्रेंच लेखक डोमिनिक की संस्था का बड़ा योगदान रहा है। सेंटर संचालन में भी संस्था से प्राप्त आर्थिक मदद की भूमिका अहम रही है। यहां दिव्यांग बच्चों के लिए स्कूल स्थापित किए गए।
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दैनिक रूप से स्कूल में दिव्यांग बच्चों को शिक्षा दी गई और दी जाती है। साथ ही खेलकूद की भी यहां पूरी व्यवस्था की गई है। यहां 18 वर्ष तक के दिव्यांगों की परवरिश की व्यवस्था है। सेंटर में दिव्यांग बच्चों की परवरिश के लिए अभिभावकों को प्रशिक्षित भी किया जाता है। गरीब परिवारों को लगभग निशुल्क चिकित्सा वह दवाइयां भी उपलब्ध कराई जाती है।