कप्तानी के लिए महिला आईपीएस को करना पड़ रहा संघर्ष

Women IPS struggle

Women IPS struggle

देहरादून। Women IPS struggle सूबे में आईएएस और आईपीएस की ट्रासफर-पोस्टिंग को लेकर यूं तो राज्य गठन के बाद से ही सवाल उठते रहे हैं, लेकिन इसके लिए नियमावली के अस्तित्व में आने के बावजूद भी अफसरों के तबादलो की व्यवस्था में बहुत ज्यादा बदलाव देखने को नहीं मिले हैं।’

 बात यदि पुलिस विभाग की करें तो राज्य गठन के बाद से ही ट्रांसफर-पोस्टिंग के मामलों पुलिस मुख्यालय की कार्यशैली पर सवाल खड़े होते आए हैं।

कोई अधिकारी को एक ही जिले में रहकर उच्चाधिकारी हो गया और कोई वाहिनियों में ही रहकर रिटायर्ड हो गया, लेकिन उसे किसी जिले की कमान संभालने का अवसर नहीं मिल पाया।

वर्तमान पुलिसिंग व्यवस्था की बात की जाए तो पिछले कुछ सालों से कई आईपीएस अधिकारियों को वाहिनियो के चक्कर कटाए जा रहे हैं, लेकिन उन्हें जिले में तैनाती देने में विभाग क्यों उदासीन बना हुआ है यह अपने आप में एक बड़ा सवाल है।

कुछ  सीधे आईपीएस अधिकारी भी

इन आईपीएस अधिकारियों में कुछ  सीधे आईपीएस अधिकारी भी है जिन्हें पिछले कई वर्षों से जिले में तैनाती का इंतजार है। ऐसा नहीं है कि इन अफसरों को जिलों में तैनाती नहीं मिली हो, लेकिन साल, छह महिने के लिए ही पोस्टिंग दी गई,  जबकि इनके कार्यकाल की ढेरों उपलब्धियाँ भी रही है।

इसके बावजूद भी अफसरों को जिलों में तैनाती नहीं देने के पीछे आखिर क्या वजह है यह भी चर्चा का विषय बना हुआ है। इन आईपीएस अफसरों में महिला आईपीएस अफसरों की संख्या मात्र नौ  हैं जिनमें 6 एसपी रैंक और दो डीआईजी रैंक जबकि एक आईपीएस डेपुटेशन पर हैं।

इनमें से भी पूरे प्रदेश के 13 जिलों में से सिर्फ एक में ही महिला अधिकारी निवेदिता कुकरेती को देहरादून जिले का चार्ज दिया गया है वो भी अपने दो साल पूरे कर चुकी है। सवाल यह उठ रहा है कि उत्तराखण्ड जिसे महिलाओं के संघर्ष के लिए जाना जाता है वहां महिला पुलिस अधिकारियों को ही जिलों में तैनाती के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है।

यहां यह भी उल्लेखनीय है कि कुछ महिला पुलिस अधिकारी सीधे आईपीएस भी हैं जिन्हे अभी तक पूर्ण रूप से किसी जनपद का आज तक चार्ज नहीं दिया गया जबकि प्रमोटी आईपीएस कईं-कईं साल कुछ जिलों में तैनात रहे और अपना कार्याकाल भी पूरा किया जिनमें से देहरादून जनपद की पुलिस कप्तान भी एक हैं।

महिला अधिकारियों की प्रतिभा को क्यों नजर अंदाज कर रहा

सवाल यह भी उठ रहा है कि आखिर पुलिस विभाग सीधे आईपीएस बने अधिकारियों और मुख्य रूप से महिला अधिकारियों की प्रतिभा और उनके अनुभव को क्यों नजर अंदाज कर रहा है।

यहां यह भी बता दें कि जो सीधे आईपीएस बने हैं उनमें सुनील मीणा (2007 बैच), बरिन्दर जीत सिंह (2008 बैच), अरूण मोहन जोशी (2006 बैच), राजीव स्वरूप (2006 बैच), विम्मी सचदेवा (2003 बैच) और नीरू गर्ग (2005 बैच) के डायरैक्ट आईपीएस हैं।

इनमें से विम्मी सचदेवा और नीरू गर्ग एक जिले में सिर्फ छह माह का कार्यकाल ही पूरा कर पायी उसके बाद से अभी तक इन्हे जिलों में तैनाती नहीं दी गई है।  ऐसे ही आईपीएस पी रेणूका देवी हैं जिन्हे प्रदेश के दूरस्थ पर्वतीय जिले अल्मोड़ा और चमोली में तैनाती दी गई थी।

इसके अलावा उन्हे एसटीएफ एसएसपी के रूप में भी कुछ दिन काम करने का मौका मिला, जिसमें उन्होंने कईं मामलों का खुलासा करने में सफलता पूर्वक निर्देशन किया था,  किन्तु मैदानी जिले में उन्हे भी नहीं भेजा गया।

वर्तमान की बात करें तो पूरे प्रदेश में सिर्फ एक जिले में ही महिला अफसर होना अपने आप में प्रदेश महिला पुलिस अधिकारियों के लिए बड़ी विडंबना की बात है कि इन्हे पुलिस कप्तानी के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है।

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