23 मई के परिणाम पर टिका त्रिवेन्द्र सरकार का भविष्य

Trivendra Government Future
Trivendra Government Future

त्रिवेन्द्र सरकार के लिए अगामी 23 मई बहुत अहम दिन माना जा रहा है, क्योंकि इस दिन पूरे हिन्दुस्थान के साथ-साथ त्रिवेन्द्र रावत का भविष्य ( Trivendra Government Future ) भी टिका हुआ है। यह हम इसलिए कह रहे हैं, क्योंकि अगर हम उत्तराखण्ड राज्य का इतिहास उठा कर देखे तो जब से उत्तराखण्ड राज्य बना है एनडी तिवारी को छोड़कर कोई भी मुख्यमंत्री अपना पांच साल का कार्यकाल पूरा नहीं कर पाया है, उसे बीच में ही अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा।

उत्तराखण्ड की राजनीति हमेशा अस्थिर रही है। प्रदेश का मुखिया बनने की चाह रखने वालो की काफी लम्बी कतार है। जिसके वजह से हमेशा सत्ता पलट की आशंका बनी रहती है।

वैसे तो आज के राजनेताओं का जो हाल है उसे प्रदेश की जनता खूब अच्छी तरह समझती है। राज्य बनने से लेकर आज तक जो भी मुख्यमंत्री बना उसकी कुर्सी पर बैठने के बाद जो हाल हुआ वह प्रदेश के सामने है।

9 नवंबर 2000 को उत्तराखंड के पहले मुख्यमंत्री स्वर्गीय नित्यानंद स्वामी जी को प्रदेश का मुख्यमंत्री बनाया गया, उनकी अपनी पार्टी के लोगों को यह रास नहीं आया और उन्होंने स्वामी जी की टांग खींचनी शुरू कर दी, वैसे तो स्वामी जी का नाम मुख्यमंत्री के लिए तब आया जब प्रदेश में मुख्यमंत्री की दौड़ के लिए पहले ही सबको हाईकमान ने दरकिनार कर दिया था।

स्वामी को प्रदेश का पहला मुख्यमंत्री बनाया गया

नित्यानंद स्वामी को प्रदेश का पहला मुख्यमंत्री बनाया गया लेकिन दुर्भाग्यवश स्वामी जी 354 दिन तक ही मुख्यमंत्री रहे 29 अक्टूबर 2001 को उनको मुख्यमंत्री पद छोड़ना पड़ा फिर उनकी जगह पर भगत सिंह कोश्यारी को प्रदेश का मुख्यमंत्री बनाया गया लेकिन कोश्यारी जी भी मात्र 122 दिन ही मुख्यमंत्री रहे।

कोश्यारी के बाद प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनी उसके बाद स्व. नारायण दत्त तिवारी मुख्यमंत्री बने। एनडी तिवारी ने 2 मार्च 2002 को मुख्यमंत्री पद की शपथ ली पूरे 5 साल तक सरकार चलाई लेकिन वह अकसर विवादो में रहे। इसी बीच इन पर बनी नेगी जी का गढ़वाली गाना काफी मशहूर हुआ और कांग्रेस सरकार की काफी किरकिरी हुई, लेकिन उन्होंने पूरे 5 साल तक सरकार चलाया और 7 मार्च 2007 को सरकार का कार्यकाल पूरा हुआ|

फिर 8 मार्च 2007 को भाजपा के भुवन चंद खंडूरी ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली और खंडूरी जी प्रदेश के विकास कार्य को आगे बढ़ा रहे थे कि उन्हें भी मुख्यमंत्री पद से हाथ धोना पड़ा और वह 23 जून 2009 तक ही मुख्यमंत्री पद पर रहे। वह सिर्फ 800 दिन ही सरकार में रहे।

हरिद्वार कुंभ मेले के घोटाले के आरोप लगे

खंडूरी जी के बाद भाजपा के रमेश पोखरियाल निशंक 24 जून 2009 को मुख्यमंत्री पद की शपथ ली वह भी प्रदेश के लिए कोई ठोस कार्य नहीं कर पाए, उल्टे ही उनके ऊपर हरिद्वार कुंभ मेले के घोटाले के आरोप लगे और उनको भी 10 सितंबर 2011 को कुर्सी छोड़नी पड़ी।

उन्होंने भी 808 दिन ही प्रदेश के मखिया की कुर्सी संभाली। इस बीच पहाड़ी नेता मैदानी क्षेत्र की ओर भागने लगे और वहीं से चुनाव लड़ने लगे, इससे ही आप अंदाजा लगा सकते हैं कि प्रदेश बनने के बाद इन नेताओं ने क्या किया? फिर एक बार 11 सितंबर 2011 को भुवन चंद्र खंडूरी को प्रदेश का मुख्यमंत्री बनाया गया|

13 मार्च 2012 को भाजपा का 5 साल का कार्यकाल समाप्त हो गया फिर एक बार कांग्रेस पार्टी ने प्रदेश में सरकार बनाई और मुख्यमंत्री के नाम के लिए दिल्ली हाईकमान ने विजय बहुगुणा को मुख्यमंत्री के लिए चुना। वैसे तो उन दिनों के कांग्रेस नेता सतपाल महाराज, हरीश रावत, इंदिरा हृदयेश, प्रीतम सिंह आदि का नाम मुख्यमंत्री की सूची में था लेकिन बाजी विजय बहुगुणा के ही हाथ लगी|

फिर क्या था कुछ दिन विजय बहुगुणा काम करने के बाद उन पर आरोप लगे जैसे कि अपनों-अपनों को मिठाई बांटी, उनका बेटा साकेत बहुगुणा पिता के कंधे से कंधा मिलाकर चल रहा है, सुनने में तो यहां तक आया कि पिता की आड़ में खूब दलाली चली लाखों रुपए इधर से उधर हुए।

हरीश रावत एवं विजय बहुगुणा में आपस में ठन गई

सूत्रों के अनुसार एमडीडीए के अभियंता जोकि एमडीडीए में अस्थायी थे उनको एक कांग्रेस के पूर्व विधायक द्वारा सारे जनों को लाखों रुपए लेकर स्थाई कर दिया गया और दूसरी तरफ हरीश रावत एवं विजय बहुगुणा में आपस में ठन गई। एक-दूसरे से बात करना तो दूर देखना भी पसंद नहीं करते थे।

दूसरी तरफ केदारनाथ में आपदा में लाखों तीर्थयात्री मारे गए उसके बाद क्या हुआ यह पूरा भारत जानता है। 31 जनवरी 2014 तक ही बहुगुणा ने मुख्यमंत्री की कुर्सी संभाली। वह 690 दिन ही प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे लेकिन मुख्यमंत्री की कुर्सी जाने से विजय बहुगुणा बहुत ही आहत हुए|

बहुगुणा के बाद हरीश रावत ने कुर्सी संभाली, कुछ दिन तो ठीक-ठाक चलता रहा लेकिन जो उसके बाद हुआ वह प्रदेश के लिए यानी उत्तराखंड के लिए सबसे काला दिन रहा, वह था हरीश रावत की सरकार के मंत्री व नेता बहुगुणा गुट में शामिल होकर कांग्रेस छोड़ गये जोर शोर से भाजपा में शामिल हो गए।

कांग्रेस सरकार को यह बहुत ही जोर का झटका लगा, क्योंकि पार्टी के सारे दिग्गज नेताओं के जाने से पार्टी में रिक्तता गई और इन बागी नेताओं की मांग थी कि हरीश रावत को मुख्यमंत्री पद से हटाया जाए। उसके बाद 27 मार्च 2016 को केन्द्र सरकार द्वारा उत्तराखण्ड में राष्ट्रपति शासन लगा दिया गया, और यह राष्ट्रपति शासन 46 दिन तक रहा। उसके बाद पुनः हरीश रावत ने मुख्यमंत्री पद संभाला।

मुख्यमंत्री शपथ ग्रहण के समय पीएम मोदी भी मौजूद थे

इसके बाद फिर बीजेपी की सरकार बनी और 18 मार्च 2017 को त्रिवेन्द्र सिंह रावत ने नये मुख्यमंत्री के रूप शपथ ली। मुख्यमंत्री शपथ ग्रहण के समय पीएम मोदी भी मौजूद थे। कुछ चापलूस मंत्री व नेता चाहते थे कि हम लोग मोदी को एयरपोर्ट तक छोड़ने जाएं लेकिन मोदी जी चुपचाप तरीके से हाथ हिला कर चल दिए।

वैसे तो त्रिवेंद्र के शपथ ग्रहण में मोदी चुपचाप ही बैठे रहे इससे पता चलता है कि मोदी इन राजनेताओं तथा इन मंत्रीगणों के बारे में सब कुछ जानते हैं इसलिए उन्होंने इन मंत्रियों को ज्यादा भाव नहीं दिया। 2 साल में त्रिवेंद्र सिंह रातव भी कोई ऐसा काम नहीं कर पाए कि प्रदेश की जनता उनको अच्छा मुख्यमंत्री सिद्ध कर सके, क्योंकि जिस तरह से सरकार और संगठनों में तालमेल की कमी, दूसरे विधायकों की आपस में ही तू-तू मैं-मैं आम बात हो गई है।

मुख्यमंत्री तेजतर्रार की कमी आज जो प्रदेश भुगत रहे हैं वह किसी से छुपी नहीं है लोकसभा चुनाव खत्म होने के बाद हो सकता है कि उत्तराखंड में सरकार में फिर भारी फेरबदल हो। अभी हाल फिलहाल की बात करे तो त्रिवेंद्र सरकार को अपने 2 वर्ष पूरा करने में कई तरह की रूकावटो का सामना करना पड़।

अमित शाह से अच्छे संबंध

लेकिन पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह से अच्छे संबंध होने और मोदी के प्रधानमंत्री पद पर होने की वजह से त्रिवेंद्र अभी तक मुख्यमंत्री पद पर बने हुये है। क्योंकि मोदी और अमित शाह के सामने कोई भी बीजेपी का मंत्री, विधायक या फिर कार्यकर्ता अपना मुंह खोलने की हिम्मत नहीं करता। बस सुनने का कार्य करते हैं। चाहे वह सही हो या गलत।

राजनीतिक विद्धानों की माने तो अगर केन्द्र में मोदी सरकार वापस नहीं आती है तो त्रिवेंद्र सिंह रावत का भी जाना तय माना जा रहा है, क्योंकि भले ही अभी त्रिवेंद्र सिंह रावत के खिलाफ कोई लामबंद नहीं हो रहा है। लेकिन त्रिवेंद्र सरकार को लेकर पार्टी में शुरू से ही असंतुष्टता का माहौल है, जो केन्द्र में मोदी सरकार न बनने पर तुरंत सामने आयेगी।

जिससे निपटने के लिए त्रिवेंद्र सिंह रावत को भी तैयार रहना होगा। त्रिवेंद्र सरकार को अस्थिर करने की कोशिश भी हो चुकी है। अभी हाल ही में एक टीवी न्यूज चैनल के सीईओ पर आरोप लगा है कि उसने मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत, अपर मुख्य सचिव ओम प्रकाश समेत कई अफसरो के स्टिंग बनाया है जो लोगो के सामने आ जाये तो मुख्यमंत्री को अपनी कुर्सी बचानी मुश्किल हो जायेगी। जिसके वजह से चैनल के सीईओ को जेल भी जाना पड़ा। कहा यह भी जा रहा है कि यह स्टिंग बीजेपी के ही बड़े नेताओं ने करवाई है जिससे त्रिवेंद्र की कुर्सी चली जाये और वह मुख्यमंत्री बन जाये।

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